असम के विधानसभा चुनावों में प्रतिबंधित संगठन उल्फा का खतरा अब भी मंडरा रहा है. असम में पिछले तीन दशक से संसदीय एवं विधानसभा चुनावों में उल्फा का खतरा मंडराता रहा है.
गौरतलब है कि इसके प्रमुख अरविन्द राजखोवा के नेतृत्व में एक बड़े धड़े का कहना है कि उसका चुनावों से कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन संगठन का खतरा कायम है क्योंकि परेश बरूआ की अगुवाई वाले वार्ता विरोधी धड़े ने चुनाव संपन्न कराए जाने का खुलेआम विरोध किया है.
वार्ता विरोधी धड़े ने कांग्रेस सदस्यों और उसके स्थानीय कार्यकर्ताओं को चेतावनी दी है. उसने असम प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय को आईईडी से निशाना बनाने का प्रयास भी किया है. खुफिया सूत्रों के अनुसार चार अप्रैल को होने वाले चुनावों के दौरान यह धड़ा हमले कर सकता है ताकि अपना अस्तित्व जता सके.
मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने आरोप लगाया है कि विपक्षी दलों की चुप्पी से संकेत मिलते हैं कि उल्फा के वार्ता विरोधी धड़े और पार्टियों के बीच सांठगांठ है. गोगोई ने आरोप लगाया कि उल्फा ने कांग्रेस को धमकी दी और उसने असम गण परिषद एवं भाजपा को कोई धमकी नहीं दी.
दूसरी ओर उल्फा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने वैध लोकतांत्रिक संघर्ष को कोई महत्व नहीं दिया और न ही उसने राज्य के विभिन्न मुद्दों के हल के लिए कोई कदम उठाया. राजखोवा धड़े ने निष्पक्ष रहने का फैसला करते हुए कहा है कि आगामी चुनाव में उसकी कोई भूमिका नहीं है.संगठन के ‘विदेश सचिव’ एस चौधरी ने कहा कि विधानसभा चुनावों में हमारी कोई भागीदारी नहीं होगी. उन्होंने कहा कि हम चुनावों की प्रक्रिया से दूर रहेंगे और इसमें शामिल नहीं होंगे.