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चार राज्यों में हुई कांग्रेस की बुरी गत, ये रही हार की 4 बड़ी वजहें

असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे गुरुवार को सामने आ गए. इन राज्यों में पुडुचेरी छोड़कर हर जगह कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है. असम और केरल में वह सत्ता से बाहर हो गई है तो तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में उसकी हालत पहले से भी बदतर हो गई.

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राहुल गांधी ने हार के बाद और अधिक मेहनत करने की बात कही
राहुल गांधी ने हार के बाद और अधिक मेहनत करने की बात कही

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असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे गुरुवार को सामने आ गए. इन राज्यों में पुडुचेरी छोड़कर हर जगह कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है. असम और केरल में वह सत्ता से बाहर हो गई है तो तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में उसकी हालत पहले से भी बदतर हो गई.

कांग्रेस की इतनी बड़ी हार की 4 अहम वजहें -

1. केरल और असम में एंटी इनकम्बेंसी
केरल की 140 सीटों में गठबंधन के बावजूद दोपहर बाद तक रुझान में कांग्रेस 23 सीटों पर ही आगे दिखी. वहीं असम की 126 सीटों में से 23 सीटों पर उसकी बढ़त दर्ज की गई. दोनों ही राज्यों में उसने सरकार खो दिया.

केरल में कांग्रेस गठबंधन ने वाम दलों से सरकार छीनी थी. ओमान चांडी के कार्यशैली के खिलाफ विपक्षियों ने लगातार आंदोलन जारी रखा. वहीं असम में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई भी विकास कार्यों के सवाल पर घिरे रहे. दोनों जगहों पर सरकार विरोधी माहौल ने उन्हें सत्ता से बाहर करने में भूमिका निभाई.

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2. वाम दलों से आंखमिचौनी की वजह से भरोसे का संकट
कांग्रेस को गठबंधन के बावजूद केरल वामदलों के खिलाफ और पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के साथ चुनाव लड़ना भी भारी पड़ गया. कैडर आधारित वाम दलों में कांग्रेस के इस रवैए से भरोसा नहीं बन पाया. कांग्रेस और कम्यूनिस्टों के बीच यह लव एंड हेट रिलेशनशिप रंग नहीं ला पाया.

यही वजह रही कि कांग्रेस केरल में सरकार से गई और पश्चिम बंगाल की 294 सीटों में गठबंधन के बावजूद 40 सीटों के आसपास ही बढ़त बनाती दिखती रही.

3. केंद्रीय और स्थानीय नेतृत्व के समन्वय में कमी
जब राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे थे तब कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व दूसरी वजहों में उलझा हुआ था. तैयारी के वक्त केंद्रीय नेतृत्व नेशनल हेराल्ड केस, चुनाव के दौरान अगस्टा वेस्टलैंड चॉपर डील स्कैम और इसके पहले जेएनयू में देशविरोधी नारेबाजी और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की खुदकुशी के मसले पर राजनीति करने में समय लगा रहा था.

दूसरी ओर, कांग्रेस का राज्य नेतृत्व प्रचार अभियान के दौरान इन आरोपों की भी सफाई देने में वक्त जाया कर रहा था. राहुल गांधी के लगातार दौरे में भी स्थानीय मुद्दे की जगह केंद्र सरकार पर हमला और खुद की सफाई देना ही हावी रहा.

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4. मोदी-शाह की रणनीति का जवाब नहीं दे पाए सोनिया-राहुल
राज्यों में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन का मामला हो या प्रचार की आक्रामक शैली कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास बीजेपी के मोदी-शाह की रणनीतियों का जवाब नहीं था. असम में बीजेपी के उठाए मुद्दों पर कांग्रेस अधिकतर चुप रही. वहीं अन्य राज्यों में मजबूत क्षत्रपों के सामने भी मोदी और बीजेपी को निशाना बनाने की वजह से भी कांग्रेस उलझी रही.

तमिलनाडु की कुल 232 सीटों में करुणानिधि की पार्टी डीएमके के साथ मिलकर भी कांग्रेस दहाई सीट तक पर बढ़त नहीं बना पाई. चार राज्यों में भले ही अलग-अलग दल जीतें हो पर राजनीतिक विचारों में सभी गैरकांग्रेसी हैं. इसे कांग्रेस विरोधी लहर के तौर पर भी देखा जा सकता है. इसके रणनीतिकार भी पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जो़ड़ी ही मानी जाती है.

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