2009 में हुए लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने आपस में हाथ मिला लिया.
पिछली यूपीए सरकार का महत्वपूर्ण हिस्सा रही ये दोनों पार्टियां 2009 के चुनावों के बाद कांग्रेस द्वारा दरकिनार कर दी गई जिसके बाद दोनों ने मिलकर आपस में गठबंधन कर लिया. 2009 में ही बिहार में 18 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में इस गठबंधन ने अच्छी खासी जीत दर्ज की जिससे लालू और पासवान दोनों के हौसले बुलंद हैं.
लालू की मजबूरी थी कि वे पासवान को अपने साथ लें क्योंकि अगर पासवान कांग्रेस के साथ चले जाते तो लालू मुश्किल में पड़ जाते. लालू पहले ही कांग्रेस से नाता तोड़ चुके थे. ऐसे में उन्हें पासवान जैसे नेता की सख्त जरूरत थी जो राज्य में उनके बिगड़े हुए समीकरण को ठीक कर सके और दलित वोटों को राजद के पाले में ला सके. हो सकता था कि अकेले चुनाव में जाने पर लालू की पार्टी का प्रदर्शन पिछले चुनाव से भी बुरा होता. {mospagebreak}
हालांकि लालू ने कभी सोचा न होगा कि उन्हें लोकजनशक्ति पार्टी को इतनी अहमियत देनी होगी. लेकिन मरता क्या न करता. रामविलास पासवान का कद बिहार की राजनीति में धीरे-धीरे इतना ऊंचा हो गया कि लालू को उन्हें अपने साथ लेना ही पड़ा. जहां तक पासवान का सवाल है तो वे इस गठबंधन में रहने के बावजूद खुद को पूरी तरह से लालू के हवाले नहीं कर देना चाहते.
ऐसा लगता है कि पासवान गठबंधन से अलग भी अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं इसलिए दोनों ही नेता अपनी-अपनी शर्तों के साथ-साथ चल रहे हैं. हालांकि यह गठबंधन सत्तासीन जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को उखाड़ फेंकने का दावा कर रहा है लेकिन इनके दावों में कितना दम है यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा. लालू या पासवान दोनों में कोई भी चुनाव नहीं लड़ रहे लेकिन अपनी-अपनी पार्टी की जीत के दावे दोनों ही कर रहे हैं. {mospagebreak}
लालू तो यहां तक कह रहे हैं कि उनकी पार्टी के पिछले 15 साल के शासनकाल में जो कुछ भी हुए उसे भुलाकर जनता उन्हें एक और मौका दे और इस बार वो खुद को साबित कर के दिखाएंगे. दोनों दल क्रमश: 168 तथा 75 सीटों पर किस्मत आजमा रहे हैं.
लालू प्रसाद को जहां गठजोड़ का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था वहीं लोजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष और पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को उप मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया. हालांकि पासवान ने मुसलिम उपमुख्यमंत्री की भी बात कही थी. जब पासवान से इस बारे में पूछा गया कि क्या उनकी नयी मांग का यह अर्थ है कि पारस अब उप मुख्यमंत्री पद के लिए उनके गठजोड़ के उम्मीदवार नहीं हैं, इस पर उन्होंने कहा राज्य में दो उप मुख्यमंत्री हो सकते हैं और इस तरह के कई मामले देखे गये हैं.