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UP Election 2022: अखिलेश के निशाने पर बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग, इन जातियों को साधने में जुटे 

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग में सपा प्रमुख अखिलेश यादव सेंध लगाकर सत्ता में वापसी की कवायद में जुटे हैं. सपा की नजर उन सभी वोट बैंक पर है, जिनके सहारे बीजेपी 2017 के चुनाव में 312 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी. ऐसे में जाट, राजभर, कुर्मी वोटों से लेकर कुशावाहा और ब्राह्मण वोटों को भी साधने में जुटे हैं.

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव
सपा प्रमुख अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी में जुटे अखिलेश
  • ब्राह्मण से लेकर कुर्मी को जोड़ने में जुटी सपा
  • जाट-राजभर वोटों के लिए सपा ने किया गठबंधन

उत्तर प्रदेश में पांच साल पहले बीजेपी ने अपने 15 साल के सत्ता के वनवास को खत्म करने के लिए सवर्ण समाज के साथ-साथ ओबीसी-दलित समुदाय के कुछ जातियों को मिलाकर सोशल इंजीनियरिंग बनाई थी. बीजेपी का यह सियासी फॉर्मूला सफल भी रहा था. लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की इसी सोशल इंजीनियरिंग में सपा प्रमुख अखिलेश यादव सेंध लगाकर सत्ता में वापसी की कवायद में जुटे हैं. सपा की नजर उन सभी वोट बैंक पर है, जिनके सहारे बीजेपी ने 2017 के चुनाव में 312 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी. 

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2022 चुनाव में सपा अलग-अलग जातियों को साधने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी हैं. अखिलेश यादव जातीय आधार वाले दलों के साथ गठबंधन करने से लेकर विपक्षी दलों के नेताओं तक को अपने साथ मिलाने में जुटे हैं. ऐसे में अखिलेश की नजर राजभर, ब्राह्मण, जाट, कुर्मी, मौर्या-कुशवाहा नोनिया चौहान और पासी समुदाय के वोट बैंक पर है, जिन्हें अपने पाले में लाने के लिए तमाम जतन कर रहे हैं. 

राजभर वोटर पर नजर
यूपी में राजभर समुदाय की आबादी करीब 3 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है. पूर्वांचल में राजभर समुदाय का वोट किसी भी दल का सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. पूर्वी यूपी के गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में इनकी अच्छी खासी आबादी है, जो सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं. 

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2017 में बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर की भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, इसका सियासी फायदा दोनों पार्टियों को मिला था. यूपी की करीब 22 सीटों पर बीजीपी की जीत में राजभर वोट अहम कारण था, जबकि चार सीटों पर ओमप्रकाश राजभर की पार्टी को जीत मिली थी. राजभर समाज का 80 फीसदी से ज्यादा वोट बीजेपी गठबंधन को मिला था और सपा को महज 5 फीसदी मिले तो 15 फीसदी वोट बसपा के खाते में गया था. 

पूर्वांचल में राजभर वोटों को साधने के लिए 2022 के चुनान में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन किया है. इसके अलावा अखिलेश ने दूसरे दलों के राजभर समाज के नेताओं को भी अपने साथ मिलाया है, जिनमें रामअचल राजभर और सुखदेव राजभर के बेटे हैं. पूर्वांचल में सपा की हर रैली में मंच पर अखिलेश के साथ राजभर नेता नजर आ रहे हैं. इस तरह सपा ने राजभर वोट को अपने पाले में लाने के लिए कवायद की है. 

जाट वोट बैंक में लगेगी सेंध
उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फीसदी है, जबकि पश्चिम यूपी में 17 फीसदी के आसपास है. साल 2013 मुजफ्फरनगर दंगे के चलते बीजेपी ने जाट समुदाय को अपने साथ जोड़कर विपक्ष का पश्चिमी यूपी में पूरी तरह सफाया कर दिया था. इतना ही नहीं, जाटों की कही जाने वाली पार्टी आरएलडी को महज एक सीट मिली थी. सीएसडीएस के मुताबिक जाट समाज ने बीजेपी को करीब 80 फीसदी वोट दिए थे. हालांकि, इस बार किसान आंदोलन और गन्ना के दाम न बढ़ाए जाने के चलते सियासी समीकरण बदल गए हैं. 

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किसान आंदोलन से जाट-मुस्लिम के बीच दूरियां कम हुई हैं. पिछले साल चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद जाट समाज के बीच जयंत चौधरी के प्रति सहानभूति भी दिख रही है. ऐसे में अखिलेश ने जयंत चौधरी की आरएलडी के साथ गठबंधन कर रखा है, जिसके पीछे जाट वोटों को साधने का प्लान है. जाट समाज के एक बड़ा तबका इस बार जयंत चौधरी के साथ वापस खड़ा दिख रहा है और ऐसे ही 2022 के चुनाव तक रहा तो निश्चित तौर पर बीजेपी की चिंता बढ़ सकती है. इतना ही नहीं सपा ने दूसरी पार्टियों के जाट समाज नेताओं को भी अपने साथ लिया है. 

कुर्मी वोट को साध पाएगी सपा?
उत्तर प्रदेश में जातिगत आधार पर देखें तो यादव के बाद ओबीसी में सबसे बड़ी कुर्मी समुदाय की है. सूबे में कुर्मी वोटर 6 फीसदी है, लेकिन 16 जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी से ज्यादा है. इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं. यूपी की 4 दर्जन विधानसभा सीटों पर कुर्मी वोटर जीतने या फिर किसी को जिताने की ताकत रखता है. 

2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) के साथ गठबंधन कर कुर्मी समाज के वोटों को हासिल करने में कामयाब रही थी. कुर्मी वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए सपा ने भी केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल की अपना दल के साथ गठबंधन किया है. इसके अलावा सपा ने प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम को बना रखा है, जो कुर्मी समुदाय से आते हैं. इसके अलावा कुर्मी नेता लालजी वर्मा, बालकुमार पटेल सहित कई बड़े कुर्मा नेताओं को भी सपा में एंट्री दी है. 

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नोनिया-चौहान वोट बैंक 
ओबीसी में अति पिछड़ी जाति के तहत आने वाली नोनिया समाज, जो चौहान भी लिखती है. यह महज एक से डेढ़ फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल की 10 से ज्यादा सीटों पर असर रखते हैं. नोनिया समाज का वोट मऊ जिले की सभी सीटों पर  50 हजार अधिक वोटर हैं जबकि गाजीपुर के जखनियां में करीब 70 हजार वोटर हैं. इसी तरह बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली व बहराइच में भी बड़ी संख्या में है. 

नोनिया समाज कभी बसपा का वोट बैंक हुआ करता थे, लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फागू चौहान को साथ लेकर नोनिया समाज के 90 फीसदी वोट हासिल किए थे. बीजेपी को इसका फायदा मिला था. पूर्वांचल की सियासत में सपा ने नोनिया वोटों को अपने पाले में लाने के लिए संजय चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ भी गठबंधन कर रखा है. चौहान अपनी जातीय अस्मिता को लेकर सक्रिय हैं और सपा के पक्ष में समाज को एकजुट कर रहे हैं. 

ब्राह्मण वोट बैंक के लिए जतन
उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण वोटर किंगमेकर की भूमिका में है. ब्राह्मण समाज बीजेपी का यूपी में हार्डकोर वोटर माना जा है और 2017 के विधानसभा चुनावों में सीएसडीएस के अनुसार, ब्राह्मण समुदाय का 80 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला था जबकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 72 और 82 फीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया था. हालांकि, 2022 के चुनाव में ब्राह्मणों को साधने के लिए अखिलेश यादव तमाम जतन कर रहे हैं. भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने से लेकर ब्राह्मण समुदाय के मजबूत नेताओं को पार्टी में शामिल करा रहे हैं.

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यूपी में ब्राह्मण भले ही 10 फीसदी के करीब है, लेकिन सियासी ताकत उससे कहीं ज्यादा है. सूबे की 403 में से 77 सीटों पर ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में है. इसीलिए सपा ने अपने सियासी एजेंडे से ठाकुरों को आउट कर दिया है और ब्राह्मण को उनकी जगह शामिल कर लिया है. सपा इस बार ठाकुर से ज्यादा ब्राह्मण कैंडिडेट उतारने का मन बनाया है और यूपी चुनाव को ठाकुर बनाम ब्राह्मण के इर्द-गिर्द रख रहे हैं. ऐसे में देखना है कि ब्राह्मण वोटों में सपा क्या सेंधमारी कर पाती है. 

मौर्या-कुशवाहा वोट क्या टूटेगा?
यूपी में ओबीसी में मौर्या-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाति की आबादी 5 फीसदी है, लेकिन सूबे के 13 जिलों का वोट बैंक 10 से 15 फीसदी है. बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को 2017 के चुनाव में आगे कर और स्वामी प्रसाद मौर्य को जोड़कर यूपी में मौर्या-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाति के 90 फीसदी वोटों को हासिल किया था. 2022 के चुनाव में बीजेपी के इस वोट बैंक को सपा अपने साथ जोड़ने की कवायद में है, जिसके लिए अखिलेश यादव ने केशव देव मौर्य की पार्टी महान दल के साथ गठबंधन किया है. इसके अलावा बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे आरएस कुशवाहा को भी सपा ने अपने साथ जोड़ा है, जो इस बात का संकेत दे रहा है कि सपा की नजर मौर्या-शाक्य-सैनी और कुशवाहा वोट बैंक पर है.

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