उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव नोएडा आने से बचते रहे हैं. 2012 से लेकर अभी तक एक भी बार नोएडा का दौरा नहीं किया जबकि इस बीच तीन चुनाव बीत गए. न तो 2017 में सरकार बची और न ही 2019 में बड़ा करिश्मा दिखा पाए. वहीं, अब 2022 के चुनावी तपिश के बीच 11 साल के बाद अखिलेश यादव सियासी गुडलक पाने के लिए गुरुवार देर शाम नोएडा का दौरा किया. ऐसे में सवाल उठता है कि अखिलेश के किस्मत का सितारा सियासी तौर पर बुलंद हो पाएगा?
यूपी की सत्ता में वापसी के लिए समाजवादी पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. पश्चिम में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने गुरुवार शाम गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) का दौरा किया और वहां से जुड़े मिथक को तोड़ पार्टी की जीत का दावा किया. 11 साल बाद नोएडा आने की वजह अखिलेश यादव ने बताया. सपा प्रमुख ने कहा कि नोएडा से संबंधित एक और कहावत है कि अगर कोई पार्टी नोएडा में प्रचार के लिए जाती है तो वो उत्तर प्रदेश चुनाव जीतती है.
अखिलेश यादव ने कहा कि मिथक है कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है, वो चुनाव हार जाता है, लेकिन एक मान्यता ये भी है कि जो नोएडा चुनाव प्रचार के लिए जाता है उसकी भी सरकार बनती है. मैंने 2011 में नोएडा से साइकिल यात्रा शुरू की थी, जिस वजह से 2012 में पूर्ण बहुमत के साथ सपा की सरकार बनी. उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि उनके इस बार के नोएडा दौरे से भी 2022 में सरकार बनाने में मदद मिलेगी.
बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव 11 साल के बाद नोएडा आए, लेकिन अंधविश्वास नहीं छोड़ पाए. नोएडा से जुड़ा मिथक ये है कि अगर कोई मुख्यमंत्री वहां पर जाता है, तो उसकी कुर्सी चली जाती है. इसी मिथक के चलते अखिलेश यादव साल 2012 के बाद से लेकर अभी तक नोएडा का दौरान नहीं किया. सीएम रहते हुए वे न तो नोएडा का दौरा किया और न ही 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचार करने तक नोएडा आए.
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आजतक के साथ बातचीत में भी नोएडा ना जाने को लेकर अपनी बात बतायी थी. अखिलेश ने कहा था कि ऐसा माना जाता है कि जो भी वहां जाता है, दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनता है. हमारे बाबा मुख्यमंत्री भी नोएडा गए थे. वह भी इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बनने वाले हैं.
2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कई बार नोएडा का दौरा किया. इसको लेकर कई बार उनसे सवाल किया गया, जिस पर उन्होंने किसी प्रकार का अंधविश्वास न मानने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि नोएडा में जो विकास कार्यों किए जा रहे हैं, उन्हें देखने और उनका उद्घाटन करने आना होगा. सीएम योगी ने पांच साल में नोएडा का करीब 20 बार दौरा किया.
दरअसल, नोएडा की यात्रा के बाद पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह 1989 में चुनाव हार गए थे और कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो सकी. वहीं से ही नोएडा मिथक अस्तित्व में आया. इसके बाद एनडी तिवारी, कल्याण सिंह और मायावती ने नोएडा गईं. वो लोग भी हार गए और सत्ता में दूसरी बार लगातार नहीं आ सके. इसी वजह से अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में वहां से दूरी बनाए रखी थी.
उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दशकों के दौरान सिर्फ मायावती ने ही बतौर मुख्यमंत्री रहते नोएडा का दौरा किया था और अब मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मिथक को बार-बार तोड़ा है. योगी पिछले पांच सालों में कई बार नोएडा का दौरा किया, लेकिन अखिलेश यादव 2011 के बाद से नोएडा नहीं आ सके. अखिलेश सीएम रहते नोएडा का जब भी कोई विकास कार्य का उद्घाटन या शिलान्यास करना रहता था, तो वो लखनऊ से ही उसे करते थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अखिलेश यादव के अंधविश्वास पर तंज कसा था. उन्होंने पश्चिमी यूपी के विधानसभा सीटों के लिए की गई वर्चुअल रैली में अखिलेश के नाम लिए बगैर कहा था कि खुद को शिक्षित और पढ़ा-लिखा मानने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ने तो अपने एक जिले को ही अंधविश्वास के कारण छोड़ दिया. कुर्सी के लिए एक जिले में विकास कार्यों की स्थिति तक नहीं देखने का आरोप लगाया.
वहीं, अखिलेश यादव इन दिनों पश्चिमी यूपी के चुनाव प्रचार के लिए आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के साथ ताकत लगाए रहे हैं. इसकी कड़ी में गुरुवार को बुलंदशहर के बाद देर शाम नोएडा इलाकों में पहुंचकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश करते दिखे. उन्होंने कहा कि नोएडा से प्रचार करने वाली को चुनाव में जीत मिलती है. इसके लिए उन्होंने 2011 के अपनी जीत का भी हवाला दिया. ऐसे में देखना है कि अखिलेश का गुडलक काम आता है कि नहीं?