एक तरफ अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तिथि पर ही सच्ची स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा स्थापित होने की बात संघ प्रमुख कहते हैं. दूसरी तरफ इसी अयोध्या से जुड़ी लोकसभा सीट फैजाबाद में लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब तक हिंदुत्व की सियासत पर बीजेपी को जवाब देना पड़ रहा है. जहां अब बीजेपी हार का जवाब मिल्कीपुर उपचुनाव में जीत से देना चाहती है. वोटिंग पांच फरवरी को है. मिल्कीपुर में फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजित प्रसाद के खिलाफ मंगलवार को बीजेपी उन्ंही की जाति से आने वाले चंद्रभान पासवान को उतारा है.
दरअसल, चुनाव अयोध्या का नहीं मिल्कीपुर का होना है. लेकिन अखिलेश यादव का जोर मिल्कीपुर से ज्यादा अयोध्या पर रहता है. कारण, अखिलेश दिखाना चाहते हैं कि अयोध्या से जुड़ी फैजाबाद लोकसभा की जीत की तरह ही मिल्कीपुर का उपचुनाव जीतकर वो बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति को चुनौती देंगे.
वहीं हाल में नौ उपचुनाव की सीट में मुस्लिम बाहुल्य सीट पर भी कमल खिलाकर बीजेपी अब मिल्कीपुर उपचुनाव को जीतकर बताना चाहती है कि फैजाबाद में समाजवादियों की जीत कोई तीर नहीं तुक्का थी. मिल्कीपुर में मंगलवार को बीजेपी ने चंद्रभान प्रसाद को टिकट देकर समाजवादी पार्टी के अजित प्रसाद के खिलाफ उतारा है. अजित प्रसाद अवधेश प्रसाद के बेटे हैं. बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभान प्रसाद पासी समाज से ही आते हैं, जिससे अवधेश प्रसाद भी आते हैं.
बीजेपी उम्मीदवार चंद्रभान बगल के इलाके रुदौली से दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे हैं. दो साल से मिल्कीपुर सीट पर सक्रिय होकर सियासत करते दिखे हैं. मिल्कीपुर में लड़ाई प्रत्याशियों में नहीं बल्कि सीधे नैरेटिव की है. जहां आमने-सामने अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं.
बता दें कि 2022 में मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद करीब बारह हजार वोट से ही जीतकर विधायक बने, जिनके फैजाबाद से सांसद बनने के बाद पीडीए के पोस्टर बॉय की तरह अखिलेश यादव लेकर चलते आए हैं. संसद में सीट पीछे दिए जाने पर भी अपने साथ आगे ही अखिलेश अवधेश प्रसाद को बैठाते आए हैं. उसी मिल्कीपुर में अब बीजेपी ना सिर्फ जीत हासिल करना चाहेगी बल्कि इतने अंतर से जीतना चाहेगी ताकि बता सके कि पिछड़े दलित अब भी हिंदुत्व की सियासत के साथ ही हैं.