झारखंड और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं. झारखंड में बीजेपी कमोबेश सत्ता में आ गई है, लेकिन जिसे पूर्ण बहुमत कहा जाता है वैसे ढंग से नहीं. जम्मू-कश्मीर में पार्टी ने जबर्दस्त लड़ाई लड़ी और जम्मू क्षेत्र में अपनी धाक जमा गई, लेकिन घाटी में उसे एक भी सीट नहीं मिली. जबकि चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा लग रहा था कि पार्टी इस बार घाटी में भी अपना परचम लहरा देगी. लेकिन तमाम शोरशराबे के बाद भी पार्टी को बहुमत तो दूर पहला स्थान भी नहीं मिला.
घाटी की तमाम सीटें दूसरी पार्टियों को चली गईं. मुफ्ती सईद की पार्टी पीडीपी ने इस बार शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन वह भी बहुमत से दूर रही. वैसे पीडीपी सबसे बड़ा दल होने के कारण सरकार बनाने की स्थिति में है. हालांकि अब यह उस पर निर्भर है कि वह किससे मदद लेकर सरकार बनाती है. बीजेपी के हाव-भाव और तेवर से तो ऐसा नहीं लगता कि वह पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाएगी. फिर भी राजनीति में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता.
बहरहाल, अब वक्त है यह समीक्षा करने का कि क्या पीएम मोदी का मैजिक चला या नहीं. अगर हम ध्यान से देखें तो झारखंड में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जितना अच्छा प्रदर्शन किया वह उसे विधानसभा में रिपीट नहीं कर पाई. उस समय पार्टी ने 14 में से 12 सीटें जीतकर सभी को हैरान कर दिया था. लेकिन इस बार जेएमएम ने उसे काफी हद तक रोका. इसी तरह जम्मू-कश्मीर की 6 सीटों में से बीजेपी ने आधी यानी 3 सीटें जीती थीं और पीडीपी ने भी 3. लेकिन अब यहां बीजेपी का वह प्रभाव नहीं दिखा. यह गिरावट क्यों आई, यह शोध का विषय है. क्या जनता बीजेपी के अब तक के परफॉर्मेंस से खुश नहीं है या कोई और कारण है?
अगर मोदी की सभाओं में भीड़ को देखें तो लगेगा कि उनका मैजिक बरकरार है, लेकिन रिजल्ट ऐसा नहीं कहते. इन दोनों राज्यों में अल्पसंख्यकों की तादाद काफी है. झारखंड में भी कई सीटें ऐसी हैं जहां ईसाइयों की आबादी अच्छी-खासी है. पिछले कुछ समय से आरएसएस और अन्य हिन्दूवादी संगठन जिस तरह से धर्मांतरण की बातें कर रहे थे और अभियान छेड़ रहे थे उससे वहां के लोगों का बीजेपी के प्रति मोहभंग हुआ. वह पीएम मोदी के विकास के नारे से प्रभावित तो हैं, लेकिन आरएसएस जैसे संगठनों से घबराए हुए भी हैं. यही बात जम्मू-कश्मीर के बारे में सच होती है जहां मुस्लिम आबादी कहीं ज्यादा है. इन दोनों राज्यों में धर्मांतरण जैसे मामले वोटरों को बीजेपी से दूर करते रहे. तथाकथित हिन्दुत्व उन्हें भयभीत करता है और वे विकल्प की तलाश करते हैं. यही कारण है कि झारखंड में जेएमएम पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद पार्टी ने अपनी स्थिति बिगड़ने नहीं दी.
यह निष्कर्ष बहस का विषय हो सकता है, लेकिन इतना तय है कि वोटर कुछ सोच कर ही बीजेपी के उतने नजदीक नहीं गए जितना पार्टी उम्मीद कर रही थी. पीएम मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं दिखी तो फिर कोई न कोई कारण तो इसके पीछे जरूर रहा है.