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अपनी ब्रांडिंग आप कर रहे राहुल-प्रियंका

राहुल गांधी अब खुद अपनी बहन प्रियंका के साथ नई राजनीति की जबान और ब्रांड बनकर उभरने की न केवल कोशिश कर रहे हैं बल्कि कांग्रेस में जान भी डाल रहे हैं. चुनाव कार्यक्रम । शख्सियत । विश्‍लेषण । अन्‍य वीडियो । चुनाव पर विस्‍तृत कवरेज

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राहुल गांधी
राहुल गांधी

राजनीति को नया ब्रांड देने की बात कहने वाले राहुल गांधी अब खुद अपनी बहन प्रियंका के साथ नई राजनीति की जबान और ब्रांड बनकर उभरने की न केवल कोशिश कर रहे हैं बल्कि कांग्रेस में जान भी डाल रहे हैं. गत चुनावों में उन्होंने एक बातचीत में मुस्कराते हुए कहा था, ''मैं देश की राजनीति में नया ब्रांड लाऊंगा. जरा प्रतीक्षा करें.'' किसे मालूम था कि वे और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा धीरे-धीरे खुद राजनीति के नए ब्रांड बनकर उभरेंगे.

शायद इसलिए कोई एक माह तक सब की निगाहें उत्तर प्रदेश के रायबरेली और अमेठी में टिकी रहीं क्योंकि चिलचिलाती धूप, धूल और गरमी में प्रियंका अकेले मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए वोट मांगती रहीं. न कोई फलसफा, न कोई एजेंडा और न ही कोई भारी-भरकम भाषण. सिर्फ एक अपील, ''जैसे आप आज मुझे देखने आए हैं, उसी तरह राहुल को वोट देने भारी संख्या में आएं. मुझे पता है गर्मी बहुत है और यह शादियों का सीजन है, पर आपको आना और वोट डालना है.'' फिर दूसरी जगह जय हो के नारों के बीच वे कहती हैं, ''यह मत सोचें कि कोई नेता आपको कुछ देकर एहसान करता है. यह आपका अधिकार है.''

इतना ही लोगों के दिलों में उतरने के लिए काफी नहीं है. यदि कोई उन्हें फूलों की माला पहना देता तो वे उसे उतारती नहीं बल्कि दादी इंदिरा गांधी की ब्लू, हरी या मैरून साड़ी पहने ठीक उसी तरह इतराती फिरतीं जैसे बच्चे कोई नया मनपसंद लिबास पहनकर इतराते फिरते हैं. यदि किसी ने पूछ दिया कि वे केवल अमेठी-रायबरेली में ही क्यों प्रचार कर रही हैं तो उनका सीधा जवाब होता, ''मैं यहां केवल मां और भाई के लिए प्रचार करने आई हूं. मैं कहीं और नहीं गई क्योंकि मैं राजनीति में नहीं हूं. जब राजनीति में नहीं हूं तो मेरे लिए दूसरी जगह जाकर प्रचार करना ठीक नहीं लगेगा.''

{mospagebreak}मगर जब उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी शक्ल, खास तौर से उनकी नाक, उनकी दादी की नाक से मिलती है तो यह बात कम-से-कम भाजपा को अच्छी नहीं लगी. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने इसे सार्वजनिक जीवन में 'नौटंकी' करार दिया और कहा कि परिवार में किसी की नाक किसी दूसरे सदस्य से मिलती ही होगी. अब यह राष्ट्रीय मुद्दा बन रहा है.'' प्रसाद ने लखनऊ में प्रेस से परिवार और परिवारवाद की परिभाषा भी कर दी.

दरसअल भाई-बहन ने इस बार सारे देश की निगाहें उत्तर प्रदेश की ओर मोड़ दीं और उनके कारण मानो बरसों से हाशिये पर पड़ी कांग्रेस में जान आ गई और पार्टी की उम्मीदें नई बुलंदी को छूने लगीं. जब प्रियंका और राहुल पार्टी के भीतर युवा पीढ़ी के लिए ब्रांड बनकर उभरने लगे और विपक्ष में बेचैनी बढ़ी तो कांग्रेस प्रवक्ता वीरेंद्र मदान ने कहा, ''विपक्ष की घबराहट ही इस बात का सबूत है कि राहुल जी और प्रियंका जी तेजी से लोगों के दिमाग पर छाते जा रहे हैं. वे युवा शक्ति के प्रतीक हैं और खुद अपनी मेहनत, निष्ठा और लगन से अपनी पहचान बना रहे हैं.''

राहुल अपनी मार्केटिंग और ब्रांडिंग अपने ढंग से कर रहे हैं. एक रात वे इस बात पर गौर किए बिना कि ओडीसा में नक्सलियों का खौफ है, बलांगीर शहर में टहलते हुए अचानक बस अड्डे चले गए और यात्रियों के साथ बैठकर चाय पी और गप्पे मारीं. सब दंग रह गए. दलितों के घर जाकर उनके साथ रुकना और भोजन लेना पुरानी बात हो चुकी है और इन्हीं बातों से मुख्यमंत्री मायावती इतनी घबराती हैं कि अपनी सभाओं में इसका जिक्र किए बिना नहीं रहतीं. वे अब उत्तर प्रदेश की बदहाली के लिए कांग्रेस शासन की बात करती हैं और राहुल पर हमला करते हुए कहती हैं कि किसी दलित के घर जाकर कुछ खाने, रुकने या कीचड़ में लथपथ कपड़े वाले बच्चे को गोद लेने से दलितों का उत्थान नहीं होगा. ये तमाशा है. राहुल जवाब में कहते हैं, ''आजकल यह फैशन बन गया है. जब भी मैं किसी गांव में जाता हूं तो वे यह कहकर मेरा उपहास उड़ाते हैं कि मैं गांव में जाता हूं, उनकी तरह एसी कमरे में क्यों नहीं बैठता. पर मेरे लिए असली भारत गांव ही हैं.''

{mospagebreak}पार्टी के लोगों का कहना है अब कांग्रेस ही नहीं, विपक्ष भी राहुल और प्रियंका की ब्रांडिंग करने लगा है. इसमें बुरा क्या है? उधर जब मायावती ने यह कहना शुरू किया कि केंद्र उत्तर प्रदेश के विकास में मदद नहीं कर रहा है तो राहुल ने बाराबंकी की एक सभा में कहा, ''विकास के लिए केंद्र से पैसा तो मिलता है मगर सुना है कि लखनऊ में एक ऐसा हाथी बैठा है जो सब कुछ निगल जाता है.'' लोग हंसे भी और सोच में डूब गए कि आखिर केंद्र से नरेगा और दुपहरी भोजन सरीखी योजनाओं के तहत जो पैसा आता है, उसका होता क्या है. हालांकि विपक्ष उन्हें युवराज कहकर कटाक्ष करता है और खुद पार्टी के लोग समवेत स्वर में राहुल को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, पर राहुल कहते हैं कि वे अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं.

दरअसल आज वे खुद अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं, जिसके कारण विपक्ष उनके प्रयास की आलोचना कर उनके ब्रांड को जाने-अनजाने आगे बढ़ा रहा है और फिर कुछ दिनों बाद राजनीति के बाजार में वे जम जाएंगे. नेहरू-गांधी परिवार की मुहर पहले से उनके पास है ही.

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