लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के एक दिन बाद ही नीतीश कुमार ने पार्टी की हार की
नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
उन्होंने पार्टी विधायक दल की बैठक रविवार को बुलाई है. इस अहम मोड़ पर नीतीश के अब तक के सफरनामे पर डालिए एक नजर...
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. उन्होंने न केवल राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में दो पारियां खेली हैं, बल्कि केंद्रीय मंत्री के रूप में भी वे सफलता के साथ काम कर चुके हैं.
बिहार के नालंदा जिले के कल्याण बिगहा के रहने वाले नीतीश बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. साल 1974 में जयप्रकाश नारायण के 'संपूर्ण क्रांति' के जरिए राजनीति का ककहारा सीखने वाले नीतीश बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और अपने जमाने के धाकड़ नेता सत्येंद्र नारायण सिंह के भी काफी करीबी रहे हैं.
साल 1985 में नीतीश पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य बने और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष बने और 1989 में जनता दल के सचिव बनाए गए. साल 1989 में पहली बार वे बाढ़ संसदीय क्षेत्र क्षेत्र से सांसद बने. उन्हें केंद्र में कृषि राज्यमंत्री का दायित्व सौंपा गया था.
साल 1998 से 1999 के बीच कुछ समय के लिए नीतीश ने केंद्रीय भूतल और रेल मंत्री का दायित्व संभाला. इसके बाद साल 2001 से 2004 के बीच केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेलमंत्री रहते हुए उन्होंने बिहार के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए.
बीजेपी से गठबंधन टूटने के 11 महीने बाद भी नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किया है. कहा जाता है कि पार्टी में बगावत न हो, इसलिए वे यथास्थिति बनाए हुए हैं. पिछले दिनों कई विधायक पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी करने के आरोप में पार्टी से निकाले जा चुके हैं.
बिहार में जेडीयू और बीजेपी गठबंधन इतनी मजबूती के साथ उभरा कि इसने 15 साल पुरानी लालू-राबड़ी सरकार को उखाड़ फेंका. साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन को बहुमत मिला और नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने. 'न्याय के साथ विकास' उनका मूलमंत्र था. बिहार की सड़कें सुधर गईं, बिजली की आपूर्ति पहले से ज्यादा होने लगी, पटना में कई पुल और फ्लाईओवर बने. बिहार में विकास दिखने लगा.
साल 2010 में एक बार फिर जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को जनादेश मिला, परंतु पिछले साल बीजेपी से गठबंधन टूट गया. नीतीश जेडीयू को धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहलाने लायक बनाने में जुटे रहे.