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चुनावी राजनीति की हकीकत बताता है ये गाना

राजधानी दिल्ली में शनिवार 7 फरवरी को मतदान की तैयारी है और चुनाव प्रचार का शोर भी अब थम चुका है. यही वो समय है जब प्रत्याशी घर-घर जाकर वोटरों को अपने पक्ष में करने की हर संभव कोशिश करते हैं. चुनाव प्रचार थमने से लेकर वोट डलने तक का ही वो समय होता है जब प्रत्याशी मतदाताओं को शराब, रुपये आदि देकर उनके वोट खरीदने की कोशिश करते हैं.

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गढ़वाली एलबम माया को मुंडारो एलबम का एक सीन
गढ़वाली एलबम माया को मुंडारो एलबम का एक सीन

राजधानी दिल्ली में शनिवार 7 फरवरी को मतदान की तैयारी है और चुनाव प्रचार का शोर भी अब थम चुका है. यही वो समय है जब प्रत्याशी घर-घर जाकर वोटरों को अपने पक्ष में करने की हर संभव कोशिश करते हैं. चुनाव प्रचार थमने से लेकर वोट डलने तक का ही वो समय होता है जब प्रत्याशी मतदाताओं को शराब, रुपये आदि देकर उनके वोट खरीदने की कोशिश करते हैं.

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हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान भी कार्यकर्ताओं और संभावित मतदाताओं के खाने-पीने की मौज होती है. लेकिन एक बार वोट पड़ जाएं तो फिर ‘नेताजी’ किसी को नहीं पूछते. जीत गए तो वे सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं और कार्यकर्ता व आम जनता उनसे मिलने को तरस जाती है. हारने के बाद ‘नेताजी’ से उनके ही कार्यकर्ता मिलना नहीं चाहते.

चुनाव में शराब की बड़ी भूमिका पर उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने एक बेहतरीन गाना बनाया है. यह गाना वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर मजाकिया लहजे में गहरी चोट करता है. इसमें चुनावों के दौरान रुपये और शराब बांट कर वोट बटोरने वाले नेताओं पर जमकर निशाना साधा गया है.

गाने के बोल हैं... हाथन हुसुकी पिलायी, फूलन पिलायो रम, छ्वट दल-निर्दलि दिदौंल कच्चि में टरकायो हम...

गाने का लब्बो-लुआब ये है कि हाथ के निशान से चुनाव लड़ने वाले दल में व्हिस्की पिलायी और फूल के निशान वाले राजनीति दल ने रम पिलाकर आवभगत की. छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवारों ने कच्ची शराब से ही हमारे वोट खरीदने की कोशिश की. ऐसे चुनाव में तो मजे ही मजे हैं, दारू भी मिलता है और पैसा भी.

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