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पूर्वांचल में बीजेपी को बूस्टर डोज देंगे अमित शाह! राजभर दूर, पटेल दे रहे चुनौती, निषाद बने फांस

पीएम मोदी पिछले दो महीने में एक-दो नहीं, बल्‍कि कुल आठ बार पूर्वांचल का दौरा कर चुके हैं. इतना ही नहीं, 10 दिन में पीएम मोदी ने दूसरी बार अपने संसदीय क्षेत्र बनारस पहुंचकर विकास की सौगात दी है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पीएम मोदी दो महीने में आठ बार पूर्वांचल का दौरा कर चुके हैं
  • पूर्वांचल में सपा कड़ी मेहनत कर रही है

देश की सत्ता का रास्ता भले ही उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, लेकिन यूपी की सत्ता पर पहुंचने के लिए पूर्वांचल में जीत का परचम फहराना जरूरी माना जाता है. 2022 चुनाव से ठीक पहले पूर्वांचल सियासी अखाड़ा बना हुआ है, जहां बीजेपी के जातीय समीकरण में सपा सेंधमारी करती नजर आ रही है. ऐसे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शुक्रवार को देवरिया में जनविश्वास यात्रा को संबोधित कर पूर्वांचल के सियासी समीकरण को दुरुस्त करने का दांव चलेंगे. 

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पीएम मोदी ने पिछले दो महीने में एक-दो नहीं, बल्‍कि कुल आठ बार पूर्वांचल का दौरा कर चुके हैं. इतना ही नहीं, 10 दिन में पीएम मोदी ने दूसरी बार अपने संसदीय क्षेत्र बनारस पहुंचकर विकास की सौगात दी है. वहीं, अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी पूर्वांचल में उतर रहे हैं, जहां रैली को संबोधित करने के साथ-साथ पार्टी नेताओं के साथ बैठकर चुनावी मंथन करेंगे. ऐसे में अब सवाल उठ रहा क‍ि पूर्वांचल पर इतना जोर क्‍यों?

दरअसल, पूर्वांचल में बीजेपी के लिए पिछले चुनाव में राजभर, पटेल और निषाद वोटर बूस्टर डोज साबित हुए थे, लेकिन यह सियासी समीकरण इस बार गड़बड़ाया हुआ नजर आ रहा है. बीजेपी की सहयोगी रहे भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर इस बार सपा के साथ हैं तो अपना दल के सहारे मिलने वाले पटेल समाज भी चुनौती देता दिख रहा. इसके अलावा निषाद आरक्षण की मांग बीजेपी के गले की फांस बना हुआ है. 

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पूर्वांचल में बीजेपी जातीय समीकरण को तोड़ने के लिए सपा कड़ी मेहनत कर रही है, जो राज्य के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में पूर्वी यूपी में अधिक जटिल है. ऐसे में बीजेपी को इस बात की चिंता सता रही है कि पश्चिमी यूपी की बजाए पूर्वांचल में कहीं ज्यादा सीटें न गवां न दें. पिछले चुनावी नतीजों को देखें तो साफ है कि मोदी लहर के बाद भी पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी विपक्षी दलों से पीछे रह गई थी. वहीं, अब राजभर के दूर होने और निषाद आरक्षण के चलते बीजेपी के लिए चिंता बढ़ गई है. 

पूर्वांचल इलाके में दूसरी विपक्षी पार्टियों के जनाधार वाले कई नेता भी सपा का दामन थाम चुके हैं. पूर्वांचल के बड़े ब्राह्मण चेहरे हरिशंकर तिवारी का पूरा कुनबा और खलीलाबाद से बीजेपी नेता दिग्विजय नारायण (जय चौबे) सपा में एंट्री कर गए हैं. इसके अलावा ओबीसी नेता अंबिका चौधरी, रामअचल राजभर से लेकर लालजी वर्मा और मुख्तार अंसारी के बड़े भाई को भी अखिलेश यादव ने अपने साथ ले लिया है. 

राजभर-सपा गठबंधन ने बढ़ाई चुनौती

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2022 के चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला किया है. संजय चौहान की जनवादी पार्टी के साथ भी सपा ने गठबंधन किया है. राजभर और अखिलेश के हाथ मिलाने के बाद बीजेपी के सामने पूर्वांचल को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. 

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वहीं, सत्ता में रहते हुए बीजेपी को पहले लोकसभा और फिर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पूर्वांचल इलाके में ही झटका लगा था. वहीं, अब 2022 के चुनाव से पहले जिस तरह से पूर्वांचल में बीजेपी के लिए जातीय चुनौती खड़ी हो रही है, जिसके चलते पार्टी के शीर्ष नेतृत्व सक्रिय हैं. पीएम मोदी से लेकर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ तक लगातार पूर्वांचल का दौर कर रहे हैं. 

यूपी की 33 फीसदी सीटें पूर्वांचल में

पूर्वांचल की जंग फतह करने के बाद ही यूपी की सत्ता पर कोई पार्टी काबिज हो सकती है, क्योंकि सूबे की 33 फीसदी सीटें इसी इलाके की हैं. यूपी के 28 जिले पूर्वांचल में आते हैं, जिनमें कुल 164 विधानसभा सीटें हैं. 2017 के चुनाव में पूर्वांचल की 164 में से बीजेपी ने 115 सीट पर कब्जा जमाया था जबकि सपा ने 17, बसपा ने 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थीं.

हालांकि, पिछले तीन दशक में पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा. वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में एक का साथ छोड़कर दूसरे का साथ पकड़ता रहा है. यही वजह है कि बीजेपी 2022 के चुनाव में अपने गढ़ को मजबूत करने में जुट गई है, इसीलिए पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के केंद्रीय लीडरशिप पूर्वांचल का दौरा लगातार करने में जुटी है.  

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पूर्वांचल में बीजेपी के सहयोगी


पूर्वांचल में बीजेपी ने अपने समीकरण को मजबूत बनाए रखने के लिए जाति आधरित पार्टियों के साथ भी गठबंधन कर रखा है. अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ बीजेपी मिलकर इस बार चुनावी मैदान में किस्मत आजमाएगी. इन दोनों ही दलों का सियासी आधार पूर्वांचल के जिलों में है. अनुप्रिया पटेल की कुर्मी वोटों पर पकड़ है तो संजय निषाद का मल्लाह समुदाय पर असर है. 

हालांकि, निषाद आरक्षण बीजेपी की लिए चिंता बन गई है.  2017 में पूर्वांचल में बीजेपी की जीत में राजभर वोटों की अहम भूमिका रही है, लेकिन ओमप्रकाश राजभर इस बार बीजेपी के बजाय सपा की साइकिल पर सवार हो चुके हैं. वहीं, कृष्णा पटेल वाले अपना दल के साथ सपा ने गठबंधन कर रखा है. इसके चलते पटेल वोट भी पिछली बार की तरह इस बार सपा के साथ मजबूती के साथ खड़ा नहीं है. ऐसे में पूर्वांचल की सियासी बाजी जीतना बीजेपी के लिए आसान नहीं है. ऐसे में बीजेपी की लीडरशिप ने पूर्वांचल में ताकत झोंक रखी है.
 

 

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