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ये हैं नरेंद्र मोदी की जीत की स्‍याही बनाने वाले 'नवरत्‍न'

बीजेपी जोश में है और उसे लगता है कि नरेंद्र मोदी की लहर उसे दिल्ली के तख्त तक पहुंचा देगी. मोदी की सेना में ऐसे नवरत्न हैं, जो उन्‍हें पर्दे के आगे और पीछे दोनों ओर से जीत दिलाने में जुटे हुए हैं. इनमें से सबसे अहम हैं अमित शाह. कहते हैं कि अमित शाह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मोदी ने राजनीति में आने की चर्चा की थी.

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अगर मोदी पीएम बनते हैं तो जीत का श्रेय इन 'नवरत्‍नों' के नाम होगा
अगर मोदी पीएम बनते हैं तो जीत का श्रेय इन 'नवरत्‍नों' के नाम होगा

बीजेपी जोश में है और उसे लगता है कि नरेंद्र मोदी की लहर उसे दिल्ली के तख्त तक पहुंचा देगी. मोदी की सेना में ऐसे नवरत्न हैं, जो उन्‍हें पर्दे के आगे और पीछे दोनों ओर से जीत दिलाने में जुटे हुए हैं. इनमें से सबसे अहम हैं अमित शाह. कहते हैं कि अमित शाह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मोदी ने राजनीति में आने की चर्चा की थी. आज उसी अमित शाह के जरिए वो देश के सबसे बड़े सूबे को जीतना चाहते हैं.

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पहला रत्‍न: अमित शाह
नरेंद्र मोदी बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे हैं, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और इस चुनाव में सबसे बड़ी उम्मीद भी और हौसला भी. लेकिन मोदी के चेहरे के पीछे एक दिमाग काम करता है, जिसका नाम है अमित शाह. साल 2001 में जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात की कमान संभाली तो उनके सबसे करीबियों में शामिल हुए अमित शाह. काफी अमीर और रईस बिजनेस परिवार से ताल्लुक रखने वाले अमित शाह ने मोदी की राजनीति को बुलंदियों पर पहुंचाया.

जब ये साफ हो गया कि मोदी ही बीजेपी के नए क्षत्रधारी होंगे तो मोदी ने सबसे बड़ा गढ़ जीतने का जिम्मा अमित शाह को दिया. कभी अपने गृह मंत्रालय में जूनियर मंत्री रहे अमित शाह को मोदी ने ना सिर्फ बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव बनवाया, बल्कि उत्तर प्रदेश का प्रभारी भी बनवा दिया. जब यूपी का प्रभार मिला तो अमित शाह ने अयोध्या में राम मंदिर के मसले को एक बार फिर से उछाला.

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मंदिर का मसला उछाला तो जरूर, लेकिन जब ना तो जनमानस के बीच से और ना ही संगठन के अंदर से कोई जोश दिखा तो अमित शाह ने धीरे से राम के नाम को पीछे छोड़ दिया और अपने नेता मोदी की लाइन पर आ गए. गुजरात में विकास के दावे पर, देश में विकास के वादे पर. मोदी आक्रामक हैं, सीधा वार करते हैं लेकिन अमित शाह मोदी के हर अंदाज से वाकिफ होने के बावजूद मृदुभाषी हैं. उनकी जुबान से उनकी राजनीति के रास्ते का पैमाना पता नहीं चलता. अमित के दिमाग में मोदी की राजनीति है लेकिन दिल में मां होती है, जिसे वो सबसे ज्यादा प्यार करते हैं.

दूसरा रत्‍न: राजनाथ सिंह
बीजेपी के नाथ यानी राजनाथ सिंह. मोदी के एक नवरत्न ये भी हैं. पार्टी के एक धड़े के तीखे विरोध के बावजूद राजनाथ ने ना सिर्फ मोदी को पहले प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया बल्कि बाद में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी. राजनाथ की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मोदी जिनके साथ सीधे हॉट लाइन पर होते हैं, वो राजनाथ हैं.

अटल-आडवाणी का दौर नेपथ्य में चला गया और मंच पर प्रकट हुए नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह. बदलते वक्त के साथ बीजेपी की ये नई जोड़ी है. आरएसएस तो दोबारा नितिन गडकरी को ही बीजेपी का अध्यक्ष बनवाना चाहता था. लेकिन ऐन मौके पर राजतिलक की जगह वनवास हो गया.

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इत्तेफाक से 2009 के बाद 2014 में भी बीजेपी उनकी ही अध्यक्षता में लोकसभा चुनाव में उतरी. इस बार प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की दावेदारी नरेंद्र मोदी कर रहे थे. राजनाथ ने मौका देखा और मोदी के नाम का चौका लगा दिया. मोदी के नाम पर जहां भी अड़चन पैदा हुई, रास्ते के उस पत्थर को हटाने सबसे आगे राजनाथ ही आए. कहते हैं कि वाराणसी से मोदी को लड़ाने की रणनीति राजनाथ सिंह की थी, ताकि उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों को एक साथ साधा जा सके. यही नहीं, मोदी ने वाराणसी संभाला और राजनाथ ने लखनऊ. वाजपेयी की सीट से चुनावी मैदान में उतरकर राजनाथ ये इशारा कर रहे थे कि आज की बीजेपी में वाजपेयी की राजनीति के सबसे करीब वही हैं.

राजनाथ सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत 1977 में विधायक बनकर की. बाद में वो उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने, फिर मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री भी. दो दो बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और अब मोदी के नवरत्नों में शामिल होकर एक नई भूमिका की आहट सुना रहे हैं.

तीसरा रत्‍न: अरुण जेटली
अरुण जेटली वाजपेयी सरकार में कानून मंत्री रहे हैं. वो कानून अच्छी तरह जानते हैं और मोदी को कई पेचीदा मसलों पर कानूनी सलाह भी देते रहते हैं. लेकिन इन सबसे ज्यादा दोनों का रिश्ता बहुत पुराना है. जब हवा चली तो बीजेपी के कोने-कोने से आवाज आई कि मोदी मोदी. लेकिन बहुत पहले ही मोदी की ताकत को जिन्होंने भांप लिया था, उनका नाम है अरुण जेटली.

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ये बहुत कम लोगों को पता है कि केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात में नए मुख्यमंत्री की तलाश हो रही थी, तब नरेंद्र मोदी का नाम आगे बढ़ाने में जेटली की अहम भूमिका थी. इतना ही नहीं, गुजरात दंगों के बाद भी आडवाणी के साथ जिसने मोदी को बचाने में अपनी ताकत झोंकी, उनमें जेटली भी थे. विरासत में वकालत का पेशा पाने वाले जेटली पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं- अमृतसर से लोकसभा का चुनाव. एबीवीपी से जुडकर दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ की राजनीति की, अध्यक्ष भी बने. 1991 में बीजेपी में शामिल हुए. मोदी के लिए हर मोर्चे पर वकालत करने वाले जेटली उनके बहुत पुराने दोस्त हैं. वही दोस्ती अब कोहीनूर की तरह चमक रही है.

चौथा रत्‍न: राम माधव
अब एक चेहरा संघ के अंदर से, नाम है राम माधव. राम माधव ने इंजीनियरिंग की लेकिन संघ परिवार के अंदर नरेंद्र मोदी के लिए वो हमेशा से राजनीतिक इंजीनियरिंग करते रहे हैं. सार्वजनिक मंच पर शायद ही कभी देखा हो आपने बीजेपी के पीएम कंडीडेट और आरएसएस के राष्ट्रीय प्रवक्ता को. लेकिन 49 साल के राम माधव 64 साल के नरेन्द्र मोदी के नवरत्नों में गिने जाते हैं.

मोदी राम माधव से पुराने संघसेवक रहे हैं. संघ के लिए मोदी का समर्पण भी जगजाहिर है. मोदी और माधव के वैचारिक मेल की कहानी 2003 से शुरू होती है जब इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्र राम माधव को संघ का राष्ट्रीय प्रवक्ता नियुक्त गया. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. दंगे के बाद मोदी के साथ तमाम विवाद जुड़े, लेकिन मोदी को लेकर राम माधव का विश्वास अटूट रहा. विश्वास सिर्फ हिदुत्व की कसौटी पर नहीं, बल्कि विवाद की तमाम आंधियों के सामने अडिग खड़ा रहने की क्षमता पर भी.

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आज संघ मोदी के संग है, तो इसके पीछे राम माधव की बड़ी भूमिका मानी जाती है. राम माधव 20 साल से बतौर पत्रकार संघ से जुड़े हैं. 10 किताबे लिख चुके हैं, संघ की कई पत्र पत्रिकाओं के एडीटर रह चुके हैं. ऐसे में मोदी के पक्ष में माधव की बातें तो जमनी ही थी.

पांचवा रत्‍न: नितिन गडकरी
जिनसे खतरा रहता है, वो भी कैसे करीब हो सकते हैं, इसकी एक मिसाल हैं नितिन गडकरी. ऐसा माना जाता है कि महाराष्ट्र में मंत्री रहते गडकरी का शानदार काम और मोदी के पक्ष में बनाया गया उनका माहौल उन्हें बड़ी भूमिका दे सकता है. 2009 में नागपुर का इशारा मिला तो तमाम बड़े बड़ों की उम्मीदों को धूल में मिटाते हुए नितिन गडकरी ने महाराष्ट्र से सीधे दिल्ली की राजनीति में एंट्री लगा दी.

दूसरों के उलट नितिन गडकरी के लिए मोदी के नवरत्नों में शामिल होना बहुत आसान नहीं था. गडकरी के पार्टी अध्यक्ष रहते मोदी से उनके टकराव के कई मामले सामने आए. कहा तो यहां तक जाता है कि गडकरी को दोबारा अध्यक्ष बनवाने के पक्ष में मोदी नहीं थे क्योंकि उन्हें लगता था कि गडकरी उनकी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के रास्ते में पत्थर बन सकते हैं. जब मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, तब ये खबर बहुत तेजी से फैली कि गडकरी ने मोदी को एक हार उपहार में दिया है. अब ये माना जाता है कि अगर कहीं मोदी के गले में जीत का माला पड़ा तो गडकरी एक बड़ी भूमिका में दिखाई देंगे.

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छठा रत्‍न: सुशील कुमार मोदी
जिन नवरत्नों से मोदी का दरबार सजा हुआ है, उसमें एक रत्न बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी हैं. वे पहले नीतीश कुमार के करीबी माने जाते थे. लेकिन गठबंधन टूटा तो नरेंद्र मोदी के पक्ष में सबसे बढ़चढ़कर सुशील कुमार मोदी आ गए. एक कुशल प्रशासक की छवि है और नरेंद्र मोदी ऐसे लोगों को बहुत पसंद करते हैं.

मोदी जहां भी जाते हैं, बिहार की हर रैली में उनके मंच पर सुशील मोदी शोभा बढ़ाते दिखते हैं. बिहार की राजनीति में सुशील का जबर्दस्त दबदबा रहा है. जेपी आंदोलन ने इन्हें राजनीति में लाया तो संघ की संगत में ये समाजसेवी बने. बिहार में बीजेपी के लिए माहौल बनाया और जेडीयू से गठबंधन में भी इनकी बड़ी भूमिका रही. 8 साल तक बिहार के वित्त और उप मुख्यमंत्री रहे. जुलाई 2011 में सुशील मोदी राज्य वित्त मंत्री कमेटी के अध्यक्ष बने, जिसका काम गुड्स एंड सेल्स टैक्स पर काम करना है.

सातवां रत्‍न: स्‍मृति इरानी
नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की जीत के लिए पार्टी के तमाम बड़े छोटे नेता जी-जान से लगे हैं. लेकिन छोटे परदे की चमक दमक से निकलकर राजनीति के खुरदुरे मैदान में उतरीं स्मृति इरानी ही वो नेता हैं, जिन्होंने 'नमो टी' का आइडिया दिया. मोदी की छवि चमकाने में जी जान से लगी हैं. छोटे परदे की बहू स्मृति इरानी राजनीति में बड़ा किरदार निभाने के लिए आईं. दस साल बाद वो मौका आ भी गया है, जब कांग्रेस के दूसरे सबसे बड़े नेता राहुल गांधी के खिलाफ उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला. लेकिन इस मौके से भी बड़ी बात ये है कि स्मृति आज के दिन बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के सबसे करीब लोगों में से एक हैं.

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इंडिया शाइनिंग के फील गुड के साथ स्मृति इरानी दस साल पहले राजनीति में आई थीं. तब बीजेपी ने इन्हें चांदनी चौक में कांग्रेस के कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव लड़ाया था लेकिन कैमरे की चमक-दमक वोटरों का दिल नहीं जीत पाई. उस हार से भी बड़ी बात ये थी कि स्मृति ने मोदी की मुखालफत की थी. गुजरात के दंगों को लेकर इरानी ने मोदी का इस्तीफा तक मांगा था. अब उनके नाम पर वोट मांग रही हैं.

खाने पीने की एक कंपनी में काम कर चुकी स्मृति इरानी ने मिस इंडिया प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया था. किस्मत ने छोटे परदे पर पहुंचाया और राजनीतिक सूझबूझ ने संसद में. जिस मोदी से इस्तीफा तक मांगा था, उसी मोदी ने गुजरात से राज्यसभा में पहुंचा दिया.

आठवां रत्‍न: पीयूष गोयल
नरेंद्र मोदी के एक नवरत्न हैं पीयूष गोयल. बीजेपी के खजांची हैं. इनके पिता भी बीजेपी के खजांची ही होते थे. स्मृति इरानी ने आइडिया दिया तो गोयल ने नमो टी का आयोजन सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया. गोयल ही सोशल मीडिया का भी काम काज देखते हैं.

देश में मोदी की हवा चली, चुनावी कद बढ़ा, मोदी नाम पार्टी का पोलिटिकल ब्रांड बना. इसके पीछे मनी मैनेजमेंट साफ दिखता है. हवाई यात्रा से लेकर भव्य रैलियों और पूरे प्रचार अभियान तक मोदी के पीछे इस मनी गेम में माइंड है पीयूष गोयल का. 49 साल के पीयूष गोयल राज्य सभा सांसद हैं. लेकिन बीजेपी में सक्रिय भूमिका ट्रेजरर यानी खाजांची की है. पीयूष गोयल देश के जाने माने और रैंक होल्डर चार्टर्ड एकाउंटेंट भी रहे हैं. बीजेपी में खाजांची की भूमिका उन्हें सियासी विरासत के रूप में मिली है.

नौवां रत्‍न: सौरव पटेल
अगर बीजेपी जीत गई और नरेंद्र मोदी दिल्ली आ गए तो गुजरात का मुख्यमंत्री कौन बन सकता है. एक नाम सौरव पटेल का भी हो सकता है, जो मोदी के नवरत्नों में से एक हैं. बेहद पढे लिखे और विकास की राजनीति करने वाले सौरव पटेल कारोबार की बारीकियों को भी बहुत अच्छे से जानते हैं और इसीलिए वो मोदी के चहेते हैं.

ये वही सौरव पटेल हैं, जिन्हें मोदी मंत्रिमंडल के सबसे ताकतवर मंत्रियों में गिना जाता है और हां, ये वही सौरव पटेल हैं, जिनका नाम लेकर अरविंद केजरीवाल ने बार-बार मोदी पर निशाना साधा. लगातार चौथी बार विधानसभा में पहुंचने वाले पटेल मोदी सरकार के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मंत्री हैं. अमेरिका से एमबीए करने वाले पटेल के पास ऊर्जा, पेट्रोकेमिकल, खनन, कुटिर उद्योग, नमक उद्योग, योजना, पर्यटन, नागरिक उड्डयन, श्रम और रोजगार जैसे अहम मंत्रालय हैं. नर्मदा कैनाल पर एशिया का सबसे बड़ा सोलर एनर्जी पावर प्लांट बनाने का श्रेय भी पटेल को ही जाता है.

पटेल सुर्खियों में नहीं रहते. वो परदे के पीछे गुजरात की अपनी सीमित दुनिया में काम करते हैं. लेकिन उनकी विकासशील नीति के कारण ये माना जाता है कि अगर मोदी को दिल्ली का ताज मिला तो वो गांधीनगर पटेल के हवाले कर सकते हैं.

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