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बुंदेलखंड के किसान दबाएंगे 'नोटा' का बटन

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड इलाका पिछले कई साल से प्राकृतिक आपदा का दंश झेल रहा है. भुखमरी और सूखे की त्रासदी से परेशान अब तक 61 लाख से अधिक किसान पलायन कर चुके हैं. यहां के किसानों को उम्मीद थी कि अबकी बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल सूखा और पलायन को अपना मुद्दा बनाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर यह मुद्दा जातीय बयार में दब सा गया है.

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उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड इलाका पिछले कई साल से प्राकृतिक आपदा का दंश झेल रहा है. भुखमरी और सूखे की त्रासदी से परेशान अब तक 61 लाख से अधिक किसान पलायन कर चुके हैं. यहां के किसानों को उम्मीद थी कि अबकी बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल सूखा और पलायन को अपना मुद्दा बनाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर यह मुद्दा जातीय बयार में दब सा गया है.

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पलायन और दैवीय आपदा से क्षुब्ध किसानों ने 'नोटा' का बटन दबाने का फैसला किया है. 'वीरों की धरती' कहा जाने वाला बुंदेलखंड देश में महाराष्ट्र के विदर्भ जैसी पहचान बना चुका है. बुंदेलखंड का भूभाग उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, उरई-जालौन, झांसी व ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दतिया, पन्‍ना व दमोह जिलों में विभाजित है. यह इलाका पिछले कई सालों से प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहा है और किसान कर्ज व मर्ज के मकड़जाल में फंसे हुए हैं. लगभग सभी राजनीतिक दल किसानों के लिए झूठी हमदर्दी जताते रहे, लेकिन यहां से पलायन कर रहे किसानों के मुद्दे को 'चुनावी मुद्दा' नहीं बनाया गया. समूचे बुंदेलखंड में स्थानीय मुद्दे गायब हैं और जातीय बयार बह रही है.

काम न मिलने से इतने किसान गए महानगर
सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार कहते हैं कि इस इलाके के किसानों की दुर्दशा पर दो साल पूर्व केंद्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक समिति ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की थी और विकास के लिए कुछ सिफारिश भी की थी, लेकिन यह रिपोर्ट अब भी पीएमओ में धूल फांक रही है. इस रिपोर्ट का हवाला देकर रैकवार बताते हैं कि आंतरिक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के जिलों में बांदा से 7,37,920, चित्रकूट से 3,44,801, महोबा से 2,97,547, हमीरपुर से 4,17,489, उरई (जालौन) से 5,38,147, झांसी से 5,58,377 व ललितपुर से 3,81,316 और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले जनपदों में टीकमगढ़ से 5,89,371, छतरपुर से 7,66,809, सागर से 8,49,148, दतिया से 2,00,901, पन्‍ना से 2,56,270 और दतिया से 2,70,477 किसान व कामगार आर्थिक तंगी की वजह से महानगरों में पलायन कर चुके हैं.

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विकास होगा तभी रुकेगा पलायन
रैकवार ने कहा कि इस समिति ने बुंदेलखंड की दशा सुधारने के लिए बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन के अलावा यूपी के सात जिलों के लिए 3,866 करोड़ रुपये और मध्य प्रदेश के छह जिलों के लिए 4,310 करोड़ रुपये का पैकेज देने की भी अनुशंसा की थी, लेकिन अब तक केंद्र सरकार ने इस पर अमल नहीं किया. रैकवार यह भी बताते हैं कि सिर्फ यूपी के हिस्से वाले बुंदेली किसान करीब छह अरब रुपये किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिए सरकारी कर्ज लिए हुए हैं. बुंदेली किसानों के पलायन को चुनावी मुद्दा न बनाए जाने पर विभिन्‍न दलों के नेता अलग-अलग तर्क देते हैं. समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव और महोबा-हमीरपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार विशंभर प्रसाद निशाद कहते हैं कि सपा सरकार किसानों के हित में कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है और मुख्यमंत्री ने चुनाव बाद बुंदेलखंड विकास निधि की धनराशि में बढ़ोतरी कर यहां के समग्र विकास का वादा किया है. पलायन को चुनावी मुद्दा न बनाए जाने के सवाल पर वह कहते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है, जब यहां का विकास होगा, तब अपने आप पलायन रुक जाएगा.

बस एक दूसरे पर फोड़ा ठीकरा
उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक दल के नेता और बांदा जिले की नरैनी सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायक गयाचरण दिनकर बुंदेलखंड में किसानों और कामगारों के पलायन का ठीकरा कांग्रेस और केंद्र सरकार पर फोड़ते हैं, वह कहते हैं, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आंतरिक समिति की रिपोर्ट पर अमल करते तो शायद हालात पर काबू पाया जा सकता था, लेकिन जानबूझ कर ऐसा नहीं किया गया. दिनकर ने कहा कि बसपा घोषणा पर नहीं, काम पर भरोसा करती है. इस चुनाव में बसपा सत्ता में आई तो पलायन को मुख्य मुद्दा मानकर काम किया जाएगा. उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव साकेत बिहारी मिश्र ने इस मुद्दे पर कहा कि राहुल गांधी हमेशा बुंदेलखंड पर मेहरबान रहे हैं, उनकी सिफारिश पर ही विशेष पैकेज दिया गया है, लेकिन मौजूदा सपा सरकार ने इसकी धनराशि दूसरे कार्यों में खर्च कर दी है. वह कहते है कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में किसान हित को सर्वोपरि रखा गया है और उन्हें भरोसा है कि 16वीं लोकसभा में राहुल की अगुआई में सरकार बनेगी और बुंदेलखंड के किसानों का पलायन रुक जाएगा.

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सिंचाई संसाधन को मिले बढ़ावा
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बुंदेलखंड क्षेत्र के अध्यक्ष बाबूराम निषाद कहते हैं कि किसानों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस, बसपा और सपा जिम्मेदार है, बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट किया है कि केंद्र की सत्ता में आने पर पार्टी प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना और कम ब्याज की दर से कृषि ऋण उपलब्ध कराकर उनकी माली हालत सुधारेगी. किसानों के पलायन पर दिए गए तर्क से किसान और राजनीतिक विश्‍लेषकों के विचार जुदा हैं. विदेशों में खेती-किसानी का गुर सीख चुके बड़ोखर गांव के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह का कहना है कि नदियों को आपस में जोड़ने के बजाए यहां परंपरागत सिंचाई संसाधनों को बढ़ावा देने की जरूरत है, तभी पलायन और प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा मिल सकता है.

किसान नेता और जिला पंचायत बांदा के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण कुमार भारतीय का कहना है कि सभी दल किसानों की झूठी हमदर्दी बटोरने में जुटे हैं, इस बार के चुनाव में बुंदेली किसान 'नोटा' का बटन दबाकर अपना आक्रोश जताएंगे. बुंदेलखंड किसान यूनियन के अध्यक्ष विमल कुमार शर्मा ने बताया कि रविवार को बांदा के रामलीला मैदान में हुई महापंचायत की बैठक में किसानों ने 'नोटा' का बटन दबाने का फैसला किया है.

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