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यूपी: वोटिंग के बीच बसपा के लिए अमित शाह के 'महानता' दिखाने के क्या हैं सियासी मायने?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जिस तरह से पश्चिमी यूपी से अवध और पूर्वांचल की तरफ बढ़ा है, वैसे-वैसे शह-मात का खेल जारी है. 2022 की चुनावी जंग से बसपा को राजनीतिक विश्लेषक बाहर मान रहे थे, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बसपा की प्रासंगिकता और मजबूती का बयान देकर दो ध्रुवी चुनाव को त्रिकोणीय बनाने का दांव चला है.

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अमित शाह और मायावती
अमित शाह और मायावती
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में बसपा जमीनी स्तर पर मजबूत: अमित शाह
  • सपा को दलित-मुस्लिम विरोधी बताने में जुटीं मायावती
  • पूर्वांचल में क्या यूपी का चुनाव त्रिकोणीय हो पाएगा

भारतीय राजनीति में ऐसा कम ही देखने को मिलता है जब किसी एक पार्टी का शीर्ष नेता किसी दूसरी पार्टी के पक्ष में कोई बड़ी बात कह दे. ऐसे में वो शीर्ष नेता अमित शाह हों और मौका यूपी चुनाव का हो तो ये बात और अहम हो जाती है. पिछले दिनों एक इंटरव्यू में शाह ने बसपा और उसकी सुप्रीमो मायावती की तारीफ में कई बातें कहीं. शाह के उस बयान के बाद आज बुधवार को मायावती ने लखनऊ में वोटिंग के दौरान अखिलेश यादव की पूर्व की सरकार पर हमला बोला. सवाल उठ रहे हैं कि तीन चरण के चुनाव के बाद आखिर शाह को यह बयान देने की क्या जरूरत पड़ी और मायावती के निशाने पर सपा क्यों है? सियासी पंडित इसका जवाब तलाशने में चकरघिन्नी बने हुए हैं. 

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अमित शाह ने बीएसपी और मायावती पर क्या कहा

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा ‘यूपी में बीएसपी ने अपनी प्रासंगिकता बनाई हुई है. मैं मानता हूं कि उनको वोट आएंगे. सीट में वो कितना बदलेंगे, ये मालूम नहीं, लेकिन बसपा को वोट आएंगे. मायावती की जमीन पर अपनी पकड़ है. जाटव वोट बैंक मायावती के साथ जाएगा. मुस्लिम वोट भी बड़ी मात्रा में मायावती के साथ जाएगा.' जब शाह से पूछा गया कि क्या इससे बीजेपी को फायदा होगा तो उन्होंने कहा ‘मुझे नहीं पता कि इससे बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान. यह सीट पर निर्भर करता है, लेकिन बीएसपी की रेलिवेंसी खत्म हो गई है, ये बात ठीक नहीं है.’

शाह के बयान को मायावती ने बताया ‘महानता’
 

अमित शाह का बयान ऐसे समय आया है जब तीन चरण के चुनाव हो चुके हैं और अब बारी अवध-पूर्वांचल क्षेत्र के सीटों की है. आज बुधवार को चौथे चरण की वोटिंग हो रही है जिसमें खुद मायावती लखनऊ में वोट डालने पहुंचीं. शाह के बयान पर उन्होंने पत्रकारों से कहा, 'मैं समझती हूं कि यह उनकी महानता है कि उन्होंने सच्चाई को स्वीकार किया है. लेकिन, मैं उनको यह भी बताना चाहती हूं कि पूरे उत्तर प्रदेश में दलितों और मुसलमानों का ही नहीं, बल्कि अति पिछड़े और सवर्ण समाज यानी सर्व समाज का वोट भी बहुजन समाज पार्टी को मिल रहा है.’ 

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इससे पहले अमित शाह के बयान के दूसरे दिन ही मायावती ने बीजेपी, सपा और कांग्रेस को दलितों और पिछड़ों का विरोधी करार दिया. खासतौर पर सपा को निशाने पर लेते हुए माया ने कहा कि सपा सरकार में दलितों की जमीन की लूट मची थी, लेकिन जब हमारी सरकार बनी तो दलितों की जमीन बचाने के लिए कानून बनाया कि बिना प्रशासनिक आदेश के वह जमीन नहीं बेच सकते. इससे दलितों की जमीन लुटने से बची. 

अमित शाह और मायावती के बयान के क्या हैं मायने

राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की तर्ज पर यूपी का चुनाव भी दो ध्रुवीय हो गया है, जिसमें सपा और बीजेपी आमने-सामने हैं. ऐसे में शाह ने सूबे में मायावती की प्रासंगिकता और बसपा के साथ दलित-मुस्लिम वोटों के मिलने की बात कह कर यूपी चुनाव को दो ध्रुवीय के बजाय त्रिकोणीय बताने की कवायद की है. इसका मकसद ये है कि सत्ता विरोधी या बीजेपी विरोधी वोटों में बंटवारा किया जा सके.

राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि तीन चरणों के वोटिंग पैटर्न से एक बात साफ है कि मुस्लिम वोटर इस बार एकजुट होकर वोट कर रहा है. कांग्रेस, बसपा और ओवैसी की पार्टी से मुस्लिम कैंडिडेट होने बाद भी मुस्लिम मतदाता उनके साथ नहीं जा रहे हैं बल्कि सपा के पक्ष में दिख रहे हैं. ऐसे में अमित शाह ने बसपा को मजबूत बताकर मुस्लिम वोटर्स को कन्फ्यूज करने का दांव चला है ताकि उसमें बिखराव हो. इसके अलावा सत्ताविरोधी वोट में भी एकजुट दिख रहा है, जो बीजेपी के लिए चिंता बढ़ा रहा है. 

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मायावती को मुख्य चैलेंजर के तौर पर पेश करने का दांव

वरिष्ठ पत्रकार युसुफ अंसारी कहते हैं कि अमित शाह ने मायावती को एक मुख्य चैलेंजर के तौर पर पेश किया ताकि जाटव और मुस्लिम वोटों का झुकाव बसपा की तरफ हो. यूपी में मुस्लिम उसी को वोट देना चाहते हैं, जिनमें उन्हें जीत की संभावना दिख रही. इसके अलावा जाटव और मुस्लिम दोनों का बड़ा तबका एंटी-बीजेपी माइंडसेट का है. ऐसे में कोई भी हारने वाले प्रत्याशी के लिए वोट नहीं करना चाहता. 

वह कहते हैं कि मायावती का लंबे समय तक सक्रिय न होने से सूबे में एक पर्सेप्शन है कि इस बार के चुनाव में बीजेपी को सपा ही टक्कर देती दिख रही है. मुस्लिम वोटर सपा के साथ एकजुट दिख रहा और बसपा के तमाम दलित नेताओं को भी अखिलेश ने अपने साथ मिला रखा है. ऐसे में बीजेपी के लिए चिंता बढ़ गई है. इसीलिए अमित शाह ने बयान देकर कवायद है कि यूपी चुनाव को दो ध्रुवीय के बजाय त्रिकोणीय बनाया ताकि किसी तरह से सपा के साथ जा रहे मुस्लिम वोटों में बंटवारा हो सके. 

पूर्वांचल में सपा और बीजेपी की जातीय गोलबंदी

दरअसल, पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाटलैंड और मुस्लिम-यादव बेल्ट में चुनाव खत्म हो चुके हैं और अब अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके की सीटों की बारी है. पूर्वांचल और अवध का चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण के बजाय जाति की बिसात पर होता है. 2017 में पूर्वांचल में बीजेपी ने गठबंधन और सियासी समीकरण के जरिए ही विपक्ष का सफाया कर दिया था. इस बार के चुनाव में बीजेपी के तर्ज पर सपा ने भी जातीय आधार वाले दलों के साथ गठबंधन कर रखा है.

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर, डा. संजय चौहान और कृष्णा पटेल की पार्टी के साथ गठबंधन किया तो स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, रामअचल राजभर और लालजी वर्मा जैसे कद्दावर ओबीसी नेताओं को भी साथ मिला लिया है. इसके अलावा मुख्तार अंसारी परिवार को भी साध लिया है. ऐसे में बीजेपी के लिए पूर्वांचल और अवध के इलाके में सियासी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं, लेकिन सपा के कई दलबदलू नेताओं को बसपा ने उतारकर मुकाबले को काफी रोचक बना दिया है. 

पूर्वांचल में मुस्लिम-कुर्मी-चौहान वोटर

पूर्वांचल के बहराइच, गोंडा, जौनपुर आजमगढ़, मऊ, वाराणसी जैसे इलाकों में मुसलमान वोटरों की तादाद काफी है. वहीं, गाजीपुर, मऊ, बलिया में राजभर और चौहान वोटर अहम है तो बाराबंकी से लेकर गोरखपुर, महाराजगंज, मिर्जापुर, भदोही, प्रयागराज, अंबेडकरनगर और अयोध्या जैसे जिले में कुर्मी वोटर अहम है. 2017 में बसपा को जो सीटें मिली थी, उनमें से ज्यादातर सीटें पूर्वांचल की रही हैं. 

बसपा ने इस बार सपा और बीजेपी के दलबदलू नेताओं को उतारा है, जिनका अपना आधार है. ऐसे में मायावती ने जिस तरह से सपा पर आक्रमक रुख अपनाया है और दलित-पिछड़े-मुस्लिमों को सियासी संदेश देने की कवायद की है. अगर ऐसे में मायावती और शाह के बयानों की ये रणनीति कामयाब रहती है तो सपा बनाम बीजेपी चुनाव त्रिकोणीय मोड़ ले सकता है. सपा-बीजेपी की आमने सामने की लड़ाई बीजेपी को सूट नहीं करती है. ऐसे में उसकी कवायद यूपी चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की है ताकि विपक्ष के वोट में बिखराव हो सके. इसी रणनीति पर बीजेपी और बसपा के सुर ताल एक जैसे दिख रहे हैं?

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