दुमका का दंगल एक बार फिर दिलचस्प होने जा रहा है. झारखण्ड के दो कद्दावर आदिवासी नेता शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी 15 सालों बाद एक बार फिर आमने-सामने होंगे.
गौरतलब है कि साल 2000 में झारखण्ड राज्य का गठन होने के बाद बाबूलाल मरांडी सूबे के मुख्यमंत्री बने और फिर उन्होंने दुमका की जमीन को अलविदा कह दिया था.
झारखण्ड में यूं तो लोकसभा की हर सीट पर कांटे की टक्कर की उम्मीद जताई जा रही है, लेकिन झारखण्ड की उप-राजधानी दुमका से बाबूलाल मरांडी के चुनाव मैदान में उतरने से चुनावी परिदृश्य काफी बदल गया है. यहां दो चिर प्रतिद्वंद्वी 15 साल के बाद एक बार फिर आमने-सामने हैं. दुमका ST सुरक्षित सीट है.
संथाल आदिवासी बहुल इस सीट में यूं तो शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी, दोनों बाहरी संथाल आदिवासी हैं, लेकिन दोनों की जमीनी पकड़ खासी मजबूत है. इन दोनों दिग्गजों के बीच हुए पिछले मुकाबलों में मरांडी को दो बार शिकस्त मिली है, वहीं शिबू सोरेन को एक बार मुंह की खानी पड़ी है. वैसे बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन को हराकर हिसाब बराबर कर चुके हैं. बाबूलाल के चुनाव मैदान में उतरने से शिबू सोरेन भी काफी उत्साहित हैं. उनका कहना है कि नेता की लड़ाई आखिरकार नेता से है.
दुमका सीट इस बार दोनों क्षत्रपो के लिए नाक की लड़ाई बन गया है. वैसे 24 मार्च को बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी दुमका में रैली आयोजित कर यहां भगवा रंग चढ़ाने की पूरी कोशिश करने वाले है. वैसे मोदी लहर इस आदिवासी बेल्ट में भी असरदार होगी, इसकी सम्भावना कम है.