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हर किसी पर नहीं थोपेंगे हिंदू संहिता, इसमें भी बदलाव की जरूरत है: मोदी

बीजेपी के पीएम उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी का कहना है कि हिंदू संहिता में ऐसे कई प्रावधान हैं जो अप्रासंगिक हैं और उन्‍हें सुधारने की जरूरत है. मोदी ने उर्दू साप्‍ताहिक 'नई दुनिया' को दिए अपने एक इंटरव्‍यू में कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने का यह मतलब नहीं है कि देश के सभी नागरिकों पर हिंदू संहिता लागू की जाएगी.

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बीजेपी की पीएम उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी
बीजेपी की पीएम उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी

बीजेपी के पीएम उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी का कहना है कि हिंदू संहिता में ऐसे कई प्रावधान हैं जो अप्रासंगिक हैं और उन्‍हें सुधारने की जरूरत है. मोदी ने उर्दू साप्‍ताहिक 'नई दुनिया' को दिए अपने एक इंटरव्‍यू में कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने का यह मतलब नहीं है कि देश के सभी नागरिकों पर हिंदू संहिता लागू की जाएगी.

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देश के हर नागरिक पर हिंदू संहिता लागू नहीं करेंगे: मोदी
मोदी ने कहा, 'संविधान कहता है कि सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगी. दूसरी महत्वपूर्ण बात मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि समान नागरिक संहिता लागू करने का यह मतलब नहीं है कि देश के सभी नागरिकों को हिंदू संहिता के अंतर्गत लाया जाएगा.' मोदी ने इंटरव्‍यू के दौरान आगे कहा, 'मेरा मानना है कि हिंदू संहिता में अनेक प्रावधान हैं जो अप्रासंगिक हैं और उन्हें सुधारने की जरूरत है. 21वीं सदी में 18वीं सदी के कानूनों को लेकर चलना गैर जरूरी है.'

गौरतलब है कि बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता को लागू करने के बिंदु को शामिल किया है. मुसलमानों के बीच किसी भी तरह के भय को दूर करने का प्रयास करते हुए मोदी ने इंटरव्‍यू के दौरान इस समुदाय के कल्याण से जुड़ी मौजूदा संवैधानिक या वैधानिक संस्था को समाप्त करने की आशंका को खारिज किया. उन्‍होंने कहा कि वह इन संस्थाओं को मजबूत करने के लिए काम करेंगे. धर्मनिरपेक्षता को पश्चिम से आयातित अवधारणा बताते हुए मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिमों का वोट पाने के लिए इसका इस्तेमाल किया और अब कांग्रेस और अन्य पार्टियां इस समुदाय का उपयोग वोट बैंक के लिए कर रहीं हैं.

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भारत के डीएनए में सद्भावना और सम्‍मान
मोदी ने आगे कहा कि संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए हैं और भारत के डीएनए में सभी धर्मों के लिए सद्भावना और सम्मान है. जब मोदी से अल्पसंख्यक आयोग, अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम जैसी संस्थाओं को बंद करने की उनके आलोचकों की आशंकाओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'संवैधानिक और वैधानिक निकायों को मजबूत करने की जरूरत है. उन्हें समाप्त नहीं करना है. जरूरत है कि उन्हें लाभप्रद और मजबूत बनाया जाए ताकि वे सांकेतिक कदमों वाली मौजूदा प्रणाली पर चलते रहने के बजाय ठोस काम करें.

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