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तो क्या शाहनवाज हैं वसुंधरा के लिए लकी?

चुनावी शंखनाद होते ही राजनेताओं की सक्रियता बढ़ गई है. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने और चुनाव की तारीखों के एलान के बाद बीजेपी के कुछ नेता अपनी छवि को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए शुभ बताने में जुटे हैं. इस श्रेणी में सबसे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन का नाम है.

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वसुंधरा राजे
वसुंधरा राजे

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चुनावी शंखनाद होते ही राजनेताओं की सक्रियता बढ़ गई है. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने और चुनाव की तारीखों के एलान के बाद बीजेपी के कुछ नेता अपनी छवि को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए शुभ बताने में जुटे हैं. इस श्रेणी में सबसे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन का नाम है.

आचार संहिता लागू होने के बाद बीजेपी की ओर से राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार और प्रदेश अध्यक्ष वसुंधरा राजे ने अपनी पहली सभा अजमेर में की तो केंद्रीय नेतृत्व की ओर से शाहनवाज हुसैन ने उसमें शिरकत की. रैली खत्म होने के बाद हुसैन ने लगातार दो ट्वीट किए. पहला तो उन्होंने बताया कि कैसे 2003 में वसुंधरा राजे ने अपना नामांकन दाखिल करते वक्त उनकी ही कलम का इस्तेमाल किया था.

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हुसैन ने इसी ट्वीट में यह भी लिखा कि इस बार राजे उनकी ही कलम का इस्तेमाल अपना नामांकन पत्र भरते समय करेंगी. कुछ देर बाद ही हुसैन ने दूसरा ट्वीट किया कि 2003 में आचार संहिता लागू होने के बाद बीजेपी की पहली सभा अजमेर में हुई थी और उस वक्त भी वे उस सभा में शरीक हुए थे.

यानी शाहनवाज ने इशारों ही इशारों में खुद को वसुंधरा राजे को सत्ता तक पहुंचाने में ‘लकी चार्म्‍स’ साबित करने की कोशिश की. लेकिन हुसैन शायद यह भूल गए कि 2003 में राजस्थान बीजेपी और स्थानीय संघ एकजुट था. तब बीजेपी के सबसे बड़े रणनीतिकार प्रमोद महाजन खुद राजस्थान विधानसभा की चुनाव संभाले हुए थे. लेकिन 2013 की परिस्थति वैसी नहीं है, पार्टी की गुटबाजी और संघ नेताओं से राजे की कड़वाहट जगजाहिर है.

अगर हुसैन वाकई राजे के लिए लकी हैं और इतिहास दोहराने की संभावना खुद के लकी होने से ही जता रहे हैं तो यह भी संभव है कि सत्ता में आने के बाद जो वसंधरा राजे का अपने मंत्रियों से टकराव और गुटबाजी सामने आई थी, वह दोहराएगा.

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