दिल्ली के चुनावी अखाड़े में जो कुछ घटित होते आप देख रहे हैं वो बीजेपी की रणनीति का एक हिस्सा है. भगवा पार्टी ने पर्दे के पीछे कौन सी चाल खेली है इस बारे में बीजेपी नेताओं के एक छोटे समूह को छोड़कर किसी और को इसकी भनक भी नहीं है.
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और उनके सिपाही गला फाड़ के कह रहे हैं कि बीजेपी किरण बेदी को बलि का बकरा बना रही है. हालांकि 'आप' नेताओं के पास अपनी पूर्व सहयोगी के खिलाफ बोलने को कुछ खास है नहीं, लिहाजा वो अपनी एक पूर्व सहयोगी को 'बलि का बकरा' कह रहे हैं. गौरतलब है कि बीजेपी ने किरण बेदी को चुनाव का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी देने के साथ मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया है. किरण के अलावा बीजेपी ने 'आप' के पूर्व नेताओं शाजिया इल्मी और विनोद कुमार बिन्नी को भी अपने पाले में खींच लिया है.
और यही चाल बीजेपी के रणनीतिकारों का मास्टर स्ट्रोक बन जाती है, क्योंकि चार राज्यों में पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मीडिया का फोकस हट गया है. और ऐसे में अगर बीजेपी हारती है, तो जिम्मेदार ठहराए जाने के लिए किरण बेदी आसान शिकार होंगी.
गल्फ न्यूज पर लिखी अपनी समीक्षा में बॉबी नकवी ने इस ओर ध्यान खींचा है. नकवी अपने लेख कहते हैं कि बीजेपी एक सुव्यवस्थित संगठन है, लेकिन इसी सप्ताह अमित शाह की एक रैली सिर्फ इसलिए रद्द हो गई क्योंकि पार्टी दिल्ली पुलिस से परमिशन हासिल नहीं कर पाई.
ऐसे में सवाल है कि एक सुव्यस्थित पार्टी इस तरह के कुप्रबंधन का शिकार कैसे हो गई. या फिर यह एक चाल है केजरीवाल को दिल्ली जीतने देने का, या फिर दिल्ली का दंगल हार जाने का. लेकिन केजरीवाल के जीतने और दिल्ली चुनाव हारने से बीजेपी को क्या हासिल होगा.
नकवी कहते हैं कि अगर केजरीवाल जीतते हैं, तो मीडिया इसे जन आंदोलन की जीत बताएगा. मीडिया का पूरा फोकस केजरीवाल पर होगा और उन्हें हीरो की तरह दिखाया जाएगा. केजरीवाल की जीत नरेंद्र मोदी पर से मीडिया का फोकस पूरी तरह हटा देगी.
केजरीवाल के शपथ लेते ही उनकी सरकार के कामकाज पर मीडिया का फोकस शिफ्ट हो जाएगा. उन्हें कोई हनीमून पीरियड मिलने से रहा और जनता के साथ मीडिया उनसे अपने चुनावी वादे पूरे करने को लेकर दबाव बना देगी. और इस तरह जो आकांक्षा लोग मोदी से लगाए हुए हैं वो अब केजरीवाल पर शिफ्ट होगा. क्योंकि मोदी सरकार जनता से किए अपने चुनावी वादे पूरा करने में असफल साबित हुई है.
आम आदमी पार्टी के नेताओं पर अपने वादे पूरा करने का जबरदस्त दबाव बन जाएगा और केंद्र में बैठी एक घाघ सरकार शायद ही केजरीवाल सरकार को सहयोग दे. इधर, अरुण जेटली एक रेडिकल बजट की तैयारी कर रहे हैं और मार्च में केंद्र सरकार की ओर से कई चौंकाने वाले फैसले लिए जा सकते हैं.
अब जबकि पूरा फोकस दिल्ली सरकार पर होगा, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मशीनरी को भी पूरा मौका मिलेगा यूपी और बिहार में वोटों का ध्रुवीकरण करने का. यूपी और बिहार के चुनाव बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए पार्टी इन्हें जीतने के लिए पूरा जोर लगा देगी. यूपी और बिहार में जीत उत्तर भारत में संघ के वर्चस्व को स्थापित कर देगी. राज्यसभा में स्थिति मजबूत होने पर बीजेपी अपने रेडिकल और अलोकप्रिय सुधारों को आगे बढ़ा सकती है.
दूसरी ओर बीजेपी नेता इस बात से वाकिफ है कि अगर पार्टी दिल्ली चुनाव जीत जाती है, तो राजधानी उनके लिए सरदर्द बन जाएगी. क्योंकि अतिउत्साहित जनता सरकार से अपने चुनावी वादे पूरे करने की मांग करेगी और इनको पूरा करने को लेकर बीजेपी भी अनिश्चय की स्थिति में है. याद रहे कि दिल्ली नगर निगम पर बरसों से बीजेपी का कब्जा है और दिल्ली की तस्वीर कितना बदली है, ये दिल्ली की जनता से बेहतर कौन जानता है. ऐसे में बीजेपी के लिए दिल्ली का दंगल हारना.. कोई बुरा आइडिया नहीं है.