किरण बेदी की बीजेपी में एंट्री क्या हुई, पार्टी की राज्य इकाई के नेताओं की नाराजगी सरेआम हो गई. भोजपुरिया गायक से नेता बने मनोज तिवारी और वरिष्ठ नेता जगदीश मुखी के सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने डैमेज कंट्रोल की मुद्रा अपना ली. शाह ने अपने सिपाहियों को तुरंत ताकीद करते हुए पार्टी के निर्णय के साथ चलने को कहा. ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि किरण बेदी की एंट्री के बाद बीजेपी के नेता कहां खड़े हैं..
सतीश उपाध्याय
किरण बेदी की एंट्री पर सतीश उपाध्याय ने सार्वजनिक रूप से तो प्रतिक्रिया नहीं दी. लेकिन प्राइवेट रूप से उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी. उपाध्याय मानते हैं कि किरण बेदी को पार्टी में लाने का फैसला बहुत देर से हुआ , अगर उन्हें पार्टी में लाना था, तो यह चुनावों की घोषणा से बहुत पहले हो जाना चाहिए था. उपाध्याय का मानना है कि पार्टी मजबूत प्रचार अभियान चला रही है और आम आदमी पार्टी को हराने में कामयाब रहेगी. उन्हें उम्मीद थी कि अगर दिल्ली चुनाव में वे पार्टी को जीत दिलाने में सफल रहते तो मुख्यमंत्री की कुर्सी उनकी झोली में आ सकती थी. विशेष रूप से इसलिए क्योंकि हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत हासिल करने के बाद बीजेपी ने राज्य के पार्टी अध्यक्ष को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था.
डॉ. हर्षवर्धन
पिछले चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद हर्षवर्धन एक तरीके से नेपथ्य में चले गए. केंद्र में स्वास्थ्य मंत्रालय से साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्रालय में शिफ्ट किए जाने के बाद उनकी स्थिति और कमजोर होती चली गई. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व हर्षवर्धन के नेतृत्व और स्वास्थ्य मंत्री के रूप उनके कामकाज को लेकर स्पष्ट नहीं था. बेदी का आना उनके मुख्यमंत्री बनने की आशाओं पर एक तरीके से तुषारापात है. हालांकि बेदी को पार्टी में ना शामिल किया जाता, तो उनके मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद बढ़ जाती. आधिकारिक रूप से बीजेपी का कहना है कि पार्टी एक केंद्रीय मंत्री को राज्य की राजनीति में नहीं भेजना चाहती. गौरतलब है कि किरण बेदी के घर पर आयोजित टी पार्टी में हर्षवर्धन नहीं पहुंचे थे. हालांकि केंद्रीय मंत्री बेदी के घर देर से पहुंचे, जब वो जनसंपर्क के लिए निकल चुकी थीं.
जगदीश मुखी
एक समय आम आदमी पार्टी के निशाने पर रहे जगदीश मुखी ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जताई और कहा कि किरण बेदी को पार्टी में शामिल करने से पहले उनसे सलाह नहीं ली गई. उनका मानना है कि ऐसे निर्णय से पहले स्थानीय नेताओं से सलाह ली जानी चाहिए. मुखी को लगता है कि पार्टी लीडरशिप ने स्थानीय नेताओं के साथ भेदभाव किया, जिन्होंने राज्य में पार्टी को खड़ा करने में अपना अमूल्य योगदान दिया है. मुखी अपने समर्थकों की ओर से खुद को दिल्ली के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट कराने के लिए अभियान चलवा चुके हैं. दिल्ली की सड़कों पर उनके समर्थकों ने होर्डिंग की बाढ़ लगा दी थी. बेदी के आने के बाद स्पष्ट है कि मुखी अपसेट हैं.
मीनाक्षी लेखी
भगवा पार्टी की वाचाल नेता मीनाक्षी स्वयं को एक ऐसे उम्मीदवार के रूप में देखती हैं, जो दिल्ली के मध्य वर्ग को लुभा सकती है. उनके समर्थकों ने फेसबुक पर उन्हें दिल्ली के सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करते हुए अभियान भी चलाया. लेकिन वास्तव में लेखी कभी भी इस पोस्ट के लिए सीरियस उम्मीदवार नहीं थी.
विजय गोयल
खुश हैं कि बेदी के आने से उनके प्रतिद्वंदी दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर हो गए. गोयल को लगता है कि पार्टी की स्टेट लीडरशिप ने उन्हें अनदेखा किया. गोयल ने किरण बेदी के चुनाव अभियान को दिल खोलकर समर्थन दिया है. जिस दिन किरण बेदी बीजेपी में शामिल हुई गोयल ने ट्विटर पर उन्हें दिल्ली बीजेपी का नेता घोषित कर दिया. जबकि उस समय इस बात की तनिक भी सुगबुगाहट नहीं थी कि बीजेपी उन्हें चुनाव अभियान का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी देने के साथ मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी.
संजय कौल
किरण बेदी के आने के बाद संजय कौल को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है. बेदी ने राज्य इकाई के नेताओं के सामने कौल की तारीफ की. एक मजबूत एनजीओ बैकग्राउंड वाले शहरी नेता कौल को लगता है कि अब जाकर उन्हें अपना हक मिला है. बेदी के आने के बाद से ही वे पूर्व आईपीएस अफसर के पाले में खड़े हैं. कौल ने 6 साल पहले ही बेदी को राजनीति में आने के लिए मनाने की कोशिश की थी. उन्हें सफलता नहीं मिली. बेदी की योजनाओं में कौल की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.
मनोज तिवारी
भोजपुरिया गायक मनोज तिवारी ने किरण बेदी को 'थानेदार' बुलाते हुए उनके खिलाफ मुंह खोला. हालांकि पार्टी लीडरशिप की ओर से मिली घुड़की के बाद तिवारी ने यू टर्न ले लिया. सांसद का चुनाव जीतने के बाद 'पूर्वी' वोटों के दम पर तिवारी की महत्वाकांक्षा खुद मुख्यमंत्री बनने की थी.
उदित राज
बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली पर राज करने की उनकी कोई वास्तविक महत्वाकांक्षा नहीं नजर आई. हालांकि वो खुद लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी में आए इसलिए किरण बेदी का विरोध करने का साहस नहीं कर सकते.
अश्विनी उपाध्याय
खुश हैं कि बीजेपी के पारंपरिक नेताओं के बजाय एक्टिविज्म वाले बैकग्राउंड के नेताओं को मौका मिल रहा है. पहले वाले नेतृत्व की योजनाओं में उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी. लेकिन अब उन्हें उम्मीद है कि बेदी के इंचार्ज बनने के बाद उन्हें बड़ी भूमिका मिलेगी.