आम चुनाव से पहले क्या देश में बीजेपी की लहर है? अगर आप टीवी चैनलों को देखें, तो यह हर नए दिन एक व्यक्ति को निर्णायक और करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में दिखाता है, जिसके पास देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने और अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाने का नक्शा तैयार है. लेकिन क्या यह सच है या फिर एक व्यक्ति को मृग मरीचिका बनाने के लिए मीडिया द्वारा तैयार किया गया हौवा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेदाग घोषित करने के बावजूद खुद पर लगे 2002 के गुजरात दंगे का धब्बा ढोना होगा.
16 मई को ही यह तय होगा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं. लेकिन इस वक्त जो बात लोगों को परेशान कर रही है, वह मीडिया या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया के कुछ हिस्से द्वारा मोदी का किया जा रहा महिमामंडन है. इसमें कोई शक नहीं कि मोदी एक निर्णायक और कुशल नेता के रूप में सामने आए हैं जो देश के आर्थिक परिदृश्य को बदल सकता है, जैसा कि वह खुद हिंदुत्व की अपेक्षा विकास पर ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल देते हैं.
लेकिन यह छिपा हुआ तथ्य भी है कि मोदी 2002 के दंगे के दाग को मिटाने के लिए जनता के बीच अपनी छवि बनाने के लिए काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि सात रेस कोर्स रोड का रास्ता इतना आसान नहीं होगा? ब्रांड मोदी नए और पुराने मीडिया की रचना है. सोशल मीडिया पर मोदी एक ब्रांड हैं. ट्विटर पर उनके 35 लाख से अधिक फॉलोअर हैं, जबकि फेसबुक पर 1.1 करोड़ प्रशंसक हैं.
लेकिन यह पुरानी खबर है. मोदी का मीडिया किस तरह प्रचार कर रही है. मोदी के पीएम बनने की राह में एकमात्र खतरा नई पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) है. कांग्रेस जहां डूबता जहाज लग रही है और इसके कई वरिष्ठ नेता राजनीति का स्वाद नहीं चखना चाहते, न ही तीसरा मोर्चा में कोई मजबूत नेता नजर आया है.
बीजेपी के लिए 'आप' ही एकमात्र खतरा है और मीडिया सही या गलत तरीके से इसके संस्थापक अरविंद केजरीवाल को बदनाम कर रही है. यह माना हुआ तथ्य है कि मीडिया एक महत्वपूर्ण हथियार है जो जनता के मन को बदल सकती है, लेकिन क्या सिर्फ एक नेता के पक्ष में बात करना उचित है?
केजरीवाल की उस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता जिसमें उन्होंने मोदी का प्रचार करने के लिए मीडिया को जेल भेजने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने मीडिया की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया है कि क्या मीडिया प्रासंगिक है?
इस सवाल का जवाब सिर्फ मीडिया ही दे सकती है और यह कठिन होगा. लेकिन मीडिया खासकर टेलीविजन चैनल यह महसूस नहीं कर रहे कि केजरीवाल पर रोजाना किए जा रहे प्रहार से इसकी विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है.
क्या मीडिया बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए द्वारा 2004 में चलाए गए इंडिया शाइनिंग प्रचार को भूल गई? पूरा अभियान बीजेपी पर भारी पड़ गया और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार सत्ता में आई थी.