दिल्ली के सियासी बिसात में पिछड़ चुकी बीजेपी की नजर अब पूरी तरह जम्मू-कश्मीर पर टिकी हुई है. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के बाद पार्टी अब जम्मू-कश्मीर में सत्ता का सुख पाना चाहती है. दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार को लेकर बातचीत आखिरी चरण में है, वहीं रविवार को अमित शाह के बेटे के रिसेप्शन के लिए पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती दिल्ली पहुंच रही हैं. समझा जा रहा है कि इस बहाने जम्मू-कश्मीर में सरकार को लेकर दोनों दलों के बीच शर्तें तय हो सकती हैं.
जम्मू-कश्मीर में सत्ता को लेकर सस्पेंस लगभग खत्म हो गया है. बीजेपी और पीडीपी राज्य में सरकार बनाएगी. खबरों के मुताबिक, प्रदेश में 23 फरवरी से पहले सरकार बनाई जाएगी. बताया जाता है कि इस गठबंधन के तहत सीएम पीडीपी का होगा, जबकि डिप्टी सीएम बीजेपी का. बजट सेशन से पहले ही सरकार का गठन हो जाएगा.
गौरतलब है कि दिसंबर में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में 87 में से पीडीपी ने 28 जबकि बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं. एनसी और कांग्रेस को क्रम से 15 और 12 सीटों पर जीत मिली थी. चुनाव नतीजे आने के बाद से ही सरकार गठन को लेकर सियासी उठा पटक का दौर शुरू हो गया था. इस दौरान कांग्रेस, एनसी और पीडीपी को लेकर महागठबंधन जैसे समीकरण भी सामने आए थे.
इससे पहले, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि उनकी पार्टी और पीडीपी जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाने के लिए तैयार है. अभी दोनों पार्टियां न्यूनतम साझा कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के आखिरी चरण में हैं और मुख्यमंत्री पद के मुद्दे पर उसके बाद ही विचार किया जाएगा. शाह ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, 'न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया चल रही है. यह आखिरी चरण में पहुंच गया है लेकिन अभी पूरा नहीं हुआ है.'
शर्तों की अहम कड़ी
पीडीपी और BJP गठबंधन के बीच कई अहम शर्तों पर बातचीत होनी है. पीडीपी चाहेगी कि समर्थन के बदले धारा 370 को मजबूत बनाने, शांतिपूर्ण इलाकों से आफ्सपा कानून हटाने और मुफ्ती मोहम्मद सईद को पूरे 6 साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रखी जाए. दिलचस्प यह है कि बीजेपी धारा 370 के खिलाफ और आफ्सपा को बनाए रखने के पक्ष में रही है.
अमित शाह का कहना है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के बाद ही मुख्यमंत्री कौन होगा और किस पार्टी से होगा, जैसे मुददों पर चर्चा की जाएगी. उन्होंने कहा कि फिलहाल यह समझना चाहिए कि दोनों दल राज्य के राज्यसभा चुनावों में मदद के लिए एक दूसरे के साथ आए हैं.
बीते साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में खंडित जनादेश आने के बाद राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया था.