नेहरू-गांधी परिवार में एक बार फिर सियासी तलवार तन गई है. अपने भाई राहुल गांधी का पर्चा दाखिल कराने अमेठी पहुंची प्रियंका ने चचेरे भाई वरुण गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. प्रियंका ने सुल्तानपुर की जनता से अपील की कि बीजेपी के टिकट पर लड़ रहे वरुण गांधी को सही रास्ते पर लाने के लिए वो उन्हें हरा दें.
राहुल गांधी तो उम्र में प्रियंका से दो साल बड़े हैं जबकि वरुण 8 साल छोटे. बदलते राजनीतिक और पारिवारिक हालात में वरुण का रास्ता राहुल और प्रियंका से अलग भले रहा, लेकिन निजी तौर पर परिवार के मसले पर ये चुप ही रहते हैं. बल्कि प्रियंका ने राजनीतिक खटास के बीच भी कई बार रिश्तों में मिठास का आभास कराया. लेकिन चुनाव की गर्मी में रिश्ते पिघलने लगे.
अमेठी में कार्यकर्ताओं से बात करते हुए कहा, 'हमारी रगों में खून और नफरत नहीं दौड़ती, प्रेम और एकता दौड़ती है. अगर गलत रास्ते पर कोई चल रहा है तो राजनीति में कभी-कभी जनता का विवेक सही रास्ता दिखा देता है.'
इस बीच बेटे पर राजनीतिक हमला बोला गया तो मां फिर से सामने आ गईं. मेनका ने प्रियंका को उल्टे समझाया कि देश भक्ति और देशप्रेम क्या होता है, इसके सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं. उन्होंने कहा, 'देशसेवा करना भटकना है तो कौन रास्ता भटक गया है यह देश बता देगा.'
भाई के खिलाफ प्रियंका का प्रचार
अमेठी-रायबरेली और सुल्तानपुर सीट से नेहरू गांधी परिवार का बहुत पुराना नाता है. ये भी इत्तेफाक है कि इस बार इन तीनों सीट पर इसी परिवार के एक-एक दावेदार जमे हुए हैं. रायबरेली
सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लड़ रही हैं तो अमेठी सीट पर राहुल गांधी जबकि सुल्तानपुर सीट पर बीजेपी के महासचिव वरुण गांधी.
हालांकि पिछली बार वरुण गांधी ने अपनी मां मेनका गांधी की परंपरागत सीट पीलीभीत से जीत हासिल की थी लेकिन इस बार घर से घिरे इलाके में ही घरेलू घमासान मचा है. कांग्रेस ने सुल्तानपुर सीट से अमेठी राजघराने के संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह को मैदान में उतारा है. चुनाव की मजबूरी देखिए कि एक बहन को भाई के खिलाफ प्रचार करना पड़ रहा है. वो भी उसे सुधारने के नाम पर.
वरुण के खिलाफ पूर्वी यूपी में एकजुट हुए कांग्रेसी
पिछली बार सुल्तानपुर सीट से कांग्रेस के संजय सिंह जीते थे. लेकिन तब संजय सिंह का प्रचार करने न सोनिया गईं, न राहुल और प्रियंका. दूसरी तरफ राहुल गांधी के पर्चा दाखिले में भी
संजय सिंह पहले कभी नहीं जाते थे. पार्टी एक थी लेकिन रिश्तों में एक अलग किस्म की खटास रही लेकिन इस बार सुल्तानपुर में वरुण ने चुनाव लड़कर इनके रिश्ते को बदल दिया. राहुल के
पर्चा दाखिले में संजय सिंह को बुलाया गया तो सुल्तानपुर में संजय सिंह की पत्नी के लिए प्रियंका वोट मांगने पहुंची, वो भी अपने ही भाई के खिलाफ.
वरुण ने की थी भाई राहुल के काम की तारीफ
जिस वरुण को हराने की बात प्रियंका ने की, उसी वरुण ने कुछ दिनों पहले अमेठी में किए राहुल के विकास कार्य की सराहना कर दी थी. इस पर राहुल समेत कांग्रेस खुशी से फूले नहीं समाई
लेकिन बीजेपी को जोर का झटका जोर से लगा. तब वरुण की तरफ से उनकी मां मेनका गांधी ने मोर्चा संभाला- सीधे राहुल के खिलाफ.
इससे कुछ ही दिन पहले मेनका गांधी ने सोनिया की संपत्ति पर सवाल खड़े किए थे. उन्होने कहा था कि वह दहेज में एक पैसा भी साथ नहीं लाई थीं तो आज अमीर कैसे हो गईं.
काफी पुराना है यह झगड़ा
इस झगड़े की जड़ें करीब साढ़े तीन दशक गहरी हैं. संजय गांधी की अकाल मौत के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी का रास्ता एक बार जो अलग हुआ तो फिर राजीव और संजय का परिवार फिर
से एक साथ कभी नहीं हुआ.
तीन साल पहले जब वरुण गांधी शादी करने चले तो अपनी ताई सोनिया और बड़े भाई बहन राहुल प्रियंका को न्यौता देने खुद पहुंचे थे. तब लगा था कि उस शादी के बहाने ही उनके रिश्तों की गिरह शायद खुल जाए और तीस साल से चली आ रही खटास खत्म हो जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. शादी में ना सोनिया गईं, ना राहुल और ना ही प्रियंका. रिश्तों की वो गांठ आज भी बंधी हुई है, जो जब तब जुबान से झलक जाती है.
रिश्तों में इस कड़वाहट की बीज तो उसी वक्त पड़ गई थी, जब विमान हादसे में संजय गांधी की मृत्यु हुई. इसके कुछ दिनों बाद ही मेनका गांधी तत्कालीन प्रधानमंत्री और अपनी सास इंदिरा गांधी के घर से निकल गईं. कहा जाता है कि उन्हें प्रधानमंत्री आवास से निकाल दिया गया. इसके बाद 1984 के चुनाव में मेनका गांधी ने अमेठी में अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ ही मोर्चा संभाल लिया, मगर अपनी जमानत तक बचा नहीं पाईं.
रिश्तों पर पड़ी बर्फ तब पिघलती दिखी, जब 1997 में प्रियंका गांधी की शादी में वरुण भी आए. छोटे भाई की मौजूदगी ये बताने के लिए काफी थी कि परिवार में सब ठीक हो रहा है. हालांकि तब भी मेनका नहीं पहुंची थी. इस बीच वरुण गांधी भी बीजेपी में शामिल हो गए. मां मेनका तो पहले से ही थीं. बस परिवार की लड़ाई पार्टी की जंग में बदलने लगी. बदलाव नहीं हुआ लेकिन चुनाव में एक दूसरे को हराने की कोशिश जारी है.