राजधानी भोपाल की हसीन शामला हिल्स पर भोजताल (झील) के ऊपर मुख्यमंत्री का सरकारी बंगला तिहरे सुरक्षा घेरे में दूर से शांत नजर आता है. लेकिन उसके परिसर में काफी गहमागहमी है. पार्किंग में गाडिय़ों की भारी भीड़ है. राज्य के अलग-अलग हिस्सों से बीजेपी कार्यकर्ता टिकट की आस में बसों और जीपों में भरकर पहुंचे हैं और हर ओर उनका जमावड़ा है. वेटिंग रूम के लेदर के सोफों पर दर्जन भर से अधिक पत्रकार चाय की चुस्की लेते हुए अधीर हो रहे हैं. मुख्यमंत्री का ताम-झाम भी बढ़ गया है. उनके अमले में कुछ अतिरिक्त सुरक्षा गार्ड, कुछ अतिरिक्त टाइमकीपर, जो हर मिलने वाले के समय में कटौती कर रहे हैं, और रसूखदार तथा सत्ताधारियों की इमेज मैनेजमेंट तथा उनकी खातिर लॉबी करने में माहिर एपको वर्ल्डवाइड के प्रतिनिधि आ जुड़े हैं.
शिवराज सिंह चौहान चेहरे पर मुस्कराहट और हाथ जोड़कर हर किसी का स्वागत करते हैं. लेकिन आज उनके पास साथ बैठकर चाय और बिस्कुट लेने की फुरसत नहीं है. वे अपने कमरे में बैठे संभावितों की सूची खंगाल रहे हैं, बीच-बीच में टिकटार्थियों के फोन सुनते रहते हैं. वे किसी राज्य के मुखिया से ज्यादा युद्ध की तैयारी में जुटे जनरल जैसे नजर आते हैं. जाहिर है, वे चुनाव में उतरने वाले हर नेता की तरह असुरक्षित महसूस कर रहे हैं लेकिन भीतर ही भीतर वे कुछ आश्वस्त भी हैं क्योंकि राज्य के विभिन्न हिस्सों से आ रही खबरें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उनके ऐतिहासिक तीसरे कार्यकाल का ही संकेत दे रही हैं.
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इंडिया टुडे-ओआरजी जनमत सर्वेक्षण के नतीजों से भी यही संकेत मिल रहा है. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख और घुमा-फिराकर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कांग्रेस के ग्राफ में अंतिम दौर में कुछ बढ़ोतरी हुई है. जनमत सर्वेक्षण में 230 सदस्यीय विधानसभा में चौहान की बीजेपी को 5 प्रतिशत वोटों में इजाफा होने के संकेत के बावजूद 143 सीटें मिलने का अनुमान है, जो 2008 में मिली सीटों के बराबर ही है. सर्वेक्षण के मुताबिक कांग्रेस के वोट में भी चार प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है, लेकिन सीटों में मामूली बढ़ोतरी, पिछली बार के 71 के मुकाबले 78 का ही अनुमान है.
शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के कारण राज्य के लोग उन्हें दोबारा मौका देंगे. जनमत सर्वेक्षण के नतीजे भी यही बताते हैं. सर्वेक्षण में 46 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री का इन चुनावों में तुरुप का पत्ता कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन है. चौहान ने इंडिया टुडे से कहा, ‘‘हमने ये योजनाएं पंचायतों से बात करके लागू की हैं. ये योजनाएं अब हमें ‘‘कल्याणकारी राज्य्य के करीब ले जा रही हैं.’’
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केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के 2012-13 के प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश 10.02 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के साथ देश के आला राज्यों में है. पिछले 10 साल के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सड़कों का जाल 44,787 से बढ़कर 90,000 किलोमीटर हो गया है. सिंचाई का क्षेत्र 7.5 लाख हेक्टेयर से बढकऱ 25 लाख हेक्टेयर यानी तीन गुना हो गया है. बिजली उत्पादन क्षमता 4,673 मेगावॉट से बढ़कर 10,621 मेगावॉट हो गई है. और राज्य में गेहूं की पैदावार भी तीन गुना हो गई है.
लेकिन सिंधिया और उनकी नई-नवेली एकजुट कांग्रेस वोटरों से कह रही है कि ये आंकड़े झूठे हैं. इस पर विवाद है कि 17 अक्तूबर को सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में राहुल गांधी की सभा में कितनी भीड़ जुटी, जिसमें राज्य सरकार के इन आंकड़ों को राहुल, सिंधिया और दूसरे बड़े नेताओं ने बकवास बताया. बीजेपी नेताओं का कहना है कि 70,000 की भीड़ थी लेकिन कांग्रेस का दावा है कि 1,50,000 लोग वहां पहुंचे. बुंदेलखंड और बघेलखंड क्षेत्रों के पिछड़ेपन पर फोकस कर रही कांग्रेस की मुख्य चुनावी रणनीति यही धारणा पैदा करने की है कि मध्य प्रदेश की प्रगति की कहानी अच्छी लगने वाली दंतकथा से ज्यादा कुछ नहीं है.
चौहान ऐसी बातों पर हंस कर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट का जिक्र करते हैं, जो बतौर राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सिंधिया के जिम्मे है. वे कहते हैं, ‘‘मैं जानता हूं कि कांग्रेस क्या कह रही है. सिंधिया के ही मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक मध्य प्रदेश में बिजली की स्थिति देश में सबसे बेहतर है. या तो उसके आंकड़े झूठे हैं या फिर वे सचाई से इनकार कर रहे हैं.’’ वे सिंधिया के इस आरोप का भी खंडन करते हैं कि राज्य में कृषि पैदावार के आंकड़े इस वजह से बढ़े हुए दिखते हैं क्योंकि राज्य सरकार केंद्र से मिले अनाज को दूसरे राज्यों में बेच देती है. चौहान पूछते हैं, ‘‘क्या आंकड़ों में हेरा-फेरी करना बच्चों का खेल है? यूपीए सरकार ने कृषि उपज के लिए हमें अवार्ड दिया. राष्ट्रपति ने हमें सम्मानित किया. क्या फर्जी आंकड़ों पर ही ये अवार्ड दिए जाते हैं?’’
लेकिन एक आरोप तो बदस्तूर टिकता है कि मानव विकास सूचकांक के कई मानकों पर राज्य का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. मसलन, राज्य में महिला साक्षरता दर सिर्फ 60 प्रतिशत है, शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 शिशुओं में 59 यानी राष्ट्रीय औसत 44 प्रतिशत से काफी अधिक है, और अपराध दर भी ऊंची है. चौहान कहते हैं, ‘‘ऐतिहासिक रूप से मध्य प्रदेश शिशु मृत्यु दर और स्त्री-पुरुष अनुपात जैसे मामलों में पिछड़ा रहा है. ये वह क्षेत्र हैं जिनमें धीरे-धीरे ही सुधार लाया जा सकता है. यह सही है कि खासकर महिलाओं के खिलाफ दुर्भाग्यपूर्ण वारदात और अपराध हुए हैं.
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लेकिन हम इसे मुकदमों की गति तेज करके घटाने की कोशिश कर रहे हैं. हम हाल ही में 10 लोगों को फांसी की सजा दिलवाने में सफल रहे हैं. अब जांच-पड़ताल 15 दिनों में पूरी हो रही है और अदालतें तेजी से फैसले सुना रही हैं.’’ दूसरी समस्या भ्रष्टाचार की है. जनमत सर्वेक्षण में इसे 16 प्रतिशत लोग सरकार की सबसे बड़ी विफलता मानते हैं. चौहान की दलील है कि राज्य से अफसरशाही में भ्रष्टाचार की खबरें इसलिए ज्यादा आई हैं क्योंकि सरकार अपने अधिकारियों पर अंकुश कसने में डरती नहीं है.
लेकिन बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता आश्वस्त हैं कि पार्टी को राज्य में बह रही ‘‘मोदी लहर’’ से भारी बढ़त मिल रही है. चौहान कहते हैं कि इसमें संदेह नहीं कि गुजरात के मुख्यमंत्री की रैलियों ने जोश भरने का काम किया है. वे कहते हैं, ‘‘मोदीजी लोकप्रिय जन नेता हैं और इस सचाई को झुठलाया नहीं जा सकता.’’
हालांकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अभी उम्मीदवार चयन और टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में हैं, जनमत सर्वेक्षण में यह मामला नहीं देखा जा सका है इसलिए इसका भी कुछ फर्क तो पड़ेगा ही. लेकिन हवा बीजेपी के ही पक्ष में बहती दिख रही है, हालांकि यह पहले जितनी तेज नहीं रही, जैसी सिंधिया के मैदान में उतरने से पहले थी. तो, क्या कोई अंतर्धारा भी बह रही है जिसे चुनाव विश्लेषक नहीं भांप पा रहे हैं? चौहान कहते हैं, ‘‘हम अच्छे बहुमत से जीतकर आ रहे हैं.’’ इसके पहले वे यह बताते हैं कि कैसे वे अगले कार्यकाल में राज्य में लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देकर कृषि पर निर्भरता कम करेंगे.
विकास की योजनाओं वाले चौहान के लिए चुनाव अनचाही यात्रा नहीं, बल्कि एक और यात्रा की तैयारी भर है.