घर का घमासान बाहरी दुश्मन से भी ज्यादा खतरनाक होता है. बीजेपी से बेहतर इस वक्त इसे कौन समझ रहा होगा? दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी ने किरण बेदी के रूप में मास्टर स्ट्रोक क्या खेला पार्टी में एक बार बवाल शुरू हुआ तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा.
मैं केजरीवाल को वोट नहीं दूंगा, क्योंकि...
मैं किरण बेदी को वोट नहीं दूंगा, क्योंकि...
मैं अजय माकन को वोट नहीं दूंगा, क्योंकि...
आते ही विरोध और हंगामा
अपनी उम्मीदवारी की घोषणा होने के बाद पहली बार किरण बेदी जब कृष्णा नगर इलाके में पहुंची तो पार्टी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन के साथ उनका स्वागत किया. इससे पहले जब किरण बेदी ने दिल्ली के सांसदों को चाय पर बुलाया तो कइयों ने पुराने कमिटमेंट के नाम पर कन्नी काट ली. बीजेपी के एक सांसद तो तब पहुंचे जब किरण बेदी वेन्यू ही छोड़ चुकी थीं. मनोज तिवारी ने तो खुल्लम खुला विरोध जताया.
जगदीश मुखी, विजय गोयल, हर्षवर्धन और सतीश उपाध्याय बरसों से दिल्ली में न सिर्फ संघर्ष कर रहे हैं बल्कि सत्ता में कांग्रेस की लंबी पारी के बावजूद बीजेपी के वजूद को बचाए रखा. अनुशासन के नाम पर नेता तो चुप हैं लेकिन कार्यकर्ता नहीं शांत हो रहे. हालात बेकाबू होते देख बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को खुद मैदान में कूदना पड़ा है.
विरोध की असली वजह क्या है?
कृष्णा नगर बीजेपी का गढ़ रहा है. बरसों से यहां के लोग डॉ. हर्षवर्धन को वोट देते आए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में हर्षवर्धन की अगुवाई में बीजेपी ने पूरे दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन किया. खुद हर्षवर्धन और उनके समर्थक– दोनों को इस बार बीजेपी से अपने लिए दोगुनी उम्मीद थी. सूत्रों की मानें तो हर्षवर्धन को जब लगा कि बीजेपी किसी और को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने जा रही है तो उन्होंने अपनी सीट से बेटे के लिए टिकट की इच्छा जताई. उनके बेटे को टिकट देना तो दूर बीजेपी ने किरण बेदी को उस सीट पर उम्मीदवार घोषित कर दिया.
खबर है कि दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष विजय गोयल अपनी पत्नी के लिए टिकट चाहते थे. इसी तरह दिल्ली बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय खुद विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. पार्टी नेतृत्व ने किरण बेदी को ऊपर से थोप कर वरिष्ठ नेताओं को जख्म तो दिया ही उस पर मरहम की जगह उनकी मांगें नजरअंदाज कर नमक भी छिड़क दिया.
नामांकन के दिन भी सब ठीक-ठाक नहीं रहा
किरण बेदी चार दशक तक पुलिस सेवा में रही हैं. अनुशासन की पक्की हैं. नामांकन के दिन बीजेपी दफ्तर पर सबको 9.30 बजे पहुंचना था. किरण बेदी 9.20 पर ही पहुंच गईं. उसके बाद हर्षवर्धन का इंतजार होने लगा. 10 बजे तक वह भी पहुंच गए. तब तक न तो गाड़ियों का ठीक ठाक इंतजाम था, न ही कार्यकर्ताओं की कोई खास मौजूदगी नजर आ रही थी. जैसे तैसे रोड शो शुरू हुआ. धीरे धीरे लोग आते गए और फिर कारवां बनता गया.
नामांकन से पहले किरण बेदी ने लाला लाजपत राय की मूर्ति को बीजेपी का अंगवस्त्रम ओढ़ा दिया. बस क्या था, नया विवाद खड़ा हो गया. बाकी बातें पीछे छूट गईं. लेकिन कब तक?