राज्यसभा में जेडीयू से सांसद हरिवंश और अभिनेता शेखर सुमन ने 'पंचायत आज तक' में बिहार के बदलाव की वकालत की. शेखर सुमन ने कहा कि राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी का हमारे समाज में बुरा असर पड़ रहा है. वहीं, हरिवंश ने बिहार को नजरअंदाज किए जाने पर सवाल उठाए.
हरिवंश: बिहार में पिछले कुछ वर्षों में लॉ एंड ऑर्डर दिखाई दिया है. यह सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं है. गांव और ब्लॉक स्तर तक प्रशासन में सुधार हुआ है. संस्थान और संस्थाओं का विकास हुआ. समाज के हर तबके को साथ लेकर आगे बढ़ना. साइकिल योजना का प्रयास सफल रहा और इसका असर आगे आने वाले समय में दिखेगा. ये बुनियादी चीजें हैं. विकास के रास्ते पर बिहार बढ़ रहा है.
एक वक्त था राजकपूर जब को बिहार आना पड़ा. आज पलायन बहुत बड़ी समस्या है. गड़बड़ी कहां है
शेखर सुमन: पॉलिटिकल विल की कमी रहती है तो इसका असर समाज पर भी पड़ता है. हमलोग बहुत ज्यादा वक्त बहस और चर्चा में बिता देते हैं. शुरुआत धीमी गति
से होती है. हम विकास और बदलाव को लेकर बहस करते रह जाते हैं और एक समय के बाद इसे कोई सुनना नहीं चाहता. पॉलिटिकल विल और पॉलिटिकल विजन दोनों
की कमी इसके लिए कारण है. इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत मायने रखता है. यहां तक कि एयरपोर्ट पर जब प्लेन टेकऑफ कर रहा होता है तो चार कुत्ते उसके साथ रेस लगा रहे
होते हैं. इतनी हिदायतें आती हैं. इतने बड़े शहर में एक फाइव स्टार होटल नहीं है. ये सतही चीजे हैं. लेकिन बाहर से कोई आता है तो असर करती हैं.
वो कौन सी स्थिति थी कि राज्य में जो न्यूनतम जरूरते हैं वो नहीं मिल पाईं? जनता के भीतर नेताओं को लेकर गुस्सा है कि कुछ हो नहीं रहा.
शेखर: गुस्सा हमेशा रहेगा. क्योंकि जो वादे किए जाते हैं वो पूरे नहीं होते. नेता हम करेंगे कि जगह हम ने किया क्यों नहीं कहते. एक बार में नल और दूसरे बार में
पानी क्यों आता है. एक ही बार में नल के साथ पानी की व्यवस्था क्यों नहीं होती. ये केकड़े वाले स्थिति है कि काटना उसकी आदत है. कहने से कुछ नहीं होता.
मैं बिहार उतरता हूं तो मुझे यहां का चुनाव सैद्धांतिक लड़ाई बताया जाता है. लेकिन मुझे तो लगता है कि यहां पोस्टर की लड़ाई है. मेरा पोस्टर सबसे बड़ा. जुमले की
निंदा होती है और जवाब में जुमला ही पेश किया जाता है. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इसके लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी है. पानी की व्यवस्था नहीं, सड़क नहीं,
खेत के रास्ते सब चल रहे हैं. ऐसा नहीं है कि हो नहीं सकता, सोच ले तो जरूर हो सकता है.
राजनीतिक विकल्प निकल कर नहीं आया.
हरिवंश: आज आया है कि गुजरात बिजनेस करने के लिए सबसे सही है. लेकिन वहां क्या कुछ हुआ है यह किसी से छिपा नहीं. दरअसल, बिहार को नेगलेक्ट किया गया.
जानबूझकर बिहार के साथ डिस्क्रीमिनेशन हुआ. बिहार 1974 में जगा, उसने सपना देखा. बीते वर्षों में बिहार में कोशिश ये हुई कि मानव श्रम पर खर्च हो. बिहार में
अपनी आर्थिक प्रगति से दिखा दिया कि वह सबसे आगे है और उसे उसका हक मिलना चाहिए. देश में जो इकोनॉमिक मॉडल है, उससे हम कहां जा रहा है.
बिहार अभी भी कृषि आधारित है. राज्य अभी भी न्यूनतम की लड़ाई लड़ रहा है.
हरिवंश: नीतीश कुमार का जो कृषि रोडमैप है वह इस ओर एक कोशिश है. आप देखेंगे कि आईआईएम की पढ़ाई के बाद लड़के आकर राज्य में कृषि के क्षेत्र में काम कर
रहे हैं. जो पूंजीवाद का संकट है उसका वैकल्पिक मॉडल क्या होगा, ये मैं नहीं बता सकता.
बॉलीवुड हो या जर्नलिज्म हर जगह बिहार के लोग हैं. तो ऐसा कारण है कि लोग आ नहीं रहे हैं.
शेखर: जब राजनीतिक महौल सही नहीं होगा, कुछ होगा नहीं. हम गर्व से कहते हैं कि आईएएस, अधिकारी, पढ़ाने वाले सब बिहारी हैं, लेकिन बिहार की हालत खस्ता है.
कारण यह है कि बिहार में माहौल सही नहीं है. सुविधाएं नहीं हैं. कारण है कि संकीर्ण राजनीति यहां चलती रही है. जात पात से ऊपर उठकर राज्य सोच नहीं पा रहा.
राजनीतिक लोग महौल बना नहीं पा रहे. जब तक राजनीति के लोग सही रास्ता नहीं दिखाएंगे लोग उस पर चलेंगे कैसे. स्कूल का प्रिंसिपल अच्छा हो तभी विद्यार्थी
अच्छे निकलेंगे. पॉलिटिकल विल की जरूरत है. आप देखेंगे कि जैसे देश अर्थव्यवस्था में मजबूत हो रहा है. लोगों का विश्वास जग रहा है, जो भारतीय विदेशों में बसे हैं
वो हिंदुस्तान लौट रहे हैं. ऐसा ही बिहार के साथ ही होगा, अगर विकास हो. लेकिन जाहिर है कुछ लोग नहीं चाहते कि ऐसा हो और उनकी राजनीति चलती रहे.
गुजरात में दंगे हुए, महाराष्ट्र में दंगे हुए. बिहार में ऐसा नहीं हुआ लेकिन कोई तो कारण है जो नए बिहार को रोक रहा है.
हरिवंश: आप देखिए कि मुनष्य में अपार संभावनाए हैं. जयप्रकाश नारायण शिकागो में पढ़ते थे. उन्हें बड़ी नौकरी मिल सकती थी. लेकिन उन्होंने राजनीति के बाहर रहकर
नई परंपरा शुरू की और समाज को जगाने की कोशिश की. उन्होंने लोगों में महौल बनाया और आस्था जगाई. मुझे उम्मीद है कि बिहार में कोई ऐसा पैदा होगा. मुझे
उम्मीद है कि जो बिहार के लोग बाहर हैं वो आएंगे और उम्मीद जगाएंगे.
सुमनः पीछे की बातें बहुत की जाती हैं. उन लोगों के नाम लिए जाते हैं जिन्होंने बिहार के विकास में योगदान दिया. लेकिन आगे क्या करना है ये कोई नहीं बोलता. आगे की बातें क्यों नहीं करते? बचपन की यादे हैं. होली, दीवाली मनाते थे. यहां की जितनी भी संस्थाएं जानी मानी थीं. पिछली होली मैं आया, देखा दो-चार ही लोग यहां रह गए हैं. मैं यहां आता रहूंगा. यहां के सोशन रिवॉल्यूशन में सहयोग दे सकूं. यह मेरी सोच है. वो सुबह आएगी. हम निगेटिव हो जाएं, ऐसा नहीं होगा.
हरिवंशः मैं जान बूझ कर अतीत की बातें करता हूं. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश लोग चर्चिल की ओर देखे. पटना मेडिकल कॉलेज, इस देश में ही नहीं बल्कि वर्मा तक सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज था. आधे एफआरसीएस स्टूडेंट केवल पटना कॉलेज से थे. एजुकेशन में वीसी पैरवी के आधार पर बनने लगे. जाति के आधार पर लड़के टॉप करने लगे. सिलिकन वैली की चर्चा हम सुनते हैं. वहां से निकली चीज आज वहां पहुंच गई जहां बहुत आसानी से गाड़ियां भी नहीं पहुंचतीं. बच्चों से वैल्यूज पर बातें करने वाला भी आज तकनीक पर बातें करता है.
शेखर सुमन ने अंत में कहा, ‘सही पार्टी को सरकार में लाना बहुत जरूरी है. कौन किसके साथ था, किससे शादी की. गठबंधन में कभी कभी गांठ भी लग जाती है. अगर आपसे नहीं हो रहा है तो कभी कभी दूसरों को भी करने दें. घर में बावर्ची बहुत सही है लेकिन खाना एक ही तरह का बनाता है तो आप उससे कुछ अलग बनाने कहेंगे. बदलाव का एक मौका दीजिए.’ उन्होंने इस शब्दों के साथ इस सेशन का अंत किया, ‘इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा. जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा.’