लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में संघ परिवार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता. मिजोरम को छोड़कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के साथ-साथ संघ की साख भी दाव पर है, जिसने तमाम विरोधों के बावजूद वीटो लगाकर मोदी को विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कराया.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर विधानसभा चुनाव में करीब 30 सीटों पर मोदी की वजह से वोटों के ध्रुवीकरण होने और उससे पार्टी को नुकसान होने की आशंका जता दी थी.
इस सब के बाद भी, संघ किसी तरह के जोखिम उठाने के मूड में नहीं है. इसलिए 4 दिसंबर को दिल्ली में वोटिंग खत्म होते ही बुधवार की देर शाम संघ नेताओं ने चारों राज्यों के नेताओं की अहम बैठक बुलाई है. इस बैठक में प्रदेशों के प्रभारी, चुनाव प्रभारी, संगठन मंत्रियों के मौजूद रहने के आसार हैं.
संघ की ओर से सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी बैठक में होंगे और बताया जा रहा है कि सरकार्यवाह भैय्या जी जोशी भी इसमें शामिल हो सकते हैं. बैठक का एजेंडा राज्यों में पड़े वोट प्रतिशत की सीटवार समीक्षा और 8 दिसंबर को नतीजे के बाद होने वाले संभावित उलटफेर की आशंका पर भी रणनीति बनाई जाएगी.
बीजेपी और संघ परिवार राजस्थान में अपनी वापसी को लेकर आश्वस्त है, लेकिन पार्टी शासित राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर जिस तरह मीडिया में कयासबाजी हो रही है उससे संघ नेता सशंकित भी हैं. हालांकि मध्य प्रदेश में सीटों के कम होने के बावजूद सरकार बनने की उम्मीद पार्टी को है, लेकिन सबसे अधिक ऊहापोह छत्तीसगढ़ को लेकर है, जहां बीजेपी बेहद सकारात्मक स्थिति में भी खुद को 51 सीट से ज्यादा नहीं दे पा रही. जबकि किसी भी परिस्थिति में पार्टी 47 सीटों के जीतने के अनुमान लगा रही है. हालांकि संघ के प्रतिनिधियों का आकलन है कि बीजेपी की कम से कम 45 सीटें आएंगी. यानी संघ के अनुमानों के मुताबिक ही 90 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी आधी सीटें तो जीत रही है, लेकिन बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पा रही.
हालांकि, छत्तीसगढ़ में परदे के पीछे कान करने वाले अन्य रणनीतिकारों का मानना है कि अगर संगठन ने 20 से 22 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे होते तो स्थिति सहज होती. 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी 21 मौजूदा सीटें खोई थी, लेकिन उसे नई 21 सीटें भी मिल गई थी.
बीजेपी के रणनीतिकार मानते हैं कि इस बार भी पार्टी 15 मौजूदा विधायकों की सीट हारेगी, लेकिन उसकी भरपाई होती दिख रही है. छत्तीसगढ़ में आखिरी वक्त में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी का दौरा जिस तरह बढ़ाया उससे भी बीजेपी की मुश्किल जाहिर हो गई. नतीजों से पहले बीजेपी की सांस अटकी हुई है तो कांग्रेस लगातार सरकार बनाने का दावा ठोक रही है.
इसी तरह, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रोजेक्ट किए जाने के बाद बदले माहौल को पार्टी के ही नेता 2003 में उमा भारती के प्रोजेक्ट किए जाने जैसा मान रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी में एक बार फिर नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी के खिलाफ लालकृष्ण आडवाणी कैंप की आवाज मुखर होगी.
हालांकि तमाम सर्वेक्षणों और संघ के अपने आकलन में पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. राजस्थान में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने को बीजेपी सत्ता परिवर्तन की आहट बता रही है, लेकिन यही फॉर्मूला बीजेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लागू नहीं करना चाहती. हालांकि राजस्थान में जिस तरह ग्रामीण इलाकों में वोटिंग का प्रतिशत बढ़ा है, उससे कांग्रेस की उम्मीद जगी है. इसे कांग्रेस अशोक गहलोत सरकार की लोक-लुभावन योजनाओं का असर बता रही है. राजस्थान के बारे में तो बीजेपी और कांग्रेस खेमे से एक बात बिलकुल साफ आ रही है कि अगर राजस्थान में गहलोत की जीत हुई तो यह लोक-लुभावन योजनाओं की वजह से होगी और बीजेपी जीती तो सारा क्रेडिट नरेंद्र मोदी की लहर को जाएगा.
अब देखना होगा कि बीजेपी की कमान पूरी तरह अपने हाथ में ले चुका संघ संभावित त्रिशंकु विधानसभा वाले राज्यों के लिए क्या चुनावी रणनीति बनाता है.