मान गए आडवाणी. पूरी पार्टी ने मान मनौव्वल की. मोदी ने भी आडवाणी के दरबार में माथा टेका. लेकिन सवाल तो यही उठता है कि आखिरकार संघ कहां था.
सूत्रों की मानें तो संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति की बैठक से नदारद रहे आडवाणी की मांग को नजरअंदाज करते हुए जब संसदीय बोर्ड ने ऐलान कर दिया कि मोदी ही गांधीनगर से उम्मीदवार होंगे तो आडवाणी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. तनातनी की खबर फैली और बैठक खत्म होते ही मोदी को संघ ने तलब कर ही लिया. सरसंघचालक मोहन भागवत के दरबार में पेशी हुई.
पिछले दो मौकों पर जब आडवाणी मोदी के अहम का टकराव हुआ तो संघ बचाव में सामने खड़ा था. लेकिन इस बार सूत्रों की माने तो संघ के तेवर बदले-बदले से थे. सूत्र बताते हैं कि मोदी को संघ ने साफ-साफ कहा कि हर बार संघ अंदरूनी झगड़ों में सीधा हस्तक्षेप नहीं करेगा. सरसंघचालक ने कहा कि सब मिलकर मिशन 272 के लिए काम करें और ऐसे झगड़ों से पार्टी की छवि को धक्का ही लगता है. संघ ने ये भी कहा कि पार्टी नेता मिल बैठ कर खुद ही अपने झगड़े निबटाएं. संघ का रुख भांपते ही मोदी गुरुवार सुबह ही आडवाणी के घर जा पहुंचे. जीत के लिए आशीर्वाद भी मांगा और गांधीनगर से लड़ने के लिए आग्रह भी किया.
आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सुषमा और गडकरी भी मान मनौव्वल में लगे हैं. आडवाणी ने बुधवार को ही संदेश दे दिया था कि संसदीय बोर्ड गांधीनगर की तरह भोपाल से भी उन्हें लड़ाने का प्रस्ताव रखे और फिर वो तय करेंगे की लड़ाई कहां से लड़नी है. और तय यही हुआ कि राजनाथ ऐसा बयान देंगे फिर आडवाणी भी गांधीनगर के पक्ष में बयान देकर मामले को रफा दफा कर देंगे. जब राजनाथ ने कह दिया कि आडवाणी तय करें कि वो भोपाल से लड़ेंगे या गांधीनगर से, तब जाकर आडवाणी ठंडे पड़े. ठीक ही कहा है कि अंत भला तो सब भला लेकिन किसका भला इस पार्टी और संघ दोनो को मंथन करना पड़ेगा.