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सारथी को सबक: राजा भैया से इतना क्यों खफा हैं अखिलेश यादव

प्रतापगढ़ एक कार्यक्रम में पहुंचे सपा प्रमुख अखिलेश यादव से पत्रकारों ने जब कुंडा के निर्दलीय विधायक राजा भैया के साथ गठबंधन पर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि यह कौन हैं, किसके बारे में बात कर रहे हो. अखिलेश ने राजा भैया को पहचानने से यूं ही इंकार नहीं किया बल्कि इसके पीछे सपा की रणनीति और अखिलेश का सियासी संदेश भी छिपा हुआ.

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अखिलेश यादव और राजा भैया
अखिलेश यादव और राजा भैया
स्टोरी हाइलाइट्स
  • दो दशक से राजा भैया को सपा देती रही है वॉकओवर
  • अखिलेश ने राजा भैया के लिए बंद किए सपा के दरवाजे
  • कुंडा सीट पर सपा इस बार उतारेगी मजबूत कैंडिडेट

उत्तर प्रदेश की सियासत में लंबे समय तक सपा के सारथी रहे कुंडा के निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को अखिलेश यादव ने पहचानने से इनकार कर दिया. प्रतापगढ़ एक कार्यक्रम में पहुंचे अखिलेश यादव से पत्रकारों ने जब राजा भैया के साथ गठबंधन पर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि यह कौन हैं, किसके बारे में बात कर रहे हो. अखिलेश ने राजा भैया को पहचानने से यूं ही इनकार नहीं किया बल्कि इसके पीछे सपा की रणनीति और अखिलेश का सियासी संदेश भी छिपा हुआ.  

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अखिलेश सरकार के दौरान राजा भैया उनकी कैबिनेट का अहम हिस्सा हुआ करते थे. सपा के सत्ता से हटते हुए उनके रिश्ते बिगड़ गए. ऐसे में अखिलेश यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव में राजा भैया को सियासी सबक सिखाने की तैयारी कर ली है. यही वजह है कि प्रतापगढ़ की जमीन पर राजा भैया को अखिलेश ने पहचानने से साफ इनकार कर दिया, जिससे साफ है कि अब उनके बीच संबंध अब पूरी तरह से खत्म हो गए हैं. 

कुंडा में राजा भैया के लिए चुनौती

सूबे में पिछले ढाई दशक से प्रतापगढ़ की सियासत को अपने हिसाब से चला रहे कुंडा विधायक राजा भैया के सामने इस बार अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की चुनौती है. 2022 के यूपी चुनाव में राजा भैया को न तो सपा का समर्थन होगा और न ही बीजेपी का वॉकओवर. ऐसे में राजा भैया पिछले काफी दिनों से अपने लिए गठबंधन की नब्ज टटोल रहे हैं. बीजेपी के साथ बात नहीं बनी तो चर्चा सपा की तरफ भी निकल पड़ी. 

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राजा भैया के सपा प्रमुख अखिलेश से भले ही रिश्ते खराब हो, लेकिन मुलायम सिंह और शिवपाल के साथ उनके बेहतर रिश्ते रहे हैं. राजा भैया के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव काफी चुनौती पूर्ण बना हुआ है. राजा के सामने अपना दुर्ग बचाने की चिंता है. ऐसे में राजा भैया ने मुलायम सिंह को जन्मदिन पर जाकर बधाई दी. इसके बावजूद अखिलेश की नाराजगी दूर नहीं होती दिख रही है. अखिलेश 2022 के चुनाव में राजा को सबस सिखाने की तैयारी कर रखी है. 

राजा भैया से क्यों नाराज हैं अखिलेश 

दरअसल, अखिलेश यादव की नाराजगी राज्यसभा चुनाव से शुरू हुई है, जब राजा भैया ने बीजेपी को वोट किया था. इसके बाद प्रतापगढ़ के सपा जिलाध्यक्ष छविनाथ यादव को काफी समय से परेशान किया गया. उन्हें कई बार जेल भेजा गया और अभी फिर दिवाली से एक दिन पहले जेल भेज दिया गया. प्रतापगढ़-कौशांबी में दलितों में अच्छी पैठ रखने वाले इंद्रजीत सरोज के कार्यक्रमों में भी बाधा पहुंचाई गई. 

लोकसभा चुनाव के दौरान इंद्रजीत सरोज के कई कार्यक्रम कुंडा और बाबागंज क्षेत्र में नहीं होने दिए गए. समाजवादी पार्टी को लगता है कि इन सब के पीछे कहीं ना कहीं राजा भैया का रोल रहा है. अखिलेश यादव से तो कोई बात राजा भैया की नहीं हुई लेकिन राजा भैया ने सीधे मुलायम सिंह यादव से मुलाकात कर ली. इससे पहले राजा ने शिवपाल यादव से भी मिले थे. 

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राजा भैया को अखिलेश ने पहचानने से इंनकार

राजा भैया को ठाकुर नेता के तौर पर पूरा प्रदेश जानता है. कुंडा के राजा के तौर पर प्रतापगढ़ जिले में अच्छी खासी सियासी पैठ मानी जाती है. ऐसे में खिलेश यादव ने उन्हें पहचाने से इंकार कर दिया यह चर्चा इन दिनों प्रतापगढ़ के साथ-साथ सूबे में लोगों की जुबान पर है. दरअसल, इस बार अखिलेश यादव ने कुंडा में राजा भैया के करीबी रहे गुलशन यादव पर दांव लगाने की तैयारी कर रहे हैं. 

राजा भैया साल 1993 से लगातार निर्दलीय विधायक चुने जाते आ रहे हैं और सपा और बीजेपी के सहयोग से मंत्री बनते रहे. सूबे में बीजेपी के कल्याण सिंह से लेकर राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में मंत्री रहे तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री काल में सत्ता में बन रहे. ऐसे में दो दशक से सपा कुंडा में उन्हें समर्थन देकर वॉकओवर देती रही, जिससे राजा भैया आसानी से कुंडा से जीतते रहे हैं. लेकिन, इस बार उनकी सियासी राह कठिन हो गई है. 

कुंडा सीट पर सपा का सियासी समीकरण

दरअसल, 2018 में राज्यसभा के चुनाव में अखिलेश यादव के साथ राजा भैया के रिश्ते बिगड़ गए. इसके बाद राजा भइया ने जनसत्ता दल नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली. 2019 लोकसभा के चुनाव में पार्टी से दो सीटों कौशांबी और प्रतापगढ़ सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका था. 

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राजा भैया के कुंडा और बाबागंज क्षेत्र में यादव मतदाताओं का दबदबा है. राजा भैया यादव, पासी, मुस्लिम और ठाकुर वोटरों के सहारे सियासी दबदबा कायम रखा था. वहीं, बसपा छोड़कर सपा में आए पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज और राजा के कभी करीबी रहे गुलशन यादव और छविनाथ यादव उनके धुर विरोधी हो गए हैं. बीजेपी ने भी राजा भैया के विरोधी शिव प्रकाश मिश्र सेनानी और पूर्व सांसद रत्ना सिंह को अपने खेमे में मिला रखा है. 

पहले कुंडा नगर पंचायत के चुनाव में गुलशन यादव ने राजा भैया के समर्थक को सियासी मात दी थी. अखिलेश ने छविनाथ को प्रतापगढ़ का सपा जिलाध्यक्ष बना रखा है तो कुंडा सपा की साइकिल दौड़ाने का जिम्मा इंद्रजीत सरोज पर है. राजा भैया को कुंडा में सपा नेताओं की तिकड़ी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. 

कुंडा में यादव वोट इस बार छिटकने का डर 

सपा की सक्रियता से कुंडा सीट पर यादव वोटों के छिटकने का डर राजा भैया को साफ नजर आ रहा है. इसीलिए वो पिछले दिनों कुर्मी वोटों को साधने के लिए पहले जिला पंचायत की कुर्सी पर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी के समर्थन से कुर्मी समुदाय को जिताई. वहीं, अब चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से मुलाकात किया है.

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इस तरह से वो यादव समुदाय के कुछ वोटों को अपने साथ जोड़ने की कवायद में है, लेकिन अखिलेश ने पत्रकारों के सवाल पर जिस तरह से राजा को पहचाने से इंकार किया.  ऐसे में साफ है कि उनके लिए सपा से गठबंधन के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं और 2022 के चुनाव में सबक सिखाने की रणनीति है. 

 

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