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भदोही जिले की 3 विधानसभा में से एक औराई विधानसभा (394) वाराणसी और प्रयागराज के मध्य स्थित है. वाराणसी और मिर्जापुर सीमा से सटा यह विधानसभा क्षेत्र गंगा के किनारे पड़ता है. यहां से पूर्व मंत्री दीनानाथ भास्कर भाजपा के विधायक निर्वाचित हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने सपा की मधुबाला पासी को बड़े अंतर से हराया था.
औराई विधानसभा अपने चीनी मिल के लिए पूर्वांचल में एक अलग स्थान रखता था लेकिन पिछले कई वर्षों से यह चीनी मिल बंद पड़ी हुई है. जब चुनाव नजदीक आता है तो इस विधानसभा की राजनीति इसी चीनी मिल के इर्द-गिर्द घूमने लगती है लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद बंद पड़ी चीनी मिल दोबारा शुरू नहीं हो सकी है. मौजूदा सरकार ने यहां बायो फ्यूल प्लांट स्थापित करने की घोषणा की थी लेकिन जमीन पर अभी कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है.
औराई विधानसभा 2007 तक सामान्य सीट थी और यहां से रंगनाथ भाजपा के टिकट पर कई बार और बसपा के टिकट पर एक बार विधायक बने. दोनों ही सरकारों में वह महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे. यह विधानसभा ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा मानी जाती है. 2007 के बाद यह विधानसभा सुरक्षित सीट में तब्दील कर दी गई. इसके बाद यहां से 2012 में समाजवादी पार्टी से मधुबाला पासी विधायक बनी और वर्तमान में दीनानाथ भास्कर यहां से विधायक हैं.
भदोही जिले में कालीन बुनाई की शुरूआत इसी विधानसभा से शुरू हुई जो धीरे-धीरे पूरे जिले में एक उद्योग के तौर पर स्थापित हुई. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने फारस से कुछ कालीन बुनकरों को अपने दरबार में बुलाया था. अकबर से मिलने के बाद बुनकरों का दल आगरा से बंगाल की तरफ जाने लगा तो भदोही में जीटी रोड के किनारे बसे घोसिया में बुनकरों का दल रात्रि विश्राम के लिए रुका, और यहीं पर स्थानीय लोगों को कालीन बुनाई का प्रशिक्षण दिया. इससे धीरे-धीरे यहां बड़े पैमाने पर कालीन बुनाई होने लगी. इस विधानसभा में भी कई बड़े कालीन निर्यातकों की कंपनियां हैं और बड़े पैमाने पर यहां भी कालीन का निर्माण किया जाता है. खास तौर पर इस इलाके की कालीन पूरे भारत के स्थानीय बाजारों में भी बड़े पैमाने पर बेची जाती हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
2012 विधानसभा चुनाव से पहले जब यह सीट सामान्य थी तब यहां रंगनाथ मिश्रा का खूब सिक्का चला. भाजपा में रहते हुए रंगनाथ मिश्रा यहां से दो बार 1993 और 1996 में लगातार विधायक बने. भाजपा सरकार में गृह मंत्री, ऊर्जा मंत्री, वन मंत्री सहित कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे. इस विधानसभा की राजनीति रंगनाथ मिश्रा के इर्द गिर्द घूमती रही. लेकिन रंगनाथ मिश्रा को 2002 के विधानसभा चुनाव में तब बड़ा झटका लगा जब बाहुबली उदयभान सिंह उर्फ डॉक्टर सिंह ने बसपा के टिकट पर जेल से चुनाव लड़कर रंगनाथ मिश्रा को परास्त कर दिया.
इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान रंगनाथ मिश्रा बसपा से चुनाव लड़कर विधायक हुए और मायावती सरकार में माध्यमिक शिक्षा मंत्री रहे. लेकिन सरकार के अंतिम वर्षो में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रंगनाथ मिश्रा को मंत्री पद से हाथ गंवाना पड़ा. 2012 में सीट सुरक्षित होने के बाद यहां सपा से मधुबाला पासी विधायक बनीं और 2017 में मधुबाला पासी को हराकर भाजपा से दीनानाथ भास्कर यहां के विधायक बने. अलग-अलग समय पर यहां प्रमुख दलों को अपना विधायक बनाने का मौका मिला. कांग्रेस की भी 1980 में इस सीट पर जीत हुई थी. पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के ट्रेंड पर नजर डालें तो यहां जनता यूपी में सरकार बनाने वाली दल के प्रत्याशी को जनादेश देने में आगे रहती है.
सामाजिक ताना-बाना
औराई विधानसभा क्षेत्र में 363119 लाख मतदाता हैं. इसमें करीब दो लाख पुरुष और डेढ़ लाख से अधिक महिला मतदाताओं की संख्या है. यहां ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अधिक है. अनुमानित आंकड़ो के मुताबिक ब्राह्मण लगभग 80 हजार, राजपूत लगभग 15 हजार, दलित लगभग 70 हजार, मुस्लिम लगभग 35 हजार, वैश्य लगभग 20 हजार, यादव लगभग 30 हजार, मौर्य लगभग 15 हजार के अलावा अन्य मतदाताओं में पाल, विश्वकर्मा, बिंद, पटेल, कुम्हार सहित अन्य जातियों के मतदाता हैं. इस विधानसभा चुनाव में जातिय गणित बहुत मायने रखती है. खास तौर से स्थानीय सोशल इंजीनियरिंग करने वाले प्रत्याशियों का पलड़ा भारी रहता है. दलित मतदाताओं में पासी समाज का वोट भी इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाता है.
2017 का जनादेश
2017 के विधानसभा चुनाव में दीनानाथ भास्कर को 83325 हजार वोट (40.94%) मिले. उनके मुकाबले सपा की मधुबाला पासी को 63546 हजार वोट (31.22%) वोट मिले. इस तरह लगभग बीस हजार वोटो की अंतर से दीनानाथ भास्कर ने एक बड़ी जीत हासिल की. इस चुनाव में बसपा के बैजनाथ गौतम 49059 हजार वोट (24.1%) पाकर तीसरे स्थान पर रहे. चुनाव में कुल 206026 हजार (59.3%) मतदान हुए थे. इस चुनाव में कुल 11 प्रत्याशी मैदान में थे.
विधायक रिपोर्ट कार्ड
दीनानाथ भास्कर का जन्म 10 मार्च 1963 को चंदौली जिले में हुआ. उनके पिता का नाम मोलू पहलवान है. भास्कर पोस्ट ग्रेजुएड और एलएलबी डिग्री धारक हैं. छात्र जीवन से ही उनका रूझान दलित समाज को मजबूत करने के लिए समाजसेवा और राजनीति में रहा. वो बसपा संस्थापक कांशीराम के संपर्क में आए और उनके सबसे खास माने जाने लगे. वह उनके साथ संगठन खड़ा करने में जमकर जुटे रहे.
भास्कर बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. कांशीराम ने भास्कर को आगे बढ़ाते हुए 1987 में वाराणसी का जिलाध्यक्ष बनाया. कई वर्षों तक वाराणसी जिलाध्यक्ष रहने के बाद वो बसपा के टिकट पर चंदौली से 1993 में पहली बार विधायक बने. बाद में उन्होंने मायावती पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया और सपा में चले गए. सपा की टिकट पर भदोही विधानसभा से 1996 में चुनाव लड़े लेकिन भाजपा से हार का सामना करना पड़ा. 2002 में दोबारा सपा से भदोही विधानसभा से चुनाव लड़े और विधायक बने. बसपा से सपा में आने और दलित वर्ग का बड़ा चेहरा होने के कारण मुलायम सिंह यादव ने इन्हे मंत्री भी बनाया. लेकिन भदोही विधानसभा में उप चुनाव में टिकट कटने के बाद दोबारा बसपा में चले गए.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हे प्रयागराज-मीरजापुर का कोआर्डिनेटर बना दिया. फिर झारखंड का प्रभारी बना कर वहां भेज दिया.2017 के विधानसभा को देखते हुए दीनानाथ भास्कर ने मायावती पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए एक बार फिर पार्टी से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. उन्हें भाजपा ने औराई विधानसभा का प्रत्याशी बनाया और वो विधायक बने. विधायक बनने के बाद उनका दावा है कि उन्होंने विधानसभा क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाया. उनका दावा है कि उन्होने काफी विकास कार्य कराएं हैं. विधायक के दावों पर सपा नेताओं का आरोप है कि उनके विधानसभा में ज्यादातर योजनाएं सपा सरकार के समय की हैं.
विविध
भाजपा से विधायक होने के बाद विधायक दीनानाथ भास्कर का समय-समय पर पार्टी और प्रशासन को लेकर असन्तोष सामने आता रहता है. दीनानाथ भास्कर भाजपा विधायक बनने के बाद जिले के अधिकारियों-कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर औराई तहसील में धरने पर बैठ गए थे और इस घटनाक्रम ने काफी सुर्खियां बटोरी थी. कोरोना के दौरान भी उन्होंने स्वास्थ्य विभाग पर गंभीर आरोप लगाते हुए सीएम योगी को पत्र लिखा और पार्टी के जिला महामंत्री के कोविड अस्पताल में मौत का जिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग को ठहराया था.
सोशल मीडिया पर भी पोस्ट के जरिए दीनानाथ अपना असंतोष जाहिर करते रहते हैं. 26 अगस्त 2021 को उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि विकास कार्य करने के बावजूद उन्हें जलील किया जा रहा है. कोई जिम्मेदार सुनने को तैयार नहीं है. इसलिए हो सकता है वो राजनीति से बाहर होकर पार्टी की सेवा करते रहेंगे. इसके अगले दिन ही उन्होंने लिखा कि उनके समाज को किसी की जरूरत नहीं है, कमजोरों की पूछ नहीं होती है. इस तरह की बातें सामने आने के बाद विधायक के समर्थकों में इस बात की चर्चा रहती है कि भाजपा को दीनानाथ का जिस तरह से उपयोग करना चाहिए था नहीं किया गया. उन्हें सिर्फ उनके विधानसभा तक सीमित कर दिया गया. जबकि वो कई बार मंत्री रहे. संगठन के कार्यो में भी माहिर हैं. ऐसे में उन्हें मंत्रिमंडल में न सही तो कम से कम संगठन में ही कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी.
(इनपुट- महेश जायसवाल)