उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव मैनपुरी जिले की करहल सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. करहल सीट से उतरकर अखिलेश ने यादव बेल्ट के सियासी समीकरण साधने का बड़ा दांव चला है. करहल के अलावा दूसरी सीट से भी अखिलेश यादव चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं, क्योंकि उन्होंने आजतक के इंटरव्यू में कुछ ऐसे ही राजनीतिक संकेत दिए हैं.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आजतक से विशेष बातचीत में करहल के अलावा किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा कि यदि पार्टी कहेगी तो करहल के अलावा भी किसी अन्य सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं. अखिलेश यादव ने जिस तरह से दूसरी अन्य सीट पर चुनाव लड़ने से इंकार नहीं किया और पार्टी के ऊपर डाल दिया है. ऐसे में अखिलेश यादव बृज के साथ-साथ पूर्वांचल के सियासी समीकरण को साधने के लिए किसी सीट से चुनाव मैदान में उतरते हैं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
सेफ सीट है करहल
करहल सीट के सियासी समीकरण सपा के पक्ष में माना जा रहा है, जहां पार्टी का कब्जा है. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए करहल सेफ सीट मानी जा रही है. 1985 से यादव समाज के नेताओं का कब्जा है, 2002 में बीजेपी सेसोबरन सिंह जीते थे और उन्होंने सपा का दामन थाम लिया था. मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र में आता है, जहां मोदी लहर में भी सपा को 47 फीसदी वोट मिले थे. बीजेपी यहां तीसरे नंबर पर रही है, इससे यह समझा जा सकता है कि यह सीट सपा के लिए कितनी मुफीद है.
करहल विधानसभा क्षेत्र में यादव मतदाताओं की संख्या 1.25 लाख के आसपास है. जातीय समीकरणों के लिहाज से करहल सीट सपा के लिए मजबूत किले की तरह है. ऐसे में अखिलेश यादव उतरते हैं तो उन्हें बहुत ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ेगी. वहीं, अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने का असर आसपास के अन्य जिलों में देखने को मिलेगा.
करहल सीट पर अखिलेश के चुनाव लड़ने से कानपुर और आगरा मंडल की कई सीटों के साथ ही फिरोजाबाद, एटा, औरैया, इटावा, कन्नौज समेत कई सीटों पर असर हो सकता है, क्योंकि ये जिले एसपी के गढ़ माने जाते हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी ने पूरे यादव बेल्ट में बेहतर प्रदर्शन किया था. ऐसे में अखिलेश यादव के यहां से मैदान में उतरना पार्टी के लिए कई मायनों में फायदेमंद हो सकता है.
पूर्वांचल साधने उतर सकते हैं अखिलेश
ऐसे ही पूर्वांचल के सियासी समीकरण को साधने के लिए अखिलेश यादव पूर्वी उत्तर प्रदेश की किसी सीट से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं. करहल के अलावा किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ने से अखिलेश यादव इंकार नहीं कर रहे हैं बल्कि गेंद पार्टी के पाले में डाल दी है और कहा कि यादि पार्टी कहेगी तो जरूर लड़ेंगे. ऐसे में संभावना है कि अगर अखिलेश किसी दूसरी सीट से चुनाव मैदान में उतरते हैं तो वो पूर्वांचल की हो सकती है.
दरअसल, पूर्वांचल में बीजेपी ने पिछले चुनाव में क्लीन स्वीप किया था और यहां की 80 फीसदी से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वांचल के वाराणसी से प्रतिनिधित्व करते हैं तो सीएम योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद भी पूर्वांचल में आता है. 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सदर सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिसे पूर्वी यूपी के सियासी लिहाज से देखा जा रहा है.
पूर्वांचल में साधे हैं अखिलेश ने समीकरण
पूर्वांचल में बीजेपी को घेरने के लिए अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर और संजय चौहान की पार्टी के साथ हाथ मिला रखा है तो स्वामी प्रसाद मौर्य, रामअचल राजभर, लालजी वर्मा जैसे ओबीसी नेताओं को भी पार्टी में लिया है. इसके अलावा पूर्वांचल के ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी सहित तमाम ब्राह्मण नेताओं को भी सपा में शामिल कराया है. ऐसे में जातीय समीकरण के लिहाज से अखिलेश ने पूर्वांचल में बेहतर तरीके से सियासी बिसात बिछा रखी है. ऐसे में अखिलेश खुद अगर पूर्वांचल की किसी सीट से चुनावी ताल ठोक देते हैं तो उसका सियासी असर इलाके की दूसरी तमाम सीटों पर भी पड़ेगा.
करहल सीट पर तीसरे चरण में वोटिंग है जबकि पूर्वांचल में आखिरी के छठे और सातवें चरण में चुनाव है. ऐसे में अखिलेश सियासी माहौल बनाए रखने के लिए पूर्वांचल की किसी सीट से उतर सकते हैं. हालांकि, अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने की संभावना पहले आजमगढ़ की गोपालपुर सीट पर लगाई जा रही थी. अखिलेश यादव आजमगढ़ से ही सांसद हैं और वो यहां से चुनाव मैदान में उतरते हैं तो पूर्वांचल की तमाम सीटों पर प्रभाव डालेंगे. ऐसे में देखना होगा कि अखिलेश यादव करहल के अलावा किस सीट से चुनावी मैदान में उतरते हैं.