हरियाणा में इस बार कांग्रेस का कोई तीर कमाल नहीं दिखा पाया. जाटलैंड की राजनीति में भी नरेंद्र मोदी ही छाए रहे. राज्य की 10 सीटों में से 7 पर बीजेपी तो दो जाट राजनीति करने वाली आईएनएलडी को दो और कांग्रेस महज एक सीट जीतने की ओर अग्रसर है. इस राज्य में बीजेपी प्लस को 33 फीसदी वोट मिले तो कांग्रेस-आइएनएलडी को करीब 24-24 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ रहा है. लेकिन बीजेपी के लिए अनुपजाऊ जाटलैंड अचानक उपजाऊ कैसे हो गया. इसका विश्लेषण करना नतीजों के बाद बेहद आसान हो गया है.
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर दंगों का सीधा प्रभाव हरियाणा की राजनीति पर पड़ा. अमूमन कांग्रेस और ओम प्रकाश चौटाला की आइएनएलडी के बीच होने वाली जाट राजनीति इस बार सीधे मोदी बनाम कांग्रेस हो गई. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का मुस्लिम कैंप में जाना और जाटों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया इस समाज में नाराजगी पैदा कर गया. मुस्लिम वोट बैंक के लिए छिड़ी लड़ाई में स्वाभाविक तौर से दूर रही बीजेपी ने जाटों को अपने पक्ष में लाने में सफलता हासिल की.
हरियाणा में जाट वोट करीब 90 फीसदी नरेंद्र मोदी लहर में भगवा ब्रिगेड को मिला. जाट समाज में यह धारणा बन चुकी थी कि अगर कांग्रेस को कोई सबक सिखा सकता है तो वह सिर्फ बीजेपी और मोदी हैं. इसलिए कांग्रेस से नाराज वोट जो पहले चौटाला को जाता था, इस बार बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकृत हो गया.
अमूमन बीजेपी और उसके सहयोगी दल गैर जाट वोट के जरिए ही हरियाणा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं और अपने पारंपरिक वोट के साथ-साथ जाटों के ध्रुवीकरण ने जाटलैंड में कमल ही कमल खिला दिया. मोदी लहर में सवार जाटलैंड ने उम्मीदवारों का चेहरा नहीं, बल्कि मोदी के रुप में अपना मजबूत विकल्प देखा. हालांकि कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर दंगे के बाद मुस्लिम सहानुभित पाने के साथ-साथ जाट आरक्षण का पैंतरा भी चल दिया, लेकिन जाट वोटर इस झांसे में नहीं आ पाए. जाटों की नाराजगी ने ही यूपी में चौधरी अजित सिंह जैसे दिग्गज को भी धूल चटा दी तो दिल्ली से सटा हरियाणा भी मोदीमय हो गया.