यूपी में बसपा का सूपड़ा साफ होने के कारणों को जानने के मकसद से पार्टी सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार से समीक्षा बैठकों का सिलसिला शुरू कर दिया है. बसपा की हार की पहली गाज सभी पदाधिकारियों पर गिरी है.
मायावती ने यूपी के पांच जोनल को-आर्डिनेटरों को उनकी ढिलाई के लिए बर्खास्त कर दिया है. जुगल किशोर, मुनकाद अली, डॉक्टर बलिराम, गया चरण समेत बसपा के पांच को-ऑर्डिनेटर समेत कार्यकारिणी को भी भंग कर दिया गया. अब नए सिरे से हालात का मूल्यांकन कर कार्यभार देने का फैसला किया जाएगा.
जिले के स्तर पर बनेगा संगठन
मीटिंग से बाहर निकलने के बाद बसपा के वरिष्ठ नेता सुखदेव राजभर ने कहा कि मायावती ने को-आर्डिनेटरों को होटल और गाड़ी कल्चर खत्म कर जनता के बीच जाकर उन्हें पार्टी से जोड़ने को कहा है. साथ ही को-ऑर्डिनेटर व्यवस्था के बजाय जिला कार्यकारिणी गठित कर संगठन को छोटा और मजबूत बनाकर प्रभावी तरीके से काम करें. ब्राह्मण और मुस्लिम को पार्टी से जोड़ने का जोर होगा. इसके लिए विशेष समिति का गठन किया जाएगा.
बड़े नेताओं को किया जाएगा साइडलाइन
बीएसपी की यह समीक्षा बैठक बुधवार को भी जारी रहेगी. बैठक में बसपा अपने वोट बैंक को बचाने के लिए नए एजेंडे पर विचार कर सकती है. इस बार पार्टी में युवाओं को भी मौका मिल सकता है. इसके अलावा कुछ बड़े नेताओं को साइडलाइन भी किया जा सकता है.
ब्राह्मण, मुस्लिमों की वजह से मैं हारी
इससे पहले रविवार को मायावती चुनाव में मिली करारी हार के बाद पहली बार मीडिया के सामने आई थीं. उन्होंने कहा था कि उनकी हार का कारण ब्राह्मण और मुसलमान वोटर रहे हैं. माना जा रहा है कि चुनावी नतीजों की वजह से मायावती सोशल इंजीनियरिंग छोड़कर अब अपने पुराने फॉर्मूले पर वापस आ सकती हैं. इसकी वजह भी है, क्योंकि यूपी में बसपा 17 सुरक्षित सीटों पर भी कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी.
देर से आए तो नहीं घुसने दिया बसपा प्रत्याशी को
बैठक के दौरान देर से पहुंचने पर मथुरा प्रत्याशी पंडित योगेश कुमार द्विवेदी को कार्यालय के अंदर प्रवेश नहीं करने दिया गया. इससे नाराज होकर बसपा प्रत्याशी के समर्थकों ने गेट पर हंगामा कर दिया. इसी बीच मायावती को ज्ञापन देकर उनसे मदद पाने के लिए पहुंचे कुछ कार्यकर्ताओं ने भी अंदर न पहुंच पाने से नाराज होकर हंगामा शुरू कर दिया. देखते ही देखते बसपा कार्यकर्ताओं और हंगामा कर रहे युवकों के बीच धक्का मुक्की शुरू हो गई. इस हंगामे के बाद कार्यालय के गेट पर पुलिस तैनात कर दी गई.
अपने वोट बैंक को नहीं समझ पाईं बसपा सुप्रीमो
दरअसल, बदलते परिवेश में दिल्ली में बैठी मायावती ने अपने दलित वोट बैंक को समझा ही नहीं. वह परंपरागत तरीके से चुनाव प्रचार करती रहीं. मायावती जब तक यूपी की सत्ता में रहीं सुरक्षा के बीच ही रहीं. जब सत्ता से बाहर हुईं, तब भी यही हाल दिखा. ऐसे में जो वोट बसपा का जनाधार है, वह उनसे दूर ही रहा. इसलिए माया अब बसपा का जनाधार बढ़ाने के लिए नई नीतियां भी बना सकती हैं.