लोकसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में नरेंद्र मोदी का जादू खूब चला. प्रदेश की 28 सीटों में से बीजेपी 17 सीटें हासिल करने में कामयाब होती दिख रही है.
महज एक साल पहले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए बीजेपी को हाशिए पर खड़ा कर दिया था. उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन करेगी, जबकि ऐसा हो न सका. मोदी लहर ने कांग्रेस की उम्मीदों को सिरे से धोकर रख दिया.
यह वही प्रदेश है, जहां कांग्रेस ने नंदन नीलेकणि को पार्टी का चेहरा बनाने का फैसला किया था. कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि वह 15 सीटें पाने में कामयाब होगी, पर ऐसा हो न सका. कांग्रेस बड़ी ताकत के रूप में खुद को पेश करने में सफल नहीं हो सकी.
दूसरी ओर, बीजेपी सत्ता विरोधी लहर को भुनाने में पूरी तरह सफल रही. वोटों की गिनती शुरू हुए घंटे-दो घंटे भी नहीं हुए थे कि कांग्रेस उम्मीदवार नीलेकणि ने हार स्वीकार कर ली.
एक ओर बीजेपी 17 सीटें अपनी झोली में डालने में कामयाब रही, तो दूसरी ओर कांग्रेस को महज 9 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इतना ही नहीं, कांग्रेस ने तो हाईकमान को पहले से ही यह संदेश भिजवा दिया था कि उनकी पार्टी अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने जा रही है. नतीजे इसके उलट रहे. जहां तक जेडीएस की बात है, उसे सिर्फ 2 सीटें मिलीं.
हालांकि नंदन नीलेकणि ने प्रदेश में पार्टी की बेहतरी के लिए पूरा जोर लगा दिया, पर उनकी कोशिश रंग नहीं ला सकी. इसके बावजूद उन्होंने हार की जिम्मेदारी कबूलते करते हुए कहा, 'मैं हार स्वीकार करता हूं. हम इस बात की पड़ताल करेंगे कि हमसे कहां गलती हो गई. मैं कोई सेफोलॉजिस्ट नहीं हूं. मैं बेंगलुरु के लोगों के लिए काम करना जारी रखूंगा.'
अनंत कुमार जीत से काफी खुश नजर आए. नतीजे घोषित होने के बाद उन्होंने कहा, 'यह भारत के लिए मोदी की जीत है. जनता ने पार्टी और हमारे काम के पक्ष में वोट दिया है.'
बीजेपी की जीत के कई कारण रहे, जिनमें येदियुरप्पा फैक्टर सबसे अहम रहा. येदियुरप्पा के पार्टी में लौटने से लिंगायत समुदाय का अच्छा-खासा वोट बीजेपी को मिला.
अगर आम आदमी पार्टी के नजरिए से चुनाव परिणामों को देखा जाए, तो यह उसके लिए काफी निराशाजनक रहा. पार्टी कर्नाटक में अपना खाता भी नहीं खोल पाई.