16वीं लोकसभा की लड़ाई शुरू हो चुकी है. हर दल को पता है कि सत्ता को साधने के लिए 272 का जादुई आंकड़ा छूना होगा और उस आंकड़े तक पहुंचने में उत्तर प्रदेश की सबसे अहम भूमिका होगी. इसी टारगेट को हासिल करने के लिए नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल अपने-अपने वादों का तरकश लेकर यूपी की समरभूमि में कूद पड़े हैं.
राजनीति के व्याकरण में यह पुरानी कहावत काफी मशहूर है कि दिल्ली के लिए सत्ता का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है. लखनऊ यानी पुराने नवाबों की नगरी और नए जमाने में उत्तर प्रदेश की राजधानी. वही उत्तर प्रदेश, जहां से लोकसभा के लिए 80 सदस्य आते हैं. यही वजह है कि बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के भविष्य राहुल गांधी और AAP की उम्मीद अरविंद केजरीवाल, सबके रास्ते यूपी की तरफ मुड़ गए हैं.
जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी- हिंदुस्तान के अब तक 8 प्रधानमंत्री यूपी से ही निकलकर आए. अगर पीएम नहीं भी बने, तो किसको पता नहीं कि जिसके सिर पर यूपी का हाथ होता है, सरकार उसी की बनती है. पिछली बार कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं, तो मनमोहन सिंह की दूसरी पारी आसान हो गई. इसलिए 80 की अग्निपरीक्षा में सभी जुट गए हैं. मोदी-केजरीवाल से राहुल तक.
लोकसभा की लड़ाई छिड़ी, तो राहुल ने वाराणसी में रोड शो लगा दी. बाबा विश्वनाथ की नगरी में रिक्शावालों के आंसू पोंछने निकल गए. सोचा होगा कि क्या पता, इन आंसुओं की धार में मनमोहन सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप धुल जाएं. क्या पता, छोटी-छोटी सभाएं लोकसभा के लिए बड़ा रास्ता खोल दें. कहीं राहुल बाजी न पलट दें, इसलिए लखनऊ आने से पहले नरेंद्र मोदी चिल्लाने लगे- 'राहुल दस नंबरी...'.
एक मार्च को राहुल गांधी बाबा विश्वनाथ की नगरी में थे, तो रविवार को विजय शंखनाद रैली के लिए नरेंद्र मोदी लखनऊ में हैं. अरविंद केजरीवाल कानपुर में रैली कर रहे हैं वहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और यूपी के सीएम अखिलेशा यादव की इलाहाबाद में चुनावी रैली हो रही है. मुलायम ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा है कि मोदी रैली की भीड़ पर ध्यान न दें, बल्कि विकास पर ध्यान दें. दिल्ली में बीजेपी के सत्ता रथ को बस चार विधायकों की दूरी पर रोक चुके केजरीवाल अब 84 किलोमीटर की दूरी पर खड़े नरेंद्र मोदी को ललकारेंगे और मोदी लखनऊ से दिल्ली जीत लेने का सपना बीजेपी को दिखाएंगे.
संसद की लड़ाई सोलहवीं लोकसभा के लिए अब सड़क पर आ गई है. इसलिए सत्ता के उड़नखटोले सड़क पर डोल रहे हैं. कहीं रैली के रूप में, कहीं रोड शो के रूप में, तो कहीं नुक्कड़ बहस के रूप में. हर चेहरा खुद को सबसे खूबसूरत बनाने की आखिरी कवायद में जुटा है.
पूरे जोश में हैं अरविंद केजरीवाल
दिल्ली विधानसभा में मिली जीत ने AAP में इतना हौसला भर दिया कि अरविंद केजरीवाल कहने लगे कि उनका मुकाबला तो सीधे नरेंद्र मोदी से है. अब ये मुकाबला दो मार्च को यूपी में दिखेगा, जब कानपुर से केजरीवाल अपने दावों और वादों का बही-खाता खोलेंगे. लेकिन उससे पहले रोड शो के जरिए 17 लोकसभा सीटों को छूने की कोशिश भी कर ली.
गाजियाबाद से कानपुर की 464 किलोमीटर की दूरी तय करने में वैसे तो 6 घंटे लगेंगे, लेकिन केजरीवाल को यह दूरी तय करने में तीस घंटे का समय लगेगा. लेकिन तीस घंटे में केजरीवाल उत्तर प्रदेश की 17 लोकसभा सीटों को नाप लेना चाहते हैं. इस नाप के लिए उनके पास पैमाना है दिल्ली में उनकी 49 दिनों की सरकार का काम-काज.
जब केजरीवाल दिल्ली में विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे, तब बहुत कम लोगों को अंदाजा था कि AAP का झाड़ू कांग्रेस के वजूद और बीजेपी के सपने को एक झटके में साफ कर देगा. तब केजरीवाल दिल्ली की गलियों से हर मुहल्ले तक अपनी दस्तक दे रहे थे. अब दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों से आगे बढ़कर लोकसभा की 545 सीटों की लड़ाई पर केजरीवाल वही दांव आजमा रहे हैं. गाजियाबाद से कानपुर का सफर इसकी शुरुआत है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसी जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के इशारे पर चलता था. विरासत उनके बेटे अजित सिंह को मिली, लेकिन समय के साथ उनका असर और आधार कमजोर होता चला गया. अब चरण सिंह की विरासत पर केजरीवाल की नजर है.
कानपुर में दो मार्च की रैली केजरीवाल की ताकत का पहला लिटमस टेस्ट है. लेकिन इस रैली से पहले केजरीवाल अपने रोड शो के जरिए गाजियाबाद, मेरठ, मुरादाबाद, अमरोहा, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, इटावा, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा और गौतमबुद्ध नगर पर असर छोड़ने की कोशिश की.
लेकिन विरोधी कहते हैं कि यूपी दिल्ली नहीं है. केजरीवाल पहले ही एलान कर चुके हैं कि उनका मुकाबला नरेंद्र मोदी से है. अब यह इत्तफाक है या सोची-समझी रणनीति कि जिस कानपुर से यूपी में मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं का श्रीगणेश किया था, वहीं से केजरीवाल भी आगाज कर रहे हैं.
यूपी जीतने के फेर में मोदी
अरविंद केजरीवाल कानपुर में होंगे, तो नरेंद्र मोदी अपने दल-बल के साथ लखनऊ में. बीजेपी के लिए लखनऊ सिर्फ इसलिए अहम नहीं है कि वो यूपी की राजधानी है, बल्कि इसलिए भी है कि यहीं से उसके शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी कई बार लोकसभा में पहुंचे. अब मोदी यहीं से यूपी जीतने की रणनीति बनाएंगे.
मोदी का मिशन तो 272 प्लस है. इसीलिए तो यूपी की 80 सीटों पर सबसे ज्यादा नजरें टिकी हैं नरेंद्र मोदी की भी, बीजेपी की भी और संघ की भी, क्योंकि सबको पता है कि यूपी जीता, तो देश जीतना बहुत आसान हो जाएगा.
मोदी ने यूपी के अलग-अलग हिस्सों में रैली कर ली. कानपुर से वाराणसी तक और मेरठ से गोरखपुर तक उनका उड़नखटोला कमल के खिलने की उम्मीदों को भांपता रहा. कहीं पुराने राग गाए गए, तो कहीं 56 इंच के सीने पर विकास के नारे उछाले गए.
अब सवाल है कि 56 इंच के सीने की धड़कन यूपी में कितनी सीटों पर बीजेपी की जीत की गारंटी बनेगी. लेकिन चुनाव तक उम्मीद कौन छोड़ेगा. लिहाजा अब निशाना सीधे लखनऊ पर है, जहां दो मोर्च को मोदी की रैली होगी, सीधे यूपी के दिल में.
बीजेपी के लिए लखनऊ की अहमियत इस बात से भी बढ़ जाती है कि प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी यहीं से चुनाव लड़ते थे. सवाल तो ऐसे भी उछलता है कि क्या वाजपेयी के जूते में मोदी के पांव पड़ेंगे?
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को पिछली बार 10 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 22 सीटें. मोदी इस बार सीटों के आंकड़े को बिल्कुल बदल देना चाहते हैं और राहुल पुरानी हैसियत को कायम रखना चाहते हैं. इसलिए वो रोड शो कर रहे हैं और मोदी चाहे कहीं भी रहें, उन पर निशाना लगाने से नहीं चूकते.
यूपी में 80 सीटों की अग्निपरीक्षा है. चौथे नंबर की पार्टी को पहले नंबर पर लाना मोदी के लिए एक मुश्किल सबक है. कांग्रेस से लड़ाई तो देश भर में है, यूपी में तो मुलायम और मायावती पहले से ताल ठोककर खड़े हैं.
राहुल कैसे रहना चाहेंगे पीछे?
केजरीवाल रोड शो कर रहे हैं, नरेंद्र मोदी रैली करेंगे, तो राहुल गांधी रोड-सभा कर रहे हैं. वाराणसी में राहुल गांधी ने स्टेशन के पास ही आम लोगों की चौपाल लगा दी. उनका दुख-दुर्द सुनने के बहाने चुनावी मौसम में कांग्रेस के लिए फिजा बनाने की कोशिश की.
हर दिल पर उंगली रखने की ऐसी कोशिश अक्सर चुनाव के मौसम में ही देखने को मिलती है. एक नए भारत की खोज में निकले राहुल गांधी आजादी के 67 साल बाद गरीबों का दर्द समझ रहे हैं.
नरेंद्र मोदी आसमान में उड़ रहे हैं. केजरीवाल सड़क पर दौड़ रहे हैं, तो राहुल गांधी लोगों के बीच बैठकर उनका दिल टटोल रहे हैं. सबकी नजरें यूपी पर ही हैं. राहुल को बनारस से मिर्जापुर जाना था, लेकिन मौसम बिगड़ा तो यात्रा रद्द. फिर तो राहुल बाबा विश्वनाथ की शरण में चले गए. राहुल हों या मोदी, दोनों की नजरें दिल्ली के तख्त पर हैं. अब पूजा भी एक जैसा हुआ, तो इसमें अचरज क्या है.