इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे सियासी पंडितों को चौंकाने वाले तो हैं ही, कुछ मायने में एकदम अनोखे भी हैं. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि कोई दंपति साथ-साथ लोकसभा में नजर आएगा, वह भी अलग-अलग पार्टियों के टिकट से जीतकर.
बिहार के बाहुबलियों में शुमार किए जाने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीता रंजन, दोनों ही जीत हासिल कर लोकसभा की दहलीज तक पहुंचने वाले हैं. यह अपनी तरह का पहला मामला होगा. खुशकिस्मती से दोनों के दांपत्य संबंध में कभी कोई अलगाव-विलगाव जैसी स्थित भी नहीं आई है.
पप्पू यादव बिहार के मधेपुरा से आरजेडी के टिकट पर चुनाव में खड़े हुए थे. उनकी पत्नी रंजीता ने सुपौल से कांग्रेस पार्टी की ओर से किस्मत आजमाने का फैसला किया था.
मधेपुरा सीट से राजेश रंजन अब तक 1,75,718 वोट हासिल कर चुके हैं. उनके ठीक पीछे जेडीयू के शरद यादव हैं, जो 1,45,289 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर चल रहे हैं. बीजेपी उम्मीदवार विजय कुमार सिंह 1,23,596 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर हैं.
रंजीता रंजन सुपौल में अब तक 2,35,302 वोट जुटा चुकी हैं. दूसरे स्थान पर जेडीयू के दिलेश्वर कामत हैं, जो 2,04,953 वोट हासिल कर चुके हैं. बीजेपी उम्मीदवार कामेश्वर चौपाल को महज 187173 ही वोट मिले हैं.
इस दंपति की जीत में कोई शक की गुजाइश नहीं रह गई है. मतलब देश इस इतिहास को बनता हुआ देख रहा है.
रेस में एक और दंपति, पर कामयाबी में शक...
इस बार एक और दंपति इस तरह की अनोखी रेस में शामिल था, पर यह कामयाब होता नजर नहीं आ रहा है. पंजाब से कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनकी पत्नी परिणीत कौर, दोनों ही चुनावी मैदान में हैं. अमरिंदर सिंह अमृतसर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव का मैदान मारते नजर आ रहे हैं, जबकि उनकी पत्नी व कांग्रेसी उम्मीदवार परिणीत कौर पटियाला सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार डॉ. धरमवीर गांधी से पिछड़ रही हैं.
राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के सियासी सफर पर एक नजर...
राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव हमेशा बिहार में अलग-अलग तरह की भावनाओं को प्रेरित करते रहे हैं. उनके नाम से उनके समर्थकों में प्यार उमड़ पड़ता है, तो विरोधियों में घबराहट पैदा होती है.
जब पटना हाइकोर्ट ने विधायक अजित सरकार की हत्या के मामले में पप्पू यादव को बरी कर दिया, तो वे पिछले साल 22 मई को बेऊर जेल से बाहर आ गए. वे 2008 में दोषी ठहराए जाने के बाद से ही उम्रकैद की सजा काट रहे थे.
पप्पू यादव 1990 में सिर्फ 25 साल की उम्र में ही विधायक बन गए थे और इसके बाद उन्होंने 1991, 1996 और 1999 में तीन बार पूर्णिया लोकसभा सीट पर जीत हासिल की. सीमांचल और कोसी इलाके में अच्छा प्रभाव रखने वाले पप्पू यादव 2004 में मधेपुरा से विजयी हुए थे. 1990 से 2004 के अपने 14 साल के छोटे से राजनैतिक करियर में पप्पू ने छह बार चुनाव लड़ा है और इसमें से पांच बार विजयी हुए हैं.
2004 में मधेपुरा उपचुनाव में जब पप्पू यादव ने अपना पिछला चुनाव लड़ा था, तो उन्होंने जेडीयू के प्रत्याशी आर.पी. यादव को 2.08 लाख के रिकॉर्ड मतों से हराया था. उस समय उनकी जीत को उनकी पार्टी से बढ़कर एक व्यक्ति की जीत माना गया था.
पप्पू यादव साफ तौर से एक सांसद के तौर पर बनी अपनी गरीब समर्थक छवि को ही भुनाने का इरादा रखते हैं. जेल जाने से पहले तक उन्होंने अपनी छवि रॉबिन हुड जैसी ही बना ली थी. उनके जबरदस्त दबदबे की वजह से ही उनके लोकसभा क्षेत्र में बिजली कभी नहीं कटती थी. डॉक्टर गरीबों का इलाज मुफ्त में किया करते थे. वे उनके उत्कर्ष के दिन थे. अब एक दशक के बाद वे इतिहास को दोहरा सकते हैं.