नरेंद्र दामोदरदास मोदी इधर लगातार व्यस्त रहे हैं. वे जनता से संवाद में माहिर हैं और अब तक 300 से अधिक रैलियों को संबोधित कर चुके हैं. उनकी पार्टी के किसी भी नेता ने इतनी रैलियों को संबोधित नहीं किया है. वे मॉडल मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपने राज्य को विकास का पर्याय बना दिया है. और उनके प्रशंसकों का कहना है कि वे राज्य के बाहर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. 2002 के सांप्रदायिक दंगे अतीत की कहानी बन चुके हैं और मोदी तब से लंबा, बहुत लंबा रास्ता तय कर चुके हैं. कम-से-कम मोदी का तो यही सोचना है. लेकिन गुजरात 2002 का परिदृश्य उस व्यक्ति के लिए एक बार फिर परेशानी का सबब बन गया है, जो भारत के जनमानस में किसी-न-किसी रूप में अपनी जगह बना चुका है.
सुप्रीम कोर्ट ने दंगों के 10 विशेष मामलों की जांच करने वाली विशेष जांच टीम (एसआइटी) से मोदी, उनके 11 मंत्रिमंडलीय सहयोगियों, पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों की भूमिका की तह में जाने को कहा है. सो, आधुनिक विकास के पैरोकार को 2002 के दंगों में अपनी सरकार के खिलाफ निष्क्रियता या उनमें कथित रूप से शामिल होने के आरोपों के जवाब में अचानक ही बचाव पर उतर आना पड़ा है. मोदी विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के लिए जाने जाते हैं. लिहाजा, वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. वे खुद को पीड़ित बनाए जाने और शहीद हो जाने का नारा दे रहे हैं. उनके भाषणों में ललकार बढ़ती जा रही है.
और इसके राजनैतिक नतीजे तुरंत दिखने भी लगे हैं. भाजपा कार्यकर्ताओं का एक तबका, जो शुरू में टिकटों के बंटवारे से नाखुश था, उस समय उत्साहित हो उठा जब मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पीछे की ''राजनैतिक साजिश'' का ''पर्दाफाश'' किया. जैसी कि उम्मीद की जा रही थी, बोफोर्स प्रकरण के अभियुक्त ओत्ताविओ क्वात्रोकी को हाल में सीबीआइ से मिली क्लीन चिट मोदी के बहुत काम आई. राज्य में प्रचार के अंतिम दिन उन्होंने एक रैली में कहा, ''यह मेरे खिलाफ कांग्रेस की साजिश है. कपिल सिब्बल ने एक टेलीविजन इंटरव्यू में अधिकृत तौर पर कहा कि मुझे 2002 के प्रकरण के लिए जेल जाना होगा. कांग्रेस भले ही सहमत न हो, लेकिन मैं भारत माता का बेटा हूं. सो, कांग्रेस के राज में भारत माता के बेटे को जेल मिलेगी और क्वात्रोकी को बेल (जमानत).'' एक दूसरी रैली में उन्होंने कहा, ''गुजरात के बहादुर बेटे के रूप में मैं जेल जाने को तैयार हूं. यहां तक कि फांसी पर भी चढ़ने को तैयार हूं. अगर मुझे जेल और फांसी में से किसी एक को चुनने के लिए कहा जाए तो मैं फांसी चुनूंगा ताकि गुजरात की सेवा करने के लिए दोबारा जन्म ले सकूं.''
{mospagebreak}जनता के बीच इस बहादुराना तेवर को छोड़िए, सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस सच को रेखांकित करता है कि 2002 की विरासत से आधुनिकता के पैरोकार के इस व्यक्ति की चमक खत्म हो सकती है, जो विकास की कसमें खाता है. कांग्रेस ने पहले ही मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर दी है. इसके अतिरिक्त, कोर्ट के आदेश के कारण मोदी के लिए अमेरिकी वीसा हासिल करना और भी मुश्किल हो जाएगा. उन्हें 2005 में भी अमेरिकी वीसा देने से इनकार कर दिया गया था. विशेष जांच टीम को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी है. यदि रिपोर्ट में उन्हें पूरी तरह से निर्दोष ठहराया जाता है तो मोदी राजनैतिक रूप से और अधिक सशक्त होकर उभरेंगे. और यदि उन्हें या उनके प्रशासन पर उंगली उठाई जाती है तो उनकी पार्टी के बाहर-भीतर के उनके विरोधी उसका इस्तेमाल करेंगे. जैसाकि एक भाजपा नेता ने टिप्पणी की, ''यह मोदी के लिए दोधारी तलवार में तब्दील हो सकता हैः इससे फौरी राजनैतिक लाभ तो मिलेगा लेकिन दीर्घकालिक तौर पर यह हानिकर साबित होगा.''
मोदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी .जकिया जाफरी के एक आवेदन पर आधारित है. यहां यह बात गौरतलब है कि एहसान उन 38 लोगों में शामिल थे जिन्हें राज्य में दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी में हिंदुओं की एक भीड़ ने मार डाला था. .जकिया ने 2007 में दायर अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि मोदी ने दंगे भड़काए और दंगों के बाद कई मामलों में गठित पुलिस जांच महज एक दिखावा थी. उस जांच का मकसद मुख्यमंत्री, उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों, शीर्ष पुलिस अधिकारियों और अफसरशाहों सहित कुल 62 लोगों को किसी तरह बचाना और निर्दोष साबित करना था. .जकिया चाहती हैं कि मुख्यमंत्री मोदी और अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश और हत्या के आरोप लगाए जाएं और उन पर मुकदमा चलाया जाए.
दूसरी तरफ, मोदी के कट्टर समर्थकों का आरोप है कि वामपंथी झुकाव वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता .जकिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. विशेष जांच टीम ने सुप्रीम कोर्ट को हाल में सौंपी अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि किस तरह अहमदाबाद के दंगे के एक मामले में कम-से-कम तीन प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस से कहा कि उन्हें उनकी लिखित शिकायत के मजमून के बारे में कुछ नहीं मालूम नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार, उन प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस के पहले से तैयार एक बयान पर दस्तखत कर दिए थे. यह बयान उन्हें एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के वकील ने दिया था.
{mospagebreak}अन्य छह गवाहों के मामले में, जो इन कार्यकर्ताओं के करीबी संपर्क में थे, विशेष जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनके लिखित बयान उनके मौखिक बयान से मेल नहीं खाते. रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक पी.सी. पांडे पर लगा यह आरोप निराधार था कि उन्होंने गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार के समय निष्क्रिय रहकर दंगाइयों की मदद की. दंगों से असंबद्ध एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''यदि विशेष जांच टीम ने 2002 के गुजरात दंगों में गुजरात पुलिस के कुछ अधिकारियों को दोषी पाया तो उसे जांच के दौरान यह भी पता चला कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कई निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए अतिरिक्त जुगत भिड़ाई. गुजरात के बाहर के अधिकारियों ने पाया कि गुजरात की तस्वीर उतनी खतरनाक नहीं है जितनी कि इन कार्यकर्ताओं ने पेश की है.'' दंगों की जांच के लिए मोदी सरकार द्वारा बैठाए गए नानावटी आयोग ने अभी तक एक आंशिक रिपोर्ट दी है. हालांकि उसने गोधरा नरसंहार में गुजरात पुलिस की जांच को सही माना है, लेकिन उसे उसके बाद राज्य में हुए दंगों की रिपोर्ट अभी देनी है.
सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश विशेष जांच टीम द्वारा राज्य की मंत्री मायाबेन कोडनानी को गिरफ्तार किए जाने के बाद आया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने अहमदाबाद के बाहर स्थित नरोदा पटिया में मुसलमानों पर हमले के लिए एक हिंदू भीड़ को उकसाया था. इसके पहले विशेष जांच टीम ने एक उप पुलिस अधीक्षक को गिरफ्तार किया था. विशेष जांच टीम जब तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौपेंगी तो उसमें नए रहस्योद्घाटन होंगे. उससे फायदा या घाटा सिर्फ एक व्यक्ति को होगा. और वह व्यक्ति हैं नरेंद्र मोदी, जो आज देश के सबसे तेजतर्रार नेताओं में से एक हैं. वे किसी भी कीमत पर उस तीन महीने के कीमती समय को व्यर्थ जाया नहीं करना चाहेंगे.
मामला क्या है
2002 :साबरमती एक्सप्रेस में 59 हिंदुओं के मारे जाने के बाद भड़के दंगों में 1,100 से अधिक लोग मारे गए, उनमें ज्यादातर मुस्लिम थे.
2004 :सुप्रीम कोर्ट ने बेस्ट बेकरी मामले को महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दिया.
2007 :जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मोदी, मंत्रियों, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
2008 :सुप्रीम कोर्ट ने 10 मामलों की जांच के लिए पूर्व सीबीआइ प्रमुख आर.के. राघवन के नेतृत्व में एक विशेष जांच टीम गठित की.
2009 : मंत्री मायाबेन कोडनानी गिरफ्तार.
अप्रैल 09 :सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी को दंगों में मोदी और अन्य की भूमिका की जांच करने का आदेश दिया.