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बिहार में नरेंद्र मोदी के सामने न लालू चले और न ही नीतीश

सीटों की स्थिति देखें तो बिहार की 40 सीटों में से एनडीए गठबंधन को कुल 31 सीट मिले. जिसमें बीजेपी की 22 सीटें हैं. एलजेपी की 6 और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की 3.

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लालू प्रसाद यादव
लालू प्रसाद यादव

तारीख 27 अक्टूबर 2013. पटना का गांधी मैदान. बीजेपी की हुंकार रैली. नरेंद्र मोदी लंबे समय के बाद पहली बार बिहार में रैली करने वाले थे. फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने सूबे की सियासत को बदलकर रख दिया. रैली स्थल पर ही बम धमाके हुए. स्थिति गंभीर थी पर कोई अपनी जगह से हिला नहीं. मैदान में आई जनता मोदी को सुनने के लिए बेताब थी. चारों ओर 'मोदी...मोदी' के नारे. फिर मोदी ने अपने संबोधन से साफ कर दिया कि उनके एजेंडे में बिहार सबसे ऊपर है. यह रैली ऐतिहासिक बन गई और शायद उसी दिन सूबे में नई राजनीति की बुनियाद रख दी गई.

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बीजेपी का गठबंधन जेडीयू से टूट गया था इसलिए पार्टी के पास वो जातीय समीकरण नहीं था जिसके दम पर बिहार जीता जा सके. वैसे भी उन्हें पहले से ही अगड़ों की पार्टी के तौर पर देखा जाता रहा है. ऐसे में दलितों को कैसे साथ लाया जाए? आखिर पिछड़ों को अगड़ो के साथ कैसे लाया जाए? कैसे विश्वास जगाया जाए कि अब बीजेपी के एजेंडे में सिर्फ सवर्ण नहीं, दलित और पिछड़े भी हैं.

बीजेपी को इस रणनीति को सहारा मिला लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के साथ आने से. 2002 दंगों के कारण एनडीए छोड़ने वाले रामविलास पासवान एक बार फिर वापस आ गए थे.

इस गठबंधन से बीजेपी को कितना फायदा मिला इसका विश्लेषण तो बाद में होगा. पर बीजेपी मैसेज देने में कामयाब हो गई कि वह सबको साथ लेकर चलने वाली है.

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बीजेपी का एजेंडा साफ था. उनके निशाने पर नीतीश कुमार थे, जिन्होंने मोदी को लेकर बीजेपी के साथ 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ दिया. धीरे-धीरे नीतीश कमजोर होने लगे. उनके विकास के एजेंडे का असर बिहार की जनता पर कम होने लगा.

इतने में एंट्री हुई सियासत के पुराने महारथी लालू प्रसाद यादव का. चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने के बाद लालू यादव जेल में थे. जमानत मिलने के बाद लालू यादव सियासी अखाड़े में कूद गए. खुद चुनाव तो नहीं लड़ सकते थे, पर बेटी मीसा भारती और पत्नी राबड़ी देवी को आगे करके दांव चल दिया. लालू को मुस्लिम-यादव समीकरण के एक बार फिर काम करने का भरोसा था. लालू को रैलियों में जबरदस्त समर्थन मिला भी. कई राजनीतिक पंडित उनकी शानदार वापसी के अनुमान भी लगाने लगे. लेकिन मोदी लहर के सामने लालू यादव कमजोर साबित हुए. अंदाजा इस बात से लगाइए कि उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती चुनाव हार गईं.

लोकसभा चुनाव की स्थिति
वोट शेयर के लिहाज से बीजेपी सबसे आगे रही. भाजपा को 29.5 प्रतिशत वोट मिले. एनडीए के अन्य साथियों में एलजेपी को 6.1 प्रतिशत और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 3.1 प्रतिशत. कुल मिलाकर एनडीए को करीब 39 फीसदी वोट मिले. त्रिकोणीय मुकाबले में यह वोट प्रतिशत बड़ी जीत की ओर इशारा करती है. बीजेपी को टक्कर लालू यादव ने ही दी. आरजेडी को 20.3 फीसदी वोट मिले. वहीं कांग्रेस के पक्ष में 8.3 फीसद वोट पड़े. पर लॉ ऑफ एवरेज में आरजेडी पिछड़ गई.

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सीटों की स्थिति देखें तो बिहार की 40 सीटों में से एनडीए गठबंधन को कुल 31 सीट मिले. जिसमें बीजेपी की 22 सीटें हैं. एलजेपी की 6 और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की 3. आरजेडी को चार सीटें मिलीं और कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें. नीतीश कुमार का हाल सबसे बुरा रहा. उनकी पार्टी जेडीयू 20 सीटों से खिसककर दो सीटों पर आ गई.

हार और जीत
सारण से राबड़ी देवी और पाटलिपुत्र से मीसा भारती हारे. बीजेपी को बड़ा नुकसान शाहनवाज हुसैन के रूप में हुआ. वह भागलपुर सीट से हार गए. पप्पू यादव ने चुनावी सियासत में जोरदार वापसी की है. उन्होंने मधेपुरा सीट से जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव को हरा दिया. गिरिराज सिंह, अश्विनी कुमार चौबे, आरके सिंह, कीर्ति आजाद, रामकृपाल यादव, हुकुम नारायण सिंह और भोला सिंह जैसे बीजेपी नेता चुनाव जीत गए.

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