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कांग्रेस-डीएमके में सीट शेयरिंग पर पेच, लोकसभा या विधानसभा फॉर्मूला, किस पर बनेगी बात?

तमिलनाडु की सियासी बाजी जीतने के लिए डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलाकर सेक्लुयर डेमोक्रेटिक गठबंधन (एसडीए) बनाया है, लेकिन अभी तक सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर सहमति नहीं बन पाई है. वहीं, कांग्रेस और डीएमके सहित सभी सहयोगी दलों के नेताओं के बीच सीट समझौते को लेकर गुरुवार को अहम बैठक हो रही है.

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राहुल गांधी और एमके स्टालिन
राहुल गांधी और एमके स्टालिन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तमिलनाड में कांग्रेस-डीएमके साथ लड़ेंगे चुनाव
  • डीएमके ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने पास रखना चाहती है
  • कांग्रेस लोकसभा चुनाव के फॉर्मलूे पर मांग रही सीट

तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में AIADMK गठबंधन को मात देने के लिए डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलाकर सेक्लुयर डेमोक्रेटिक गठबंधन (एसडीए) बनाया है, लेकिन अभी तक सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर सहमति नहीं बन पाई है. वहीं, कांग्रेस और डीएमके सहित सभी सहयोगी दलों के नेताओं के बीच सीट समझौते को लेकर गुरुवार को अहम बैठक हो रही है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस और डीएमके कितनी-कितनी सीटों पर उतरती हैं. 

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तमिलनाडु में सेक्लुयर डेमोक्रेटिक गठबंधन (एसडीए) में डीएमके, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, यूनियन मुस्लिम लीग, एमडीएमके सहित कुछ क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं. सीट शेयरिंग को लेकर डीएमके की ओर से महासचिव दुरिमुरुगन, सांसद कनिमोझी और संसदीय दल के नेता टीआर बालू जबकि कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेता ओमन चांडी, दिनेश गुंडु राव, और रणदीप सुरजेवाला बैठक में शामिल हो रहे हैं. इसके अलावा एमडीएमके सहित लेफ्ट पार्टी के नेता भी शामिल होंगे. 

डीएमके और कांग्रेस के बीच सीटों पर पेच

तमिलनाडु की कुल 234 विधानसभा सीटों में से डीएमके 175 सीटों पर खुद चुनाव लड़ने तैयारी में है और बची बाकी 59 सीटें कांग्रेस सहित अन्य सहयोगी दलों को देना चाहती है. वहीं, कांग्रेस कम से कम 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, लेकिन स्टालिन इतनी सीटें देने को राजी नहीं हैं. सूत्रों की मानें तो डीएमके इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 25 से 30 सीटें ही देना चाहती है. 

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बता दें कि 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और डीएमके ने मिलकर लड़ा था. डीएमके ने राज्य की कुल 38 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 9 सीटें दी थीं जबकि डीएमके 23 सीटों पर लड़ी थी. इसके अलावा सीपीआई और सीपीआई (एम) दो-दो, एआईएडीएमके, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और वीसीके एक-एक सीट पर मैदान में उतरी थी. कांग्रेस 9 में से 8 सीटें जीती थी जबकि डीएमके 20 और बाकी सहयोगी दल अपनी-अपनी सीटें जीतने में कामयाब रहे थे. 

लोकसभा के फॉर्मूले के लिहाज से सीट शेयरिंग

लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो एक संसदीय सीट पर 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इस लिहाज से सीट शेयरिंग होती है तो कांग्रेस के 54, डीएमके 138, लेफ्ट 24 और बाकी सहयोगी दलों के खाते में 6-6 सीटें आ रही है. कांग्रेस इसी फॉर्मूले पर सीट शेयरिंग चाहती है, जिसके चलते 50 सीटें मांग रही है. हालांकि, इस पर डीएमके सहमति नहीं हो रही है, क्योंकि उसे काफी सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ा रहा है. 

विधानसभा चुनाव के लिहाज से सीट शेयरिंग

डीएमके 2016 के विधानसभा चुनाव की तर्ज पर सीट शेयरिंग चाहती है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और डीएमके मिलकर लड़ी थीं, जिनमें डीएमके 178, कांग्रेस 40 और बाकी बची 16 सीटों पर अन्य सहयोगी दलों अपने प्रत्याशी उतारे थे. इस बार तमिलनाडु के राजनीतिक समीकरण 2016 के चुनाव से काफी अलग हैं और डीएमके को सत्ता में अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है. यही वजह है कि वो पिछली बार से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी नहीं है. इसके चलते कांग्रेस सहित तमाम बाकी सहयोगी दलों के खाते में कम सीटें आ रही हैं. यही वजह है कि सीट शेयरिंग को लेकर पेच नहीं सुलझ रहा है. 

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बता दें कि कांग्रेस और डीएमके 2006 के विधानसभा चुनाव से मिलकर लड़ रहे हैं. 2006 के चुनाव में कांग्रेस 48 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जबकि डीएमके 129 सीटों पर लड़ी और बाकी अन्य सहयोगी दलों के खाते में गई थी. ऐसे ही 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 63 और डीएमके 119 और बाकी बची सीटों पर अन्य सहयोगी दलों ने चुनाव लड़ा था. ऐसे में देखना है कि इस बार किसके खाते में कितनी सीटें आती हैं.
 

 

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