आरटीआई के जरिए हुए खुलासे ने एक बार फिर से चुनाव आयोग की लापरवाही को उजागर करते हुए उस पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. आरटीआई के मुताबिक चुनाव आयोग चुनाओं के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों को नोटिस तो दे देता है, लेकिन कार्रवाई करने के मामले में बहुत ही लापरवाही करता है.
देश में 16वीं लोकसभा के चुनाव के सात राउंड हो चुके है और इस दौरान कई बार आचार संहिता के टूटने का मामला भी सामने आया है. इसी बात की जानकारी के लिए आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने चुनाव आयोग से ये पूछा कि 1999 से 2009 तक के तीन लोकसभा चुनावों के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन के कितने मामले दर्ज हुए? कितने लोगों के खिलाफ आयोग ने करवाई की और कितने सांसदों को अपने पद से हाथ धोना पड़ा.
इन सवालों के जवाब में चुनाव आयोग ने अपने हाथ खड़े करते हुए कहा कि उनके पास ऐसी कोई डिटेल्स नहीं हैं, क्योंकि 2012 में मंत्रालय में लगी आग से सारे डाक्यूमेंट्स जल गए थे. लेकिन एक्टिविस्ट गलगली चुनाव आयोग के जवाब से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि 2012 में मंत्रालय में लगी आग के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने सभी डिपार्टमेंट्स को 2 से तीन महीने में सारे डॉक्यूमेंट्स फिर से तैयार करने के आदेश दिए थे लेकिन दो सालों बाद भी आयोग ने डॉक्यूमेंट्स नहीं बनाएं.
चुनाव आयोग की लापरवाही का मुद्दा राजनैतिक रंग लेने लगा है और पार्टियां इस मामले की जांच की मांग करने लगी हैं. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रवक्ता बागीश सारस्वत का कहना है कि इस मामले की जांच होनी चाहिए. हो सकता है जिन पर करवाई होनी चाहिए, उनकी फाइल आग में जल गई, ऐसा बहाना बनाया जा रहा हो.
मालूम हो कि चुनाव आयोग पर पहले से ही वोटिंग लिस्ट में गड़बड़ी के चलते सवाल उठ रहे थे, जिसकी वजह से मुंबई में लाखों लोग वोट करने से वंचित रह गए थे और अब इस खुलासे ने उसकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है.