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बिहार के 'सीमांचल फॉर्मूले' पर यूपी चुनाव लड़ रहे हैं असदुद्दीन ओवैसी, क्या बन पाएंगे किंगमेकर

उत्तर प्रदेश की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी AIMIM की सियासी जड़े मजबूत करने के लिए मुस्लिम बहुल सीटों पर खास फोकस किया है. ओवैसी बिहार के सीमांचल में मुस्लिम बहुल सीट पर अपने प्रत्याशी उतारकर आरजेड़ी गठबंधन और जेडीयू गठबंधन को करारी मात दी थी. उसी तर्ज पर यूपी में भी चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन यहां की सियासी फिजा सीमांचल से काफी अलग है.

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असदुद्दीन ओवैसी
असदुद्दीन ओवैसी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में मुस्लिम वोटर 20 फीसदी के करीब हैं
  • ओवैसी की नजर मुस्लिम बहुल सीट पर है
  • बिहार से कैसे अलग है यूपी का सियासी माहौल

'मैं आपसे शिकायत करने आया हूं, मैं आपसे इल्तजा करने आया हूं, मैं आपको नेता बनाने आया हूं' उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तमाम रैलियों में यह बात हैदराबाद के सांसद और AIMIM पार्टी के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी दोहराते नजर आ रहे हैं. यूपी ओवैसी बिहार के सीमांचल मॉडल पर ही चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसके तहत सूबे के मुस्लिम बहुल सीटों पर खास फोकस किया है. ऐसे में देखना है कि बिहार की तर्ज पर यूपी में ओवैसी का मुस्लिम कार्ड सफल होता है कि नहीं? 

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सीमांचल के तर्ज पर यूपी जीतने का प्लान

बिहार में चुनावी सफलता मिलने के बाद ओवैसी उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन जोर-शोर से तलाश रहे हैं. ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी बिहार के सीमांचल फॉर्मूला अपनाया है, जिसके तहत उन्होंने साल 2020 के बिहार विधानसभा में पांच सीटों पर जीतकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था. सीमांचल में एक बड़े क्षत्रप के रूप में ओवैसी उभरे. इसी रणनीति पर अब यूपी चुनाव में भी किस्मत आजमा रहे. 

असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में मुस्लिम बहुल सीटों पर खास फोकस किया है, जहां पर 35 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. इन सीटों पर ओवैसी एक से दो बार जनसभाएं करके माहौल बनाने का काम कर चुके हैं, जिसमें ज्यादातर सीटें पश्चिमी यूपी की हैं. सपा-आरएलडी गठबंधन ने इस बार खुलकर मुस्लिम कार्ड नहीं खेल रही है, जिसके चलते ओवैसी को मुस्लिमों के बीच अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने का सियासी मौका नजर आ रही है. 

ओवैसी ने उतारे यूपी में 9 प्रत्याशी

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यूपी चुनाव के लिए असदुद्दीन ओवैसी ने 9 उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है. AIMIM की तरफ से जो पहली लिस्ट जारी की गई है उसमें डॉ महताब को लोनी (गाजियाबाद),  फुरकान चौधरी को गढ़ मुक्तेश्वर(हापुड़), हाजी आरिफ को धौलोना (हापुड़),  रफत खान को सिवाल खास (मेरठ), जीशान आलम को सरधाना (मेरठ), तस्लीम अहम को किठोर (मेरठ), अमजद अली को बेहट (सहारनपुर), शाहीन रजा खान को बरेली (बरेली). मरगूब हसन को सहारनपुर देहात विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है. 

असदुद्दीन ओवैसी ने  यूपी चुनाव के लिए पहली लिस्ट जारी की है, उसमें सिर्फ मुस्लिम प्रत्याशियों को ही मौका दिया है. सूबे के जिन सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, वो सभी पश्चिमी यूपी मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. ओवैसी बिल्कुल बिहार के सीमांचल की तरह ही यूपी में भी चुनाव लड़ने की तैयारी की है, जिसके चलते इसे ओवैसी का सीमांचल फॉर्मूला कहा जा रहा है. 

बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान पूरे राज्य के बजाय सीमांचल के इलाके पर अपना खास फोकस रखा. सीमांचल इलाके का ओवैसी ने कई बार दौरा किया और फिर पूर्णिया, किशनगंज और अरिरिया के 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. से सभी मुस्लिम बहुल सीटें थी और जहां जीत-हार का फैसला मुस्लिम वोटों से ही होता है. यही वजह है कि बिहार विधानसभा सभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी को उम्मीद से बड़ी सफलता मिली और सीमांचल की पांच सीटों पर कब्जा जमाया. 

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ओवैसी को बिहार की जोकीहाट, बहादुरगंज, अमौर और बायसी से AIMIM के टिकट पर चुनाव जीतकर पांच नेता बिहार विधानसभा पहुंच गए. इन विधानसभा सीटों पर आधा से ज्यादा वोट ओवैसी की पार्टी को मिले हैं. बिहार में चुनाव के फौरन बाद भले ही ओवैसी की पार्टी किंगमेकर नहीं बन सकी, लेकिन अगर जेडीयू गठबंधन सरकार में कोई खटपट होती है. ऐसे में विपक्ष को सत्ता में आने का मौका मिलता है तो उसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की अहम भूमिका होगी.  

बिहार से कैसे अलग होगा यूपी चुनाव?

वहीं, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने 9 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की तो उन्होंने इसी सीमांचल फॉर्मूले को अपनाने का फैसला किया है. पश्चिमी यूपी के जिन सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवारों उतारे हैं वो मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है. इसके बावजूद सीमांचल जैसे न तो यूपी में सियासी समीकरण हैं और न ही उनके पास बिहार जैसे नेता हैं. बिहार में जो लोग जीतकर आए हैं, उनमें से दो नेता पहले भी विधायक रह चुके हैं और उनका अपना सियासी कद है. 

यूपी में मुस्लिम वोटर जरूर अहम है, लेकिन बिहार में जिन सीटों पर ओवैसी की पार्टी की जीत मिली थी, वहां पर 60 से 70 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं जबकि यूपी में जिन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, वहां पर 25 से 40 फीसदी मुस्लिम हैं. इसके अलावा सपा-आरएलडी गठबंधन के अलावा कांग्रेस और बसपा ने भी मुस्लिम प्रत्याशी दे रखे हैं जबकि ओवैसी ने जिन्हें टिकट दिया है. उनका सियासी कद बिहार जैसे नेताओं की तरह नहीं है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यूपी में ओवैसी का सीमांचल फॉर्मूला कितना कारगर रहता है. 

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