सोलह महीने से क्षेत्र की खाक छान रहे लखनऊ लोकसभा सीट से सपा के उम्मीदवार अशोक वाजपेयी का गुरुवार दोपहर अचानक टिकट काट दिया गया. अखिलेश सरकार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री अभिषेक मिश्र को उनकी जगह उम्मीदवार घोषित किया गया है.
पुराने समाजवादी अशोक बाजपेयी की जगह पहली बार के विधायक अभिषेक मिश्र, हो सकता है सपा ने लखनऊ संसदीय सीट पर सियासी रणनीति के तहत फेरबदल किया हो, पर गैर बीजेपी दलों के ब्राह्मण प्रत्याशियों की मौजूदगी में राजनाथ सिंह की लड़ाई परोक्ष तौर पर आसान बनती नजर आ रही है. ऐसे में बीजेपी से तमाम नाराजगी के बावजूद ब्राह्मण मत किसी एक प्रत्याशी के साथ एकजुट नहीं हो पाएंगे.
दरअसल साढ़े तीन लाख ब्राह्मण मतदाताओं की उपस्थिति के कारण लखनऊ सीट पर ब्राह्मण मत कई चुनावों से निर्णायक हो गया है, जो अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव लड़ने तक पूरी तरह से बीजेपी के साथ था. मैदान से उनके हटने के साथ ही इस बड़े वोट बैंक में दरारें नजर आने लगीं. बीजेपी का गढ़ बन चुकी लखनऊ सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में अटल के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले लालजी टंडन से कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी की मात्र 38000 मतों से हार से निष्कर्ष निकाला गया कि ब्राह्मणों ने बीजेपी की जगह सजातीय प्रत्याशी को भी कम महत्व नहीं दिया.
लखनऊ के इस मिजाज को मुलायम सिंह ने भी भांपा और विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशियों को उतारा. दोनों अभिषेक मिश्र व शारदा प्रताप शुक्ला जीते भी. लखनऊ सीट के इस जातीय चरित्र को समझते हुए लोकसभा चुनाव के लिए सपा ने अशोक वाजपेयी व बसपा ने नकुल दुबे के नाम की घोषणा काफी पहले कर दी थी. रीता बहुगुणा पिछले चुनाव की रनर-अप थीं, सो कांग्रेस से उनका तो क्लेम बनता ही था. अटल की विरासत का वाहक बनने की चाहत के तहत राजनाथ सिंह ने लखनऊ से ही चुनाव लड़ने का फैसला किया, पर टिकट वितरण के साथ कुछ ऐसा हुआ कि ब्राह्मणों के एक तबके में उनके प्रति नाराजगी का भाव मुखर होने लगा.
स्थिति यह उभर रही थी कि गैर बीजेपी दलों का जो प्रत्याशी ब्राह्मणों में ज्यादा घुसपैठ करता दिखेगा, मुस्लिम वोट भी उसी ओर मुड़ेगा. ऐसे में करीब साढ़े चार लाख मुस्लिम मतों और ब्राह्मणों का गठजोड़ कोई भी गुल खिला सकता था. सियासत के जानकार कहते हैं कि सपा ने अशोक वाजपेयी की तुलना में कमजोर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर लखनऊ के ब्राह्मण मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया है, जिसका सीधा फायदा फिलहाल राजनाथ सिंह को मिलता नजर आ रहा है.