लगता है पाटलिपुत्र सीट आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. इस सीट पर लालू यादव के लिए अपनी बेटी मीसा भारती की जीत कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लालू यादव शनिवार को उस शख्स के घर जा पहुंचे जो पिछले कई सालों से न सिर्फ जेल में बंद है बल्कि जिसकी पहचान एक बेहद खतरनाक अपराधी के तौर पर होती रही है.
पाटलिपुत्र से मीसा भारती के खिलाफ जैसे ही जेल मे बंद रीतलाल यादव ने अपने उम्मीदवारी का ऐलान किया, लालू यादव अपने लाव-लश्कर के उसके घर जा धमके. करीब 45 मिनट तक रीतलाल के पिता और भाई से उन्होंने बंद कमरे में मंत्रणा की. लालू चाहते थे कि रीतलाल मीसा के खिलाफ चुनाव ना लड़े. कमरे से बाहर आकर उन्होंने उस पिता के गले में माला डाल दी, जिसके बेटे के नाम से कभी दानापुर इलाके की रूह कांपती थी.
ये लालू यादव की राजनीतिक मजबूरी ही थी जो उन्हें उस रीतलाल यादव के दरवाजे तक खींच लाई जो कभी पटना और दानापुर का आतंक कहा जाता था, जिसके दामन पर आज भी कई बेगुनाहों के कत्ल के दाग हैं, तो कई मासूमों के अपहरण और फिरौती के लिए वो आज भी जेल में सलाखों के पीछे है. एक वक्त था जब वो पटना पुलिस की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल था और पुलिस उसे जिंदा या मुर्दा ढूंढ रही थी. लेकिन आज लालू यादव उसकी चौखट पर अपनी शीश नवा आए. वजह थी अगर रीतलाल यादव चुनाव में खड़ा हो गया तो उनकी बेटी मीसा भारती को मिलने वाले यादव वोटों में सेंध लग जाएगी और तब ये लड़ाई काफी मुश्किल हो जाएगी.
लालू ने रीतलाल यादव के पिता से मुलाकात खत्म होने के बाद कहा कि ये हमारे पुराने लोग हैं, इनसे पुराना रिश्ता है, इनसे बात हुई है, ये यहां की राजनीति तय करेंगे , जो होगा इनके मुताबिक होगा.
दरअसल रामकृपाल यादव के मैदान में ताल ठोकने के बाद मीसा भारती की लड़ाई काफी मुश्किल हो गई है. ऐसे में लालू अपने वोट मे रत्ती भर सेंध भी बर्दाश्त नहीं कर सकते. रीतलाल यादव ऐसा नाम था जो लालू यादव की बात मानने को तैयार नहीं था और उसने चुनाव में उतरने का ऐलान कर लिया था. ऐसे में लालू यादव ने बेटी की इस लड़ाई के लिए उसूलों को ताक पर रखा और चल दिए उस रीतलाल यादव के घर. लालू ने रीतलाल के घर पर उसे निर्दोष तक करार दे दिया, पर मुलाकातों के बाद भी अबतक रीतलाल के परिवार ने ये खुलकर नहीं कहा कि वो चुनाव नहीं लड़ेगा.
इलाके में और खासकर यादव मतदाताओं पर रीतलाल यादव की अच्छी पकड़ मानी जाती है और पिछली विधान सभा चुनाव में उसने निर्दलीय 50 हजार से ज्यादा वोट बटोरे थे, जिससे आरजेडी अपने गढ़ में बुरी तरह हार गई थी, इस बार भी उसने 27 तारीख को अपना पर्चा भरने का ऐलान कर रखा था. ऐसे में लालू यादव भी उसे मैनेज करने की जल्दबाजी मे थे.
रीतलाल यादव माने या ना माने पर लालू यादव आज एक बड़ी लडाई हार गए. एक बात साफ हो गई कि अब लालू यादव अब अपनी जाति के वोटरों पर भी वो प्रभाव नहीं रखते जो कभी सिर्फ उनका हुआ करता था. साफ हो गया अब राजनीतिक रूप से लालू से बड़े उनकी बिरादरी के नेता और अपराधी हो चुके हैं.