दिल्ली के चुनाव परिणाम सामने हैं. जहां नतीजों से पहले बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सभी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त थे, वहीं अब सरकार कौन बनाए, कैसे बनाए और किसके साथ बनाए को लेकर पेच फंस गया है.
चुनाव नतीजों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. साथ ही बीजेपी, आप और कांग्रेस कोई भी फिलहाल गठबंधन को राजी नहीं है. तीन प्रमुख दलों के अलावा अन्य के पास भी इतनी सीटें नहीं हैं कि वह किसी बड़े दल के साथ मिलकर सरकार बनाए. ऐसे में सवाल है कि आखिर दिल्ली का क्या होगा? इस बीच गाजियाबाद में आम आदमी पार्टी के नेताओं की बैठक में आगे की रणनीति पर विचार किया गया. आम आदमी पार्टी इस नतीजे पर पहुंची की वो सरकार नहीं बनायेगी और ना ही किसी पार्टी को समर्थन देगी. आप के नेता मनीष सिसौदिया ने बैठक के बाद बताया कि उनकी पार्टी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है इसलिए विपक्ष में बैठने का फैसला किया गया है.
अब अगर चुनावी नतीजे के आंकड़ों पर नजर डालें तो 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर बीजेपी को 31 सीटें मिली हैं. आम आदमी पार्टी ने चमत्कारी फेरबदल करते हुए 28 सीटें हासिल की हैं, तो कांग्रेस इकाई अंक 8 पर सिमट गई. तीन अन्य सीटों में 1 जेडीयू, 1 शिरोमणि अकाली दल और 1 निर्दलीय उम्मीदवार के पास है.
दिल्ली में इस बार मतदान प्रतिशत ने रिकॉर्ड बनाया. जाहिर है जनता ने वोट सरकार बनाने के लिए दिए, लेकिन जो नतीजा आया वह उलझन में डालने वाला है. सरकार बनाने के लिए किसी भी दल के पास आधे से ज्यादा यानी 36 सीटों का होना जरूरी है. लेकिन राजनीतिक गणित फिट नहीं बैठ रहा, क्योंकि बीजेपी और शिरामणि अकाली दल की सीटों को जोड़ दें तो एनडीए एलायंस का आंकड़ा 32 पर आकर ठहर जाता है जो जरूरी आंकड़े से चार कम है.
बहुमत की उलझन
आम आदमी पार्टी पहले भी यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह किसी भी दल के पास गठबंधन के लिए नहीं जाएगी. पार्टी का कहना है कि ऐसा करना जनता को धोखा देना होगा. 'आप' का कहना है वह विपक्ष में बैठने को तैयार है. वहीं, बीजेपी का कहना है कि बहुमत के अभाव में वह सरकार नहीं बनाएगी. बीजेपी के सीएम पद के उम्मीदवार डॉ. हर्षवर्धन पहले ही बहुमत नहीं मिलने के कारण निराशा जाहिर कर चुके हैं.
किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने के कारण दिल्ली में मामला उलझ गया है. ऐसे में समय की सुई, जो कुछ विकल्प सुझा रही है, उसके तहत अब सभी की निगाहें राजभवन पर टिक गई हैं. प्रदेश में अब बहुत कुछ उपराज्यपाल नजीब जंग के फैसले पर निर्भर है. संविधान विशेषज्ञ इन परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन की संभावना से भी इनकार नहीं कर रहे हैं. वहीं कुछ समय के इंतजार के बाद भी अगर सरकार गठन की उम्मीद नहीं बनी, तो दोबारा चुनाव भी हो सकते हैं.
जोड़-तोड़ की राजनीति
परंपरा के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उपराज्यपाल बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दे सकते हैं, लेकिन पार्टी के लिए बहुमत जुटाने के रास्ते में कई मुश्किलें हैं. वह एक निर्दलीय विधायक को तो अपने पाले में ला सकती है, लेकिन जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर जीते शोएब इकबाल शायद ही उसके साथ आएं.
इसी तरह कांग्रेस को तोड़े बगैर बीजेपी के लिए तीन विधायकों का जुगाड़ नहीं हो सकता. वहीं एक और विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी को तोड़ना होगा, जो मुश्किल जान पड़ता है.