देश के मुस्लिम वोटर्स बीजेपी के पीएम इन वेटिंग नरेंद्र मोदी की बढ़त को लेकर चिंतित हैं. उनका कहना है कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते तो उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हक में मतदान कर खुशी होती.
राज्य दर राज्य में मुस्लिम समुदाय के पुरुषों और महिलाओं ने उम्मीद से कहीं ज्यादा खुले तौर पर इस बात पर जोर दिया कि साल 2002 के गुजरात दंगों के लिए मोदी को माफ करना असंभव है. मोदी आज भी वहां के मुख्यमंत्री हैं.
हैदराबाद के एक कारोबारी खाजा सलीमुद्दीन ने हर सामाजिक और आर्थिक दायरे के मुस्लिमों के विचार से सहमति जताते हुए अपना नजरिया रखा. मुंबई की एक मध्यम वर्गीय गृहणी मुमताज रौनक ने कहा कि भारत में अधिकतर मुस्लिम 1992 में विवादित ढांचा ढहाए जाने की नाराजगी से बाहर आ चुके हैं 'लेकिन वे गुजरात की त्रासदी को नहीं भुला सकते.'
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. मुस्लिम नेताओं और संगठनों ने समुदाय को बीजेपी के खिलाफ मतदान करने के लिए सचेत करते हुए धर्मनिरपेक्ष प्रत्याशी का चयन करने की सलाह दी है. मोदी के खिलाफ नाराजगी का यह मतलब नहीं कि मुस्लिम कांग्रेस के साथ हैं.
तमिलनाडु में एक मुस्लिम संगठन के प्रमुख हाजी कायल आर. एस. इलावरासू ने कहा, 'मुस्लिम भी केंद्र में बदलाव चाहते हैं, लेकिन हम नरेंद्र मोदी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.' उन्होंने कहा, 'मौजूदा राजनीतिक समीकरण में मुस्लिम तब शायद बीजेपी को वोट दे भी देते अगर पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का दावेदार किसी और को बनाया होता.'
केरल की राजधानी में चाय की दुकान चलाने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि उसे अब बिस्तर पकड़ चुके वाजपेयी जी की बहुत याद आती है. अलीगढ़ में मुस्लिम राजनीति पर अध्ययन केंद्र के निदेशक एन. जमाल अंसारी ने कहा, 'मुसलमान वाजपेयी के जैसे उदार नेता को स्वीकार कर भी लेते, लेकिन मोदी न केवल मुस्लिमों के लिए बल्कि धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए भी खतरा हैं.'