उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (UP assembly election) में सात से आठ माह का वक्त बचा है. विधानसभा चुनाव से पहले हुए पंचायत चुनाव के साथ ही सूबे में सियासी गतिविधियां बढ़ गई हैं. ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी के यूपी दौरे ने भी प्रदेश में सियासी तापमान बढ़ा दिया है. 8 जुलाई को यूपी दौरे पर पहुंचे ओवैसी प्रदेश की 100 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं.
असदुद्दीन ओवैसी पहले लखनऊ पहुंचे और उसके बाद एक होटल में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात की. ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी में गठबंधन का ऐलान पहले ही हो चुका है. इस मुलाकात में राजभर और ओवैसी के बीच क्या बात हुई, इसे लेकर दोनों में से किसी ने भी कोई जानकारी नहीं दी है लेकिन माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बात हुई होगी.
ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के साथ हो जाने से विधानसभा चुनाव के समीकरण बदल सकते हैं. ओवैसी का दावा है कि वह मुसलमानों में लोकप्रिय हैं तो ओमप्रकाश मानते हैं कि उनके पास राजभर वोट बैंक है. मुस्लिम वोट बैंक अब तक समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस के साथ था लेकिन ओवैसी के आ जाने से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि ये छिटक कर एआईएमआईएम के पाले में जा सकता है.
योगी सरकार में मंत्री थे ओमप्रकाश राजभर
ओमप्रकाश राजभर की बात करें तो वे पहले बीजेपी के साथ थे. ओमप्रकाश राजभर यूपी की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. राजभर ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी को रोकने के लिए भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन कर लिया. भागीदारी संकल्प मोर्चा की बात करें तो इसमें कुल 10 पार्टियां शामिल हैं. बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, अपना दल (के) यानी कृष्णा गुट, ओवैसी की एआईएमआईएम, प्रेमचंद प्रजापति की पार्टी के साथ ही अन्य छोटी पार्टियां इस मोर्चे में शामिल हैं.
इस मोर्चे में अलग-अलग जातियों का नेतृत्व करने वाले दल हैं. ओवैसी के भी साथ आ जाने से मुस्लिम वोटर साथ हुए यूपी के विधानसभा चुनाव में अलग समीकरण देखने को मिल सकता है. पूर्वांचल की बात करें तो मऊ, बलिया, आजमगढ़, अंबेडकर नगर के साथ अन्य जिलों में राजभर, पटेल, कुशवाहा, प्रजापति, चौहान, नाई जैसी जातियों के साथ-साथ मुसलमान वोट बैंक करीब 40 से 45 फीसदी पहुंच जाता है जो काफी मायने रखता है. यदि ये वोट बैंक एकजुट हुआ तो भागीदारी मोर्चा मजबूती से उभर सकता है और 2022 के चुनाव में समीकरण बदल सकते हैं.
कितनी कामयाब होगी ओवैसी-राजभर की जोड़ी?
हरदोई से गाजियाबाद की बात करें तो इस बेल्ट में भी अर्कवंशी, शाक्य, सैनी, बंजारा जातियों के साथ मुस्लिम वोट बैंक समीकरण बदलने की स्थिति में है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में ओवैसी और राजभर की जोड़ी क्या गुल खिलाती है? ये सत्ताधारी बीजेपी और अन्य दलों के वोट बैंक में सेंधमारी कर उन्हें कितना नुकसान पहुंचाने में कामयाब होंगे, ये तो समय ही बताएगा.