
सपा प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए सोची-समझी और सधी रणनीति के साथ चुनावी मैदान में कदम बढ़ा रहे हैं. सूबे में राजनीतिक दलों से गठजोड़ करने के साथ-साथ अखिलेश अपने राजनीतिक समीकरण को भी दुरुस्त करने में भी जुटे हैं. पूर्वांचल की सियासत में किंगमेकर माने जाने वाले राजभर समुदाय को साधने के लिए समाज के सभी दिग्गज नेताओं को अखिलेश अपने पाले में लाने में कामयाब हो गए हैं. ऐसे में अब देखना है कि पूर्वांचल में बीजेपी के लिए सपा क्या चुनौती खड़ी करती है?
सपा में राजभर समाज के दिग्गज नेता
यूपी की सियासत में राजभर समुदाय के ओमप्रकाश राजभर, रामअचल राजभर और सुखदेव राजभर सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं, जिनके जरिए बसपा पूर्वांचल की राजनीति में सियासी गुल खिलाती रही है. बसपा में ओबीसी चेहरे के रूप में पहचान बनाने वाले रामअचल राजभर रविवार को सपा में शामिल हो गए.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर पहले ही सपा के साथ चुनावी गठबंधन की घोषणा कर चुके हैं. इसके अलावा राजभर समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में जाने वाले बसपा के संस्थापक सदस्य रहे सुखदेव राजभर भी जीते जी अपने बेटे को अखिलेश यादव के साथ कर गए है. बसपा के अंबेडकरनगर लोकसभा प्रभारी और लोकसभा क्षेत्र के अध्यक्ष रहे जगदीश राजभर भी सपा में शामिल हो गए हैं.
रामअचल की सियासी ताकत
रामअचल राजभर बसपा के संस्थापक सदस्यों में से थे और कांशीराम के समय से ही पार्टी में जुड़े हुए रहे. रामअचल को बसपा संगठन के शिल्पकार के रूप में जाना जाता है और अकबरपुर से पांच बार के विधायक हैं. बसपा की सभी सरकारों में वो महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे हैं.
बसपा के यूपी अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव का जिम्मा भी संभाल चुके राजभर ने रविवार को सपा में शामिल हो गए हैं. रामअचल अंबेडकरनगर जिले में राजभर समाज के सबसे बड़े नेता के तौर पर गिने जाते हैं और आसपास के जिलों में अपने समुदाय पर वो मजबूत पकड़ रखते हैं.
ओपी राजभर का सपा से गठबंधन
बसपा से अलग होकर राजभर समाज को राजनीतिक विकल्प देने के लिए ओमप्रकाश राजभर ने भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी का गठन किया है. पूर्वांचल की सियासत में 2017 में अपने आपको साबित कर चुके ओपी राजभर ने 2022 के चुनाव में अखिलेश यादव के साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है.
बलिया, मऊ, गाजीपुर, बनारस, आजमगढ़ और चंदौली जिले के राजभर समुदाय के बीच ओमप्रकाश राजभर की मजबूत पकड़ मानी जाती है. ऐसे में सपा के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने से इन इलाकों में बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.
सुखदेव राजभर का बेटा साइकिल पर सवार
बसपा के संस्थापक सदस्य रहे सुखदेव राजभर का निधन हो चुका है, लेकिन आजमगढ़ की सियासत में उनकी राजनीतिक तूती बोलती थी. राम मंदिर आंदोलन की लहर में पहली बार सुखदेव राजभर विधायक बने तो फिर पलटकर नहीं देखा. बसपा की सभी सरकारों में मंत्री और विधानसभा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी संभाली.
राजभर अपने अंतिम दिनों में बीएसपी की मौजूदा हालत से व्यथित थे और वो अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य को लेकर इतने चिंतित थे कि अखिलेश यादव को पत्र लिखकर अपने बेटे पप्पू राजभर को उनके सुपुर्द करने की बात कही थी. इसी के पप्पू राजभर ने सपा की सदस्यता ली थी. सुखदेव राजभर के निधन पर अखिलेश पहुंचकर श्रद्धांजली दिए थे. पूर्वांचल के राजभर समुदाय के बीच सुखदेव राजभर की अलग अहमियत थी.
राजभर वोटर पूर्वांचल में अहम भूमिका में
राजभर समुदाय के दिग्गज नेताओं के सपा में आने से अब राजभर समाज मतों में बिखराव थम सकता है. पूर्वांचल में पिछड़ा समाज में अपनी पैठ रखने वाले राजभर समुदाय काफी अहम और निर्णायक भूमिका में है. ओपी राजभर के विकल्प के रूप में भाजपा ने सपा से ही आए अनिल राजभर को समाज के चेहरे में रूप में आगे बढ़ाया. लेकिन, कैबिनेट मंत्री बनने के बाद भी वो ओमप्रकाश राजभर का विकल्प नहीं बन पाए और न ही समाज में अपनी उस तरह से पैठ बना पाए हैं.
वहीं, राजभर समाज के तीन बड़े नेताओं के सपा के साथ आने के बाद वाराणसी के अलावा सलेमपुर, बलिया, मऊ, गाजीपुर सहित अन्य जिलों में राजभर समाज को सपा की ओर से लाने का प्रयास होगा. यूपी में राजभर समुदाय भले ही 3 फीसदी के बीच है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है. पूर्वांचल की 4 दर्जन सीटों पर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है.
राजभर से सपा को फायदे की उम्मीद
2017 के चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर किस्मत आजमाई, जिसका सियासी फायदा दोनों पार्टियों को मिला था. यूपी की लगभग 22 सीटों पर बीजेपी की जीत में राजभर वोटबैंक बड़ा कारण था जबकि चार सीटों पर ओपी राजभर की पार्टी को जीत मिली थी. बीजेपी के साथ राजभर की दोस्ती टूट गई और अब अखिलेश राजभर समाज के जातीय आधार को देखते हुए हाथ मिला लिया.
2012 के चुनाव में राजभर वोटों के चलते ओपी राजभर ने जिन सीटों पर अच्छा वोट हासिल किया था, उनमें से ज्यादातर सीटों पर 2017 के चुनाव में सपा दूसरे नंबर पर रही थी. पूर्वांचल की बेल्थरा रोड, हाटा, सिकंदरपुर, जखनियां, शिवपुर और रोहनियां में राजभर की पार्टी को 2012 में 10 हजार से 35 हजार तक वोट मिले थे.
2017 में सपा इन सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. फेफना और जहूराबाद में सपा तीसरे नंबर पर रही थी, लेकिन उसे दूसरे नंबर की पार्टी बसपा से थोड़े ही कम वोट मिले थे. ऐसी सीटों की संख्या 20 से ज्यादा है. ऐसे में अखिलेश यादव अब राजभर वोट को सपा के साथ जोड़ने में कामयाब रहते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.