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UP: अखिलेश यादव ने अपनाया बीजेपी का 'विनिंग फॉर्मूला', गैर-ठाकुर सवर्णों के सहारे योगी को मात देने का प्लान

बीजेपी ने पांच साल पहले सपा के खिलाफ गैर-यादव ओबीसी जातियों को जोड़कर अखिलेश यादव को सत्ता से बाहर कर दिया था. अब अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में उसी तरह से योगी के खिलाफ गैर-ठाकुर सवर्ण जातियों को एक कर सूबे की सत्ता में वापसी का प्लान बना रहे हैं.

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अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अखिलेश की नजर यूपी में गैर-ठाकुर सवर्ण वोट पर
  • सपा की रणनीति, योगी बनाम अखिलेश हो चुनाव
  • बीजेपी के लिए ब्राह्मणों की नारजगी बढ़ा रही चिंता

उत्तर प्रदेश की सत्ता के लिए बीजेपी और सपा के बीच शह-मात का खेल जारी है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जिस सियासी फॉर्मूले के जरिए सपा को सत्ता से बेदखल किया था तो उसी तर्ज पर 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अखिलेश यादव राजनीतिक चक्रव्यूह रच रहे हैं. बीजेपी ने पांच साल पहले सपा के खिलाफ गैर-यादव ओबीसी जातियों को एकजुट किया था तो अब अखिलेश उसी तरह से योगी के खिलाफ गैर-ठाकुर सवर्ण जातियों को एक कर सूबे की सत्ता में वापसी का मिशन बन रहे हैं.

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बता दें कि 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे. सूबे में करीब 15 साल के बाद बाद योगी आदित्यनाथ के रूप में सवर्ण समाज की ठाकुर जाति से कई सीएम मिला था.

सीएम योगी की ताजपेशी के साथ ही ये समझा जाने लगा था कि उत्तर प्रदेश में ठाकुर जाति प्रभावशाली हो गई है, क्योंकि योगी खुद भी उसी ठाकुर जाति से आते हैं. विपक्षी दलों ने सीएम योगी को ठाकुर परस्त और ब्राह्मण विरोधी करार देना शुरू कर दिया और 2022 के चुनाव में अब बीजेपी के लिए यह सिरदर्द बनता दिखाई दे रहा है.

अखिलेश बनाम योगी पर चुनाव का मिशन

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा से लेकर बसपा तक योगी आदित्यनाथ को ठाकुर परस्त सीएम बताकर ब्राह्मण समाज को साधने में जुटे हैं. सपा और बसपा दोनों की कोशिश यूपी चुनाव को ठाकुर बनाम ब्राह्मण के इर्द-गिर्द रखने की है. यही वजह कि सपा, चुनाव को अखिलेश बनाम योगी आदित्यनाथ करना चाहती है जबकि बीजेपी की कोशिश है कि योगी बनाम अखिलेश के बजाय मोदी बनाम अखिलेश कर चुनाव लड़ा जाए. 

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उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं कि यूपी में जब अखिलेश यादव की सरकार थी तो प्रदेश में यादव समाज के रवैए और सपा के जातिवाद से लोग दुखी थे और अब यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार है तो ठाकुर के कामकाज से लोग नाराज और दुखी हैं. यही वजह है कि अखिलेश ने इस चुनाव में अपनी रणनीति बदली है और ठाकुरों के बजाय ब्राह्मण वोटों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं, क्योंकि यूपी में ब्राह्मणों का वोट ठाकुर से कहीं ज्यादा है. इसीलिए अखिलेश उन्हें साधने के लिए तमाम जतन कर रहे हैं और योगी सरकार को ठाकुर परस्त बताने में जुटे हैं. 

बीजेपी की रणनीति पर सपा कैसे?

योगेश मिश्रा कहते हैं कि सपा उसी रणनीति पर काम कर रही है जैसे पिछले चुनाव में बीजेपी ने अखिलेश को यादव परस्त बताकर खिलाफ गैर-यादव ओबीसी जातियों को जोड़ा था और इस बार अखिलेश गैर-ठाकुर सवर्ण जातियों को जोड़ने पर काम कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी की रणनीति है कि यह चुनाव किसी भी तरह से मोदी बनाम अखिलेश किया जाए ताकि सपा के ठाकुर बनाम ब्राह्मण के इर्द-गिर्द चुनाव रखने की रणनीति को फेल किया जा सके.

वह कहते हैं कि ब्राह्मण और ठाकुर दोनों ही बीजेपी का हार्डकोर वोटर माना जाता है, लेकिन पांच साल में कई कारणों से ब्राह्मण की नाराजगी बढ़ी है, जिन्हें कैश कराने के लिए तमाम पार्टियां कवायद कर रही हैं. ऐसे में ब्राह्मण समाज के सामने भी चुनौती कि खुद को कैसे किंगमेकर साबित करने वाली छवि को बनाए रखे. ब्राह्मण समुदाय आखिर समय तक इंतजार करेगा, लेकिन अगर ऐसे ही यूपी का चुनाव ब्राह्मण बनाम ठाकुर के इर्द-गिर्द सिमटा रहा तो बीजेपी को नुकसान होगा और सपा को फायदा हो सकता है. 

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बता दें कि यूपी में पिछड़े वर्गों और दलित समाज की राजनीति करने वाली सपा और बसपा से ठाकुर और ब्राह्मण जीतकर आते रहे हैं. उदाहरण के लिए, यह देखा गया है कि जब सपा यूपी में चुनाव जीतती है तो यादव-मुस्लिम के बाद ठाकुर राज्य की विधानसभा में सबसे बड़े समूह के रूप में उभर कर आते हैं. वहीं, बसपा की जीत में दलित-ओबीसी के साथ ब्राह्मण का प्रतिनिधित्व अच्छा खासा रहा. ये दोनों जातियां की जनसंख्या का 16 प्रतिशत से अधिक नहीं हैं, लेकिन प्रत्येक चुनाव में वे 25 प्रतिशत से अधिक विधानसभा सीटों पर कब्जा करते रहे हैं. 

मुलायम के दौरे में सपा के एजेंडे में थे ठाकुर

मुलायम सिंह यादव के दौर में सपा के सियासी एजेंडे में ठाकुर अहम हुआ करते थे, लेकिन अब योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद सपा से ठाकुरों नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है. ऐसे में अखिलेश यादव ने सपा की रणनीति बदली है और ठाकुरों की जगह ब्राह्मण नेताओं को सियासी अहमियत देना शुरू किया है. इसकी एक वजह यह है कि यूपी में ब्राह्मणों की संख्या ठाकुरों से ज्यादा है. ब्राह्मण करीब 10 फीसदी है तो ठाकुर महज 6 फीसदी है. इसीलिए अखिलेश ने अपना पूरा फोकस इस चुनाव में ब्राह्मणों पर केंद्रित कर रखा है. 

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वैश्य और जैन को जोड़ने का भी प्लान

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि अखिलेश यादव यह चुनाव पूरी तरह से बीजेपी के ही पिछले फॉर्मूले पर लड़ रहे हैं. वो चाहे फिर बीजेपी के तर्ज पर जातीय आधार वाले छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की रणनीति हो या फिर गैर ठाकुर सवर्ण जातियों को साधने का प्लान हो. सपा के एजेंडे में इस बार ठाकुर की जगह ब्राह्मण वोटर ने ले ली है और साथ ही वैश्य और जैन समुदाय को जोड़ने का प्लान है. यही वजह थी कि अखिलेश यादव ने राजा भैया की पार्टी के साथ गठबंधन करने से साफ मनाकर दिया है. साथ ही अखिलेश के चुनावी मंच और रथ यात्रा पर भी किसी ठाकुर नेता को अभी तक जगह नहीं दी गई है, जो साफ संकेत है कि ठाकुर उनके एजेंडे से बाहर हैं. 

कलहंस कहते हैं कि साधु से नेता बने योगी आदित्यनाथ अपनी जाति को छोड़ नहीं पाए हैं, इसीलिए सूबे में जमीनी तौर पर ठाकुरों को लेकर एक नाराजगी दिख रही है. अखिलेश यादव इस सियासी नब्ज को पूरी समझ गए हैं कि ठाकुर वोटर किसी भी कीमत पर योगी को छोड़कर उनके साथ नहीं आएगा. उन्होंने ठाकुरों की जगह ब्राह्मणों को तरजीह देने के साथ ही दूसरे सवर्ण वोटर को भी साधने की रणनीति है. सपा का व्यापारी सम्मेलन इसी रणनिति का हिस्सा था और केंद्रीय एजेंसियों के छापेमारी के बाद अखिलेश ने जैन समाज को भी रिझाते नजर आए हैं. वहीं, भगवान परशुराम की मूर्ती लगाने से पूर्वांचल के कई ब्राह्मण नेताओं को अपने साथ लेकर अखिलेश यूपी चुनाव को ठाकुर बनाम ब्राह्मण बनाने में जुटे है. इसीलिए इस चुनाव को सपा योगी बनाम अखिलेश बनाने में जुटी है. 

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हालांकि, योगी आदित्यनाथ के बायोग्राफी लिखने वाले शांतनु गुप्ता कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने ठाकुरों की राजनीति करके चुनाव नहीं जीते हैं बल्कि हिंदू की राजनीति कर जीत हासिल की है. इस चुनाव में भी वो हिंदुत्व और कानून व्यवस्था को अपना राजनीतिक एजेंडा बना कर रहे हैं. ऐसे में विपक्ष भले ही उन्हें ठाकुर परस्ती के कठघरे में खड़ा कर रहा हो, पर वो हिंदुत्व के इर्द-गिर्द चुनाव को रख रहे हैं. 

वहीं, सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि बीजेपी की कोशिश जरूर है कि हिंदुत्व के इर्द-गिर्द चुनाव रखा जाए, लेकिन जातीय को चुनाव से नाकारा नहीं जा सकता है. योगी सरकार में ठाकुर समाज को प्रभुत्व शासन और प्रशासन में बढ़ा है. यूपी में ठाकुर समाज से डीएम और एसपी की नियुक्ति को लेकर देख सकते हैं, जिससे साफ हो जाएगा कि ब्राह्मण, ओबीसी और दलितों की तुलना में ठाकुरों का कितना ज्यादा प्रतिनिधित्व है. आजादी के सात दशकों के बाद सूबे में ठाकुरों के प्रभुत्व योगी राज में बढ़ा है, जिसे सपा अपना अपना सियासी हथियार बना रही है और बीजेपी के लिए यही चिंता का सबब बन गया है. 


 

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