उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 2017 जैसे नतीजे दिलाने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया है. बीजेपी के चुनाव अभियान को धार देने के लिए अमित शाह 24 दिसंबर से एक सप्ताह का यूपी दौरा शुरू कर रहे हैं. इसके तहत वो सूबे के अलग-अलग इलाकों की यात्रा कर 140 विधानसभा सीटों को कवर करेंगे और बीजेपी के सियासी समीकरण को दुरुस्त करने का काम करेंगे, जिसमें खास फोकस ओबीसी बहुल सीटों पर रहेगा.
साधेंगे जातीय समीकरण
यूपी में एक सप्ताह के अपने दौरे के दौरान बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह कम से कम 21 अलग-अलग स्थानों की यात्रा करेंगे. साथ ही प्रत्येक स्थान पर सात 'क्लस्टर निर्वाचन क्षेत्रों' के लिए एक कार्यक्रम आयोजित करेंगे, जहां वो पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ चुनावी रणनीति पर मंथन करेंगे और साथ ही जीत का मंत्र देंगे.
अमित शाह के दौरे का प्लान सूबे के जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिसमें ओबीसी बहुल सीट को खास तवज्जे दी गई. अमित शाह के दौर के बीच जो कार्यक्रम होगा, उसमें तीन ओबीसी बहुल विधानसभा सीट, दो शहरी सीट, एक दलित बहुल और एक अल्पसंख्यक बहुल सीट के लोग शामिल होंगे. इस दौरान शाह पार्टी की रणनीति पर विचार करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ देर रात तक विचार-मंथन करेंगे.
अयोध्या-बरेली-गोरखपुर में रोड शो
अमित शाह यूपी के बरेली, अयोध्या और गोरखपुर में रोड शो करेंगे, जिसके लिए कार्यक्रम बनाया जा रहा है. बीजेपी के जन विश्वास यात्रा में शामिल होते वक्त वो रोड शो करेंगे. अयोध्या में रामलला के दर्शन का भी कार्यक्रम रखा जा रहा है. उत्तर प्रदेश के अपने इस दौरे में 140 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करने की रणनीति है. इसके तहत एक सभा में सात विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा.
यूपी में बीजेपी के लिए सियासी चुनौती
दरअसल, उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए इस बार 2017 जैसे आसान नहीं दिख रहा है. पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी और तराई के बेल्ट में बीजेपी के लिए सियासी चुनौतियां खड़ी हैं. पूर्वांचल में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिस तरह से ओमप्रकाश राजभर और संजय चौहान की पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है तो पश्चिमी यूपी में आरएलडी के साथ हाथ मिलाया है. ओबीसी के इर्द-गिर्द ही सपा अपना चुनावी एजेंडा सेट कर रखा है. इसके चलते बीजेपी का सूबे में सियासी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है.
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के जीत में गैर-यादव ओबीसी वोटरों की भूमिका अहम रही थी. बीजेपी ने पूर्वांचल में कुर्मी, राजभर और नोनिया समाज के वोटों को जोड़कर विपक्ष का पूरी तरह से सफाया कर दिया था. ऐसे ही पश्चिमी यूपी में जाट वोटों को अपने साथ मिलाकर क्लीन स्वीप किया था. लेकिन, इस बार पूर्वांचल में ओम प्रकाश राजभर बीजेपी से अलग हो चुके हैं तो पश्चिमी यूपी में जाट वोटर पहले की तरह साथ नहीं है. ऐसे में बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक में सियासी चुनौती खड़ी है.
शाह ने खत्म किया था बीजेपी का वनवास
संसद सत्र के समाप्त होते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश के चुनाव में कूद पड़ेंगे, क्योंकि सूबे में बीजेपी के सियासी वनवास को खत्म करने में उनकी भूमिका अहम रही थी. 2014 में उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव के तौर पर अमित शाह ने लोकसभा चुनावों में बड़ा उलट फेर किया था. उस वक्त पार्टी ने लोकसभा की 73 सीटों पर जीत हासिल की थी.
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी अध्यक्ष के पद पर रहते हुए भी उन्होंने चुनावों की कमान अपने हाथ में रखी थी. उन्होंने सूबे की तमाम ओबीसी जातियों के नेताओं के साथ लेकर बीजेपी के सियासी समीकरण को दुरुस्त किया था. ऐसे में नतीजों ने उत्तर प्रदेश में 35 सालों के चुनावों का इतिहास तोड़ दिया था. पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 325 सीटें जीती थीं, 2019 में एक बार फिर अमित शाह ने लोकसभा चुनावों में पार्टी का परचम लहराया था.
वहीं, अब फिर से एक बार सपा के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने और बीजेपी के सियासी समीकरण को मजबूत करने के लिए अमित शाह उतर रहे हैं. वो अपने पुराने सियासी फॉर्मूले के जरिए बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी की राह को आसान बनाने के लिए उतर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार अमित शाह क्या सियासी गुल खिलाते हैं?