राजनीति कब कौन सी करवट ले ले, कहना मुश्किल है. ठीक वैसे ही राजनेताओं को कब कौन सी बात याद आ जाए या फिर यह कि कब पराया अपना बन जाए पता नहीं चलता. कुछ ऐसा ही हाल इस वक्त में बिहार में लालू प्रसाद का है. आरजेडी प्रमुख को अचानक से इन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी याद आने लगे हैं, वही वाजपेयी जिनपर शब्दबाण चलाने से लालू कभी गुरेज नहीं करते थे.
लालू प्रसाद का कहना है कि वह इन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत 'मिस' कर रहे हैं. वह कहते हैं, 'अटल बिहारी जैसी राजनीति आज नहीं रही. जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो कभी भी फोन मिलाकर आसानी से बात कर लिया करते थे और वाजपेयी सुन लिया करते थे, लेकिन आज का दौर वैसा नहीं है.' लालू प्रसाद का कहना है कि लालकृष्ण आडवाणी भी साफ-सुथरी राजनीति करने वाले नेता हैं, लेकिन बीजेपी में आज उन्हें तड़पने के लिए छोड़ दिया गया है.
दरअसल, लालू की इस 'मिसिंग' पॉलिटिक्स को समझना उतना भी मुश्किल नहीं है. स्पष्ट है कि लालू प्रसाद ने अटल और आडवाणी के बहाने सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी पर प्रहार किया है. मोदी खुद को अटल की राह का पथिक बताते हैं. ऐसे में अटल के बहाने मोदी पर हमला ज्यादा कारगर हो जाता है. जबकि नरेंद्र मोदी से आडवाणी की बेरुखी अब किसी से छिपी नहीं है.
बिहार की राजनीति का 'गणेश'
लालू ने खुद को बिहार की राजनीति का 'गणेश' घोषित किया है. उन्होंने कहा, 'सभी उनकी ही परिक्रमा करते हैं'. लालू ने कहा कि बिहार की राजनीति उनसे ही शुरू होगी और उनके आसपास ही घूमेगी, वही बिहार की राजनीति के गणपति हैं.
लालू का यह बयान ऐसे समय आया है जब बिहार में नीतीश और लालू में 'बड़ा कौन' पर बहस शुरू हो गई है. लालू ने नीतीश कुमार को सीएम पद का चेहरा भले बता दिया हो, लेकिन वह यह जताने से नहीं चूक रहे कि राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूमेगी. लालू प्रसाद राजनीति में देवताओं का घालमेल पहले भी करते आए हैं. 2005 के चुनाव के ठीक पहले उन्होंने एक बार राबड़ी देवी को साक्षात दुर्गा कहा था.