समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की 2022 की चुनावी जंग जीतने के लिए 'नई हवा है, नई सपा है के नारे के साथ-साथ मुलायम सिंह यादव के एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण की परिभाषा भी बदल दी है.
अखिलेश यादव ने नई सपा के एम-वाई समीकरण में एम का मतलब महिला और वाई का मतलब युवा बताया है और कहा कि इन दोनों को साथ लेकर चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि नई सपा में आखिर क्यों एम-वाई समीकरण की परिभाषा बदल गई है.
मुलायम ने एम-वाई समीकरण बनाया था
बता दें कि मुलायम सिंह यादव ने 90 के दशक में जनता दल से अलग समाजवादी पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद सूबे में अपना सियासी आधार मजबूत करने के लिए एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण बनाया था. यूपी में 20 फीसदी के करीब मुस्लिम और 12 फीसदी यादव मतदाता हैं, जिन्हें एकजुट कर मुलायम सिंह ने सपा का मूल वोट बनाया. इसी एम-वाई समीकरण के वोटबैंक के दम पर मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक सूबे की सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हुए.
बीजेपी के टारगेट पर सपा का M-Y फॉर्मूला
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम और यादव सपा का हार्डकोर वोटबैंक माना जाता है, लेकिन नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद सारे समीकरण ध्वस्त हो गए हैं. बीजेपी ने सूबे में मुलायम के इसी एम-वाई समीकरण को लेकर सपा पर निशाना साधा और गैर-यादव ओबीसी वोटों को अपने पाले में करने में कामयाब रही. सपा को पहले 2017 के चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और अब 2022 के चुनाव में भी बीजेपी यही नेरेटिव सपा के खिलाफ सेट कर रही है. ऐसे में अखिलेश यादव बीजेपी के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए एम-वाई समीकरण की नई परिभाषा गढ़ने का काम किया है.
मुस्लिम-यादव परस्त से बाहर निकलना चाहती सपा
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सपा के मुस्लिम-यादव वोट बैंक की राजनीति से दूर रहते हुए खुद को विकास पुरुष के रूप में पेश कर रहे हैं. वे अपने भाषणों और बयानों में मुसलमानों और यादव का कोई जिक्र नहीं करते हैं बल्कि अपनी सरकार में कराए गए विकास कार्यों की बात कर रहे हैं. अखिलेश यादव बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व के जवाब में सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं. वो ब्राह्मणों को साधने के लिए भगवान परशुराम की मूर्ति तो लगवा रहे हैं और तमाम मंदिरों में जाकर माथा भी टेक रहे हैं, लेकिन आजम खान की रिहाई को लेकर सूबे में कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर सके.
यूपी के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि बीजेपी इन दिनों लगातार अखिलेश यादव को मुस्लिम और यादव परस्त नेता के तौर पर खड़ा करना चाहती है. इसलिए अखिलेश यादव एम-वाई समीकरण में एम को महिला और वाई को युवा से जोड़ा है ताकि बीजेपी के द्वारा सेट किए नैरेटिव को तोड़ सके. सूबे में सपा की इन दिनों छह यात्रा निकली हैं, लेकिन एक भी यात्रा को न तो मुस्लिम नेता लीड करता नजर आया और न ही यादव समाज का नेता. अखिलेश ने मुस्लिम-यादव के बजाय कुर्मी, पासी, कुशवाहा, चौहान या फिर दूसरी अन्य जातियों के नेता को नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ाया है.
यूपी की अब सत्ता 40 फीसदी वोट के ऊपर
वह कहते हैं कि सूबे के बदले राजनीतिक हालात में अखिलेश यह जान चुके हैं कि सपा के परंपरागत एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे भाजपा को नहीं हरा सकते. 2017 के चुनाव से पहले 30 फीसदी के आसपास वोट पाने वाली पार्टियां सत्ता में आ जाती थी, लेकिन अब यह वोट का दायरा बढ़कर 40 फीसदी के ऊपर हो गया है. बीजेपी 2022 के चुनाव में 50 फीसदी प्लस वोट का टारगेट लेकर चल रही है. ऐसे में अखिलेश भी अपने वोट फीसदी को बढ़ाना चाहते हैं, जिसके लिए खुद को यादव-मुस्लिम तक बांधकर सीमित नहीं रखना चाहते.
जानकारों का मानना है कि 2014 के बाद से जिस तरह से हिंदू वोटर्स पर बीजेपी की पकड़ मजबूत होती जा रही है, उससे अखिलेश खुद को मुस्लिम-यादव परस्त के ठप्पे से खुद को हटाने के लिए मजबूर हुए हैं. सपा के पास एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण तो हैं. लेकिन, इसके साथ अगर बहुसंख्यक हिंदुओं का वोट बैंक जुड़ जाता है तो अखिलेश 2022 में कुछ कमाल कर सकते हैं. इसलिए वो एम-वाई की परिभाषा मुस्लिम-यादव के बजाय महिला और युवा बता रहे हैं.
यूपी में युवा-महिला वोटर अहम
उत्तर प्रदेश की सियासत में युवा और महिला वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. यूपी में कुल 14.40 करोड़ मतदाता हैं. इसमें 7.79 करोड़ पुरुष और 6.61 करोड़ महिलाएं हैं. युवा 35 फीसदी वोटर हैं. सपा ने 2022 की जंग फतह करने के लिए युवाओं से लेकर किसानों, महिलाओं और आम लोगों को जोड़ने की रणनीति बनाई है.
सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल की अगुवाई में 'किसान-नौजवान और पटेल' यात्रा 55 जिलों में निकाली गई. वहीं, महिलाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता और महिला सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जूही सिंह ने भी यात्रा निकाली थी, जिसके जरिए वो महिलाओं के साथ विचार-विमर्श कर उन्हें सपा से जोड़ने का काम कर रही हैं.
सपा 2022 के चुनाव में युवा मतदाताओं को लुभाने का भी प्लान बना रही है. ऐसे में युवाओं से हर वर्ष एक निश्चित संख्या में सरकारी नौकरियों की भर्ती करने का लिखित वादा कर सकती है. हर बेरोजगार युवा को एक निश्चित रकम हर महीने बेरोजगारी भत्ता के रूप में देने का वादा भी पार्टी की चुनावी रणनीति में शामिल हो सकता है. उत्तर प्रदेश में महिलाओं को अपने पक्ष में लाने के लिए सपा परास्नातक तक लड़कियों की शिक्षा मुफ्त करने समेत अनेक घोषणाएं कर सकती है. इसलिए अखिलेश ने कहा कि यूपी में वो इस बार एम-वाई (महिला-युवा) के एजेंडे पर चुनाव लड़ेंगे.